संयम प्रदाता युगप्रधान - आचार्यश्री महाश्रमण
महातपस्वी महाश्रमण की किन शब्दों में महिमा गाऊँ।
युगप्रधान के शुभ अवसर पर, अंतर मन से देव बधाऊँ।।
झुमर नेमाँ नंदन प्यारे, दुगड़ कुल के तुम उजियारे।
लाखों की आँखों के तारे, भैक्षव शासन के रखवारे।
पुण्य पुरुष की पुण्य शासना पाकर अपना भाग्य सराहऊँ।।
तपःपूत भारत सपूत तुम, धन्य अहिंसा अग्रदूत तुम।
सत्य सुधा से अनुस्पूत्त तुम, गंगा सम पावन प्रसूत तुम।
शिक्षामृत का सिंचन पाकर, जीवन बगिया को विकसाऊँ।।
उज्ज्वल निर्मल आभामंडल, आकर्षक मोहक मुखमंडल।
घूम रहे ले धर्म कमंडल, श्रद्धानत सुर नर आखंडल।
गण गणपति के संकेतों पर अविरल आगे बढ़ती जाऊँ।।
सपनों को साकार करूँ मैं, पल-पल तेरा ध्यान धरूँ मैं।
लक्षित मंजिल शीघ्र वरूँ मैं, भव सागर को शीघ्र तरूँ मैं।
दो आशीर्वर ऐसा प्रभुवर, निश्चित आराधक पद पाऊँ।।
मुनि दीक्षा का शतक बनाया, जन्म सदी का पर्व मनाया।
अनुकंपा का घोष सुनाया, निष्ठमृत का पान कराया।
अमिट अहिंसा यात्रा तेरी, आस्था के नव दीप जलाऊँ।।
वर्ष करोड़ों राज करो तुम, पग-पग जय-जय विजय वरो तुम।
पीड़ित जन की पीर हरो तुम, मुझ में ऐसा जोश भरो तुम।
चरण शरण पा तेरी गुरुवर, संयम जीवन सफल बनाऊँ।
संयमदाता भाग्य विधाता, श्रीचरणों में शीष झुकाऊँ।।