तुम इसीलिए हो युगप्रधान
आचार्यश्री महाश्रमण जी को युगप्रधान अलंकरण के उपलक्ष्य में
‘सपने नहीं संकल्प पूरे होते हैं’ यह महज कथन नहीं बल्कि जीवन दर्शन है। आचार्य महाश्रमण का जिसे जीकर दिखाया है उन्होंने दुनिया को और जीवन की प्रयोगशाला में सिद्ध कर सबक सिखाया है। जन-जन को पाँव-पाँव चलकर नापा है। हर इंसान के मन को साधा है। इंद्रिय संयम द्वारा अपने कोमल तन को तथा सार्थक किया है। परार्थ और परमार्थ से अनुस्पूत हो एक-एक क्षण को। उनके जीवन का हर दिन सृजन का सलौना इतिहास है। उस इतिहास के हर पृष्ठ पर बिखरा पुरुषार्थ का प्रकाश है। उस प्रकाश की हर किरण में जागरण का जीवन विश्वास है। उस विश्वास में सन्निहित अध्यात्म का अमित उल्लास है। उस उल्लास की हर तरंग में छलकता उज्ज्वल अनागत का नया विकास है। उसी विकास की यशोगाथाओं से अनुगूंजित अनंत धरती और अनंत आकाश है।
वि0सं0 2068 वैशाख शुक्ला दशमी भगवान महावीर कल्याणक महोत्सव के मंगल दिन जैन शासन के दीप्तिमान संप्रदाय तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम पट्ट पर विराजमान इस तेजोमय पुण्य पुरुष के कीर्तिमानों के शिखरारोहण का प्रथम सोपान है। आपके जीवन के पचासवें वर्ष के उपलक्ष्य में परम श्रद्धेया महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी के निर्देशन में मनाया जाने वाला अमृत महोत्सव। उस विलक्षण उत्सव के मंगल अवसर पर सर्वप्रथम करवाया। आचार्य महाश्रमण ने चतुर्विध धर्मसंघ को पंचाचार निष्ठामृत का रसपान और साथ में प्रारंभ किया। जन-जन में अनुकंपा की चेतना के जागरण का अभियान। फिर हुए तुम्हारे चरण अपने परमाराध्य धर्माचार्य महाप्रज्ञ के वचनों को पूरा करने मेवाड़ मारवाड़ की ओर गतिमान। गति ने लिया प्रगति का उच्छवास। होने लगा तुम्हारी शासना में कुछ ही समय के अंतराल में आचार्य तुलसी एवं आचार्य महाप्रज्ञ की संचालन शैली का युगपत्त अहसास। इस अहसास के साथ निखरने लगा तुम्हारे नेतृत्व में हिमालय सा र्स्थर्य, धरती सा धैर्य, सागर सा गाम्भीर्य, सूरज सा तेज, चाँद सी शीतलता। प्रकृति की सभी उपमाएँ फीकी हैं, तुम्हारी विराटता के आगे। तुम्हारे जेसे सक्षम अनुशासता को पा सचमुच हमारे भाग्य जागे कि तुमने समय के साथ समयोचित कर्तव्यों को निभाने अगवानी। कृतज्ञता और उदारता तुम्हारी विशिश्टता की मुख्य निशानी। उसी की फलश्रुति है तुम्हारे द्वारा अपने परम धर्मोपकारी गुरुवरद्वय की स्मृति में जन्मशताब्दी वर्ष मनाने की घोषणा। सफल हुई तुम्हारी हर आयोजना। निष्पत्ति मूलक रही तुम्हारी हर परियोजना फिर चाहे अहिंसा यात्रा की संयोजना हो या विशाल तुलसी-महाप्रज्ञ वाङ्मय के प्रकाशन की समायोजना। ‘जन-जन में जागे विश्वास-संयम से व्यक्तित्व विकास’, ‘ज्ञान चेतना करे प्रकाश-जागे संयम में विश्वास’µये केवल व्यक्तित्व विकास वर्ष अथवा ज्ञान