समाधायक संत पुरुष को प्रणाम
तेरापंथ धर्मसंघ प्राणवान धर्मसंघ है। इस धर्मसंघ की नींव में सेवा, समर्पण, वात्सल्य, अनुशासन, व्यवस्था तथा मर्यादा के पत्थर रखे हुए हैं। जिन पर तेरापंथ का विशाल प्रासाद खड़ा है। एक आचार्य, एक विचार, एक समाचारीµइस धर्मसंघ की पहचान है। अनुशासन की हवा मर्यादा का नीर एवं व्यवस्था की अनुकूल धूप मिलने पर संघ विरुआ निरंतर विकसित होता रहा है।
कीर्तिगाथा, युगपुरुष, धर्मक्रांति के सूत्रधार आचार्य भिक्षु ने अपने नन्हे-नन्हे हाथों से जो पौध लगाई उसे उत्तरवर्ती आचार्यों ने सिंचन देकर आज वट वृक्ष बना दिया। विश्व क्षितिज पर तेरापंथ धर्मसंघ की अनुशासित मर्यादित व्यवस्थित एवं संगठित रूप में पहचान बन गई है। जिसका संपूर्ण श्रेय तेरापंथ की यशस्वी एवं वर्चस्वी आचार्य परंपरा को जाता है। इस धर्मसंघ के संवर्धन में आचार्यों एवं बलिदानी साधु-साध्वियों व श्रावक-श्राविकाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। संघ विकास में समय-समय पर ऋतंभराप्रज्ञा के महाधनी आचार्यों का उर्वर मस्तिष्क हमेशा नए-नए उन्मेष लाता रहा है।
तेरापंथ की यशस्वी आचार्य परंपरा में वर्तमान में आचार्य महाश्रमण जी 11वें आचार्य हैं। आचार्यप्रवर ने जिस उम्र में दीक्षा स्वीकार की, उस उम्र में बालक अपना दायित्व नहीं संभाल पाता है। जिस उम्र में बच्चे आँखें मलते हैं तुम फकीर बन गए और आज तेरापंथ धर्मसंघ की तकदीर बन गए। प्रखर प्रतिभा के धनी आचार्यप्रवर ने बहुत शीघ्र ही धर्मसंघ में मेधावी मुनि के रूप में अपनी पहचान बना ली। गौरवर्ण, तेजस्वी नेत्र, सहज मुस्कान, वाणी में माधुर्य, करुणा सागर ये आपश्री की बाह्य पहचान है। विनम्रता, सहजता, सरलता, मृदुता, कोमलता, समता, सहिष्णुता, स्थितप्रज्ञता अंतरंग पहचान है। इन मानक बिंदुओं के कारण गणाधिपति पूज्य गुरुदेव तुलसी एवं प्रेक्षा प्रणेता आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का ध्यान आपश्री पर केंद्रित हुआ।
दो-दो आचार्यों का वरदहस्त, पावन सान्निध्य आपश्री के जीवन की अमूल्य निधि बन गई। महाश्रमण पद पर प्रतिष्ठित होते ही यात्राओं का दौर शुरू हो गया। अनेक यात्राओं में सिवांची-मालाणी की यात्रा अभूतपूर्व रही थी। वहाँ पर श्रम की बूँदें जहाँ-जहाँ गिरी आज वहाँ-वहाँ त्याग-वैराग्य की फसलें लहरा रही हैं। ज्यादा सुनना, कम बोलना आचार्यप्रवर की विरल विशेषता है।
आचार्यपद पर अभिषिक्त होते ही जो सुदीर्घ यात्राओं का सिलसिला शुरू हुआ। वह न केवल तेरापंथ धर्मसंघ के लिए अपितु पूरे जैन समाज तथा समूची मानव जाति में नया कीर्तिमान एवं अमिट हस्ताक्षरों का दस्तावेज बन गया।
पूर्वांचल से दक्षिणांचल की अहिंसा यात्रा ने नए-नए विकास के द्वार उद्घाटित किए। अहिंसा यात्रा के दौरान कभी भूकंप, कभी तूफान, कभी मूसलाधार वर्षा, कभी बर्फीली हवाएँ, कभी कीचड़, कभी प्रचंड गर्मी, कभी सर्दी, कभी कंटीली पगडंड़ियाँ, कभी जंगल, कभी राजपथ, कभी पहाड़िया, कभी समंदर, कभी समतल भू-भाग, इन सारी परिस्थितियों में आचार्यप्रवर की साधना अक्षुण्ण रही। अनेक देशों तथा प्रांतों की अविस्मरणीय यात्रा के मध्य तीनों संकल्पों की गूँज होती रही।
आचार्यप्रवर ने अहिंसा यात्रा के माध्यम से लाखों लोगों का जीवन उबारा, संवारा तथा चैतन्य को जगाया। आचार्यप्रवर की अमृत देशना की गूँज मजदूर की झौंपड़ी से लेकर राष्ट्रपति भवन तक पहुँच गई। आपश्री का एक प्रवचन सुनने मात्र से व्यक्ति की जीवन दिशा तथा दशा बदल जाती है। आपश्री की अहिंसा यात्रा से केवल सामान्यजन ही नहीं विशिष्ट व्यक्तित्व भी बहुत प्रभावित हुए, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण है 27 मार्च, 2022 को ‘अहिंसा यात्रा समापन समारोह’ जिसमें अनेक प्रांतों के मुख्यमंत्रियों ने तथा केंद्रीय नेताओं ने अहिंसा यात्रा की यशस्वी गाथाएँ प्रस्तुत की तथा आचार्यप्रवर के राष्ट्रीय योगदान की उदात्त शब्दों में अभिव्यक्ति दी।
असाधारण संघमहानिदेशिका महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाश्री जी के 50वें चयन दिवस के उपलक्ष्य में चयन दिवस, अमृत महोत्सव चंदेरी की पुण्य धरा पर मनाया जा रहा है। उस नयनाभिराम भव्य कार्यक्रम को लाखों लोग टी0वी0 पर तथा साक्षात् देखकर आनंदानुभूति कर रहे थे। उस अवसर पर असाधारण महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाश्री ने करबद्ध निवेदन किया कि भंते! मैं आज आपश्री से एक वरदान माँग रही हूँ, और वह वरदान है कि आपश्री ने सुदीर्घ यात्राएँ करके मानव जाति पर बहुत बड़ा उपकार किया है। आपकी कीर्ति आपश्री का यश दिग्दिगंत में फैला है। अतः ‘युगप्रधान’ अलंकरण को स्वीकार कराने की कृपा कराएँ। युगप्रधान आचार्यप्रवर ने साध्वीप्रमुखाश्री जी के इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया। क्योंकि साध्वीप्रमुखाश्री जी के साथ चतुर्विध संघ साथ खड़ा हो गया। विधिवत युगप्रधान अलंकरण का भव्य कार्यक्रम आचार्यप्रवर की जन्मभूमि, कर्मभूमि, दीक्षाभूमि, सरदारशहर में आयोजित होने जा रहा है। मैं इस अवसर पर आचार्यप्रवर के तनुरत्न के प्रति कोटिशः मंगलकामना करती हूँ। आचार्यवर निरामय रहे। इस कलयुग में भैक्षव शासन तथा आचार्यप्रवर का कुशल नेतृत्व प्राप्त होना अत्यंत सौभाग्य की बात है। हमें युगों-युगों तक आचार्यप्रवर का पथ दर्शन प्राप्त होता रहे। इसी शुभाशंसा के साथ।