गुरु से गलती न छिपाएँ तो शुद्धि हो सकती है: आचार्यश्री महाश्रमण
सरदारशहर, 4 मई, 2022
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि प्रश्न होता है कि निर्वाण को कौन प्राप्त कर सकता है? धार्मिक साहित्य में निर्वाण, मोक्ष, मुक्ति की बात आती है। आध्यात्मिक साधना की अंतिम और संपूर्ण निष्पत्ति तब होती है, जीव को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। आज तक हम सबकी आत्माओं ने अनंत-अनंत जन्म ग्रहण कर लिए हैं। जन्म कोई आदि नहीं है। अनादि काल से हमारी आत्मा जन्म और मृत्यु के चक्र से परिभ्रमण कर रही है। अभव्य जीव तो कभी मुक्त होंगे ही नहीं। यह अभव्य पारिणामिक भाव है। अभव्य है तो है, भव्य है तो है। साधना के द्वारा हम मुक्ति पाने का प्रयास करते हैं। यह एक प्रसंग से समझाया कि भव्य जीव को कभी तो मुक्ति मिल सकती है। जिसके जीवन में धर्म है, उसको निर्वाण प्राप्त हो सकता है। जो शुद्ध हृदय वाला व्यक्ति होता है, उसके जीवन-आत्मा में धर्म ठहरता है। जो ऋजु है, सरल है, उसकी शुद्धि होती है।
जीवन में गलतियाँ, प्रमाद हो सकता है। दोष का परिमार्जन होता रहे। सरलता के बिना दोषों की शुद्धि मुश्किल है। गुरु से गलती न छिपाएँ तो शुद्धि हो सकती है। गुरु के सामने होशियारी नहीं झाड़नी चाहिए। सरलता और सच्चाई का गहरा संबंध है। सच्चाई सरलता के आसन पर विराजमान हो सकती है। गृहस्थ व्यवहार-लेन-देन में ईमानदारी रखे तो शुद्धि रह सकती है। इससे चेतना की शुद्धि रह सकती है। साध्वीवर्याजी ने कहा कि इस दुनिया में कोई भी आत्मा न हीन है, न अतिरिक्त है। अहंकार हमें नहीं करना चाहिए। क्रोध-मान अपने चिंतन से ही पैदा होता है। अहंकार कई प्रकार से पैदा हो सकता है। अहंकार से व्यक्ति व्यथित हो जाता है। अहंकार को खत्म करने के लिए अनित्यता की अनुप्रेक्षा करें। कंठ का भी कायोत्सर्ग करे। इससे एकाग्रता बढ़ती है। मृदुता की अनुप्रेक्षा करें। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में सपना लुणिया ने अपनी प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।