चेतना वर्ष के उद्घोष नहीं बल्कि साकार कर दिखाया तुमने अपनी वज्र संकल्पी चेतना से मुनि दीक्षा के शतक को पार कर तथा महाप्रज्ञ श्रुताराधना के सप्तवर्षीय पाठ्यक्रम को प्रारंभ कर। धर्मसंघ में सम्यक् ज्ञान-दर्शन चारित्र रूप रत्नत्रय की आराधना का महान उपक्रम। पाषाणों को पिघला देने वाला तुम्हारा कठोर श्रम। अग्नि की ज्वालाओं को शांत कर देने वाला तुम्हारा उपशम। अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में वीतरागी लक्ष्य निष्ठा का प्रतीक तुम्हारा सदाबहार समा सचमुच श्रमण संस्कृति को चरितार्थ कर रहा है। तुम्हारा नाम महाश्रमण। खड़ी कर दी इसीलिए इस श्रमण सम्राट ने आचार्य पदारोहण के चंद समय बाद ही अणुव्रतियों और महाव्रतियों की एक लंबी कतार। तुम्हारे कदमों की रफ्तार के सामने धीमी पड़ने लगी खुद वक्त की रफ्तार। किस शुभ मुहूर्त में लिखा होगा विधाता ने तुम्हारे भाग्य का लेख। ब्रह्मा भी चकराया होगा एक बार तुम्हारे पुरुषार्थ को देख। राजधानी दिल्ली से शुरू हुआ जो अहिंसा यात्रा का दौर। नैतिकता, सद्भावना, नशामुक्ति का संदेश गूंज उठा चारों ओर। निराशा के गहन तम में आशा की आई मानो उजली भोर। शांतिदूत के दर्शन पाकर खुशियों से नाच उठे प्यासे भक्तों के मन मोर। थमने लगा हिंसा-अपराधों का शोर। यूँ तो बेहद कड़क है, तुम्हारे अनुशासन की डोर तदापि अमन चैन आनंद से हर पल सराबोर। स्नेह और वात्सल्य से भीगा हर पौर।
एक ओर अभिनंदन, अभिवादन, संत शिरोमणि श्रमण संस्कृति के उद्गाता जैसे उच्चकोटि के अलंकरणों, राजकीय अतिथि, राष्ट्रसंत जैसे गरिमामय सम्मानों की बौछार तो दूसरी ओर समूची दुनिया को हिला देने वाले काठमांडू-नेपाल के भूकंप के झटकों तथा कोरोना की जानलेवा घातक लहरों का भयावह प्रहार फिर भी चरैवेती-चरैवेती का अकंप संकल्प लिए करते गए तुम धर कुंचा धर मंजला विहार, विहार के साथ जारी रहा धर्मोपकार। जगाते गए मानव-मानव में आध्यात्मिक संस्कार। कितनों की लगाई नैया पार। कितनों का किया आत्मोद्धार। आखिर आठ वर्ष की इस प्रलंब पद यात्रा का तीन देश (भारत, नेपाल, भूटान), बीस राज्यों समेत 18000 किमी कुल परिभ्रमण के पश्चात् जहाँ से हुआ श्रीगणेश वहीं हुआ उपसंहार। इस बीच न जाने कितने जुड़े नए आयाम। कितने हुए आश्चर्यकारी काम। उन सबका लेखा-जोखा युगप्रधान आचार्य महाश्रमण के नाम इसीलिए समूचा युग करता है इस युग प्रवर्तक को कोटिशः श्रद्धासिक्त प्रणाम।
