शत-शत वर्धापन
युगप्रधान प्रभु महाश्रमण का, अभिवादन वंदन है।
वर्धापन शत-शत वर्धापन, कोटि सहस्र नमन है।।
दिव्य पुरुष! तुमको पाकर, यह धरती धन्य हुई है,
तुमसे एक सपूत पूत से, यह कृत पुण्य हुई है।
युग की धारा मुड़ी तुम्हारे, चिंतन-मनन प्रखर से,
जन-जन मन को सींचा तुमने, करुणा के निर्झर से।
जहाँ टिके हैं पाँच देव के, धूलि बनी चंदन है।।
जिनवाणी के भाष्यकार तुम, तुलसी स्वर संघाता,
महाप्रज्ञ की गहन दृष्टि के, तुम सक्षम व्याख्याता।
अमृत पुरुष तुम्हारी वाणी, युग का अनुपम संबल,
रहो निरामय दिव्य देवते! मिले मनुजता को बल।
जहाँ टिकी नजरें गुरुवर की, हुआ नया सर्जन है।।
अमृत उत्सव के अवसर पर, साध्वीप्रमुखा वर का,
मान बढ़ाया ‘शासनमाता’, संबोधन दे गण का।
साध्वीजन बढ़ा सुयश, पा कृपा प्रसाद प्रभुवर का,
सकल संघ आनंदित, देख करिश्मा गुरु नजर का।
ज्योति चरण जय-युगप्रधान जय, कंठ-कंठ गुंजन है।।
दीर्घ अहिंसा पद यात्रा के, हे अनन्य सेनानी!,
फौलादी संकल्पी गुरुवर की नहीं जग में सानी।
ओजस्वी! उज्ज्वल तेजस्वी! वर वर्चस्वी विभुवर!
परम यशस्वी! महामनस्वी! महातपस्वी धृतिधर!
गुरुत्रय युगप्रधान पद भूषित, गौरवशाली गण है।।
पुण्यधरा सरदारशहर का, वातावरण सलौना,
चमक रहा प्रभु तेज पुंज से, जग का कोना-कोना।
युगप्रधान बरगदी छाँव में, हम कितने सौभागी,
काश सुदुर्लभ इस उत्सव में बनते हम सहभागी।
वर्धापन की मंगल वेला, आह्लादित कण-कण।।
अंबर को छू जाए, उतनी ऊँची भरो उड़ान।
जय घोषों से गूंजे धरती, जाग उठे इंसान।।