महाश्रमणोस्तु मंगलं
षष्ठीपूर्ति मनावां मिलजुल, जन-मन हर्ष अपार।
वीतराग कल्प गुरु ध्याकर, हो जाए बेड़ा पार।।
नेमानंदन शत-शत वंदन करते हैं,
प्रवचन रसियों की झोली प्रभु भरते हैं,
मानवता के महामसीहा, की हो जय-जयकार।।
विनयशीलता, श्रमनिष्ठा, प्रभु की बेजोड़,
महातपस्वी, क्षमाशीलता की, हो ना होड़,
गुणग्राही, मृदुभाषी गुरुवर करते जन उद्धार।।
इतिहास नवीन रचाया, गुरुवर ने सुखकर,
है संकल्प मेरू सम, झुक जाते हैं सर,
‘शासनमाता’ को दर्शन दे, किया स्वप्न साकार।।
षष्ठीपूर्ति की गुण गाथा, हम गाते हैं,
महाश्रमण की मूरत, हृदय बसाते हैं,
जुग-जुग जीवो हे गण नायक, ‘संत अमन’ उद्गार।।
लय: रोम-रोम में---