मुख्य मुनि, साध्वीवर्या का मनोनयन उनकी दूरदर्शी सोच का परिणाम। महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा के अमृत महोत्सव की जैन विश्व भारती के विशाल प्रांगण, चंदेरी की पुण्य धरा पर जबर्दस्त धूमधाम इस दुर्लभ अवसर पर दिया पूज्यप्रवर ने महाश्रमणी जी की 50 वर्षीय प्रशासनिक असाधारण संघ सेवाओं का मूल्यांकन करते हुए शासनमाता का अलंकरण प्रवर प्रकाम। वह नजारा सचमुच बना कितना नयनाभिराम। और फिर किया स्वयं शासनमाता ने चतुर्विध धर्मसंघ समेत तुम्हारे द्वारा किए गए उत्कृष्ट संघप्रभावक जनोपकारक कर्मों के मूल्यांकनपूर्ण श्रद्धार्पण हेतु ‘युगप्रधान’ के गौरवशाली अलंकरण की स्वीकृति का अनुरोध। मानकर शासनमाता का फरमान, तुरंत किया तुमने स्वीकृति सूचक आह्वान। युगप्रधान आचार्य महाश्रमण और शासनमाता महाश्रमणी के जय घोषों से हो उठा दिग्दिगंतर गुंजायमान। एक-एक दिन में 35 से 47 किमी के लंबे-लंबे विहार कर साध्वीप्रमुखाश्री जी को दिल्ली में दर्शन सेवा का दिया लाभ। फिर अनशन प्रत्याख्यान आलोयणापूर्वक पहुँचा दिया उन्हें परमधाम। अमर हो गई 17 मार्च की वह शाम। यकायक एक युग ने लिया विराम। यादों का चक्र घूमने लगा। वात्सल्य पीठ पर अविराम। एक-एक साधु-साध्वी की चित्त समाधि स्वास्थ्य एवं सेवा का किस तरह करते हो तुम उत्तजाम। यह कह दूँ तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि हर श्रावक-श्राविका हर भक्त हृदय के लिए तुम मीरा के घनश्याम और शबरी के राम। अद्भुत है तुम्हारा प्रबंधन कौशल। अनुपम है तुम्हारा प्रबंधन प्रवहण। अनुत्तर है तुम्हारी संयम साधना। इतने बड़े संघ की सार-संभाल और हजारों की भीड़ के बीच तुम निरंतर अपने भीतर की गहराइयों में डूबे रहते हो इसीलिए तुम संघ को आसमानी ऊँचाइयाँ देते रहते हो। कम बोलना अधिक सुनना यही है तुम्हारे ऊर्जस्वल व्यक्तित्व की पहचान। दूरदर्शी सोच, कड़ी मेहनत, मजबूत इरादे यही है तुम्हारे कालजयी कर्तृत्व की शान। तुम्हारे युगांतकारी नेतृत्व पर पूरा अध्यात्म जगत को अभिमान। लाखों लोगों को बाँध लेती है तुम्हारी एक मधुर मुस्कान। इस एक मोहक मुख मुद्रा की झलक पाने को बेताब रहती है हजारों निगाहें। क्या करिश्मा है तुम्हारी निगाहों में। जिस पर पड़ जाए वो निहाल हो जाए। वरदहस्त का जीकारा पाने वाला खुशहाल हो जाए। आशीर्वाद बरसे तो मानो मालोमाल हो जाए। भटकते कदमों को मिल जाती है मंजिल। आसान हो जाती है हर मुश्किल। डूबते को मिल जाता है साहिल। इसीलिए तुझ जैसे गरीब-निवाज पर फिदा है हर दिल। गजब है तेरे नाम की महिमा। अजब है तेरे मंगलपाठ का चमत्कार। हजारों कोषों दूर बैठे लोग भी श्रवण मात्र से हो जाते हैं ठीक।
जमाने की भीड़ में दुर्लभ है तेरे जैसे इंसान। इंसानी चौले में तुम साक्षात् भगवान। सबको देते हो समाधान इसीलिए युग-युग जीओ हे युगप्रधान। देते रहो अपने युगीन चिंतन से सुखी जीवन का प्रावधान और करते रहो विश्वमानव को अपनी असत प्रवृत्तियों से सावधान। दिव्यताओं के हे दिव्य पुंज। सरदारशहर के ओ गण सरदार! अपनी जन्मभूमि, दीक्षाभूमि, पट्टारोहण भूमि पर युगप्रधान अलंकरण अभिषेकोत्सव की इस पावन पुनीत बेला में सादर समर्पित सकल संघ का सहòशः मंगल वर्धापन।
नेमानंदन! शत-शत वंदन, भाव भरा लो श्रद्धाचंदन।।