धर्मसंघ महान - युगप्रधान अलंकरण से संघ मुझे और अधिक आभारी बना रहा है: आचार्यश्री महाश्रमण
जन्मभूमि पर महातपस्वी का भव्यातिभव्य युगप्रधान पदाभिषेक
सरदारशहर, 10 मई, 2022
वैशाख शुक्ला नवमी मंगलवार की भोर सरदारशहर में एक अलग रंगत लिए हुए थी। छः दशक पूर्व इसी धरा पर एक ऐसे दिव्य सूर्य का अवतरण हुआ जो आज संपूर्ण विश्व को अपनी रश्मियों से प्रकाशमान कर रहा है। अपने व्यक्तित्व, कर्तृत्व , संघनिष्ठा, अपार गुरु भक्ति , करुणा से ओतप्रोतः आचार्य महाश्रमण के रूप में यह सूर्य तेरापंथ धर्मसंघ को विश्व क्षितिज पर अलग पहचान दे रहा है। इनके प्रति राष्ट्र के सर्वाेच्च नागरिक से लेकर एक साधारण बालक तक सभी नतमस्तक हो जाते हैं। सप्त वर्षीय अहिंसा यात्रा के माध्यम से भारत के 22 राज्यों के सैकड़ों शहरों सहित नेपाल और भूटान जैसे राष्ट्रों में भी अहिंसा, सद्भावना और नशामुक्ति की ऐसी अलख जगाई जिससे लाखों लोगों के जीवन का कल्याण हुआ है। इस महामानव के जीवन के 60 वर्षों की सुसंपन्नता के अवसर पर युगप्रधान पदाभिषेक महापर्व इनकी ही जन्मभूमि सरदारशहर में आयोजित हुआ।
मंगलकामना एवं भव्य स्वागत
प्रातः 4 बजे से ही जन्मस्थल पर पूज्यप्रवर को शुभकामनाएँ संप्रेषित करने की होड़ लगी हुई थी। हर कोई अपने आराध्य को जन्म दिवस और षष्टिपूर्ति की बधाई देकर अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा था। सूर्याेदय के पश्चात आचार्यप्रवर अपने जन्म स्थान से तिरंगा स्टेडियम की ओर प्रस्थित हुए तो मार्ग के दोनों और श्रद्धालुगण जयघोष लगा रहे थे। वाद्ययंत्रों की मंगल ध्वनि मानो देवताओं को भी आकर्षित कर रही थी। इस जुलूस में भारत के 23 राज्यों सहित नेपाल और भूटान के श्रद्धालु संभागी बने हुए थे। तिरंगा स्टेडियम में आचार्य प्रवर के चरण पंडाल की ओर बढ़े तो उनकी अभिवंदना में जैन संस्कारक, उपासक, मुमुक्षु बहने, समणीवृंद, साध्वीवृंद, मुनिवृंद कतारबद्ध खड़े होकर अगवानी कर रहे थे। आगम सूक्तियां, नमोत्थुणं सहित विभिन्न मंत्रों के साथ आचार्यप्रवर का अभिनंदन कर सभी अपने आपको प्रफुल्लित महसूस कर रहे थे। आचार्यप्रवर के मंच पर पधारने के साथ ही पूरा पंडाल सरदारशहर के इस महासूर्य की ज्योति किरणों से प्रकाशमान हो उठा और पूरा वातावरण जय-जय ज्योति चरण - जय-जय महाश्रमण के नारे से गुंजायमान हो गया।
समारोह का शुभारंभ आचार्यप्रवर द्वारा नमस्कार महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। युग को नई दिशा प्रदान करने वाले महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के युगप्रधान पद अभिषेक की प्रक्रिया 7 चरणों में चली। मुख्य मुनि महावीरकुमारजी ने चतुर्विध धर्मसंघ की ओर से इस कार्यक्रम का संयोजकीय दायित्व संभाला और आचार्यप्रवर से सिंहासनारूढ़ होने का भक्ति भरा निवेदन किया। पूज्यप्रवर के सिंहासन पर विराजमान होने पर चतुर्विध धर्मसंघ इस दृश्य को अपलक निहारकर अपने आपको धन्य महसूस कर रहा था। अग्रणी साध्वियों द्वारा नंदी श्लोकों के साथ संघ स्तुति की गई। मुख्य मुनि महावीरकुमारजी ने आचार्यप्रवर के चरणों में वंदन कर युगप्रधान पदाभिषेक प्रक्रिया का शुभारंभ किया।
पवित्रता का जागरण
प्रथम चरण में पवित्रता के जागरण के लिए पूज्यप्रवर से निवेदन किया। पूज्यप्रवर ने पवित्रता का जागरण करते हुए फरमाया कि मोहनीय कर्म के क्षय और कषाय मंदता हो तो पवित्रता का विकास हो सकता है। इसके लिए आगम में संदेश है कि उपशम को क्षीण करें, मार्दव के द्वारा अहंकार को जीते और आर्दव भाव से माया को हतप्रभ करें और संतोष के द्वारा लोभ को जीते। इसकी अनुप्रेक्षा के माध्यम से कषाय मंद होते हैं, कषाय मंदता से पवित्रता का विकास होता है। एकाग्रता निर्मलता और प्रज्ञा की चेतना हो सकती है।
चरण कमल एवं कर कमल का जलाभिषेक
पदाभिषेक के द्वितीय चरण में आचार्यप्रवर के पादांगुष्ठ एवं हस्तद्वय की अंगुलियों का मुख्य मुनि द्वारा अभिषेक किया गया। अभिषेक के पश्चात मुख्य मुनिश्री ने इस पवित्र जल को अपने मस्तक पर पवित्रता के जागरण के सूचक के रूप में लगाया एवं सभी साधु-सध्वियों को इस जल को अपने मस्तक पर लगाने का निवेदन किया।
युगप्रधान पदाभिषेक पत्र एवं वर्धापना पत्र भेंट
इसके पश्चात सकल साधु-साध्वीवृंद की तरफ से युगप्रधान पदाभिषेक पत्र का वाचन मुख्य मुनिश्री ने किया एवं आचार्यप्रवर ने इस युगप्रधान अभिषेक पत्र की अवगति लेते हुए फरमाया कि यह पत्र चतुर्विध धर्मसंघ की तरफ से सम्मान का सूचक है। आचार्यप्रवर ने शासनमाता की स्मृति करते हुए कहा कि 30 जनवरी, 2022 को लाडनूं में साध्वीप्रमुखाजी ने इसे एक वरदानस्वरूप मुझसे माँग लिया था, मैंने भी इसे संघ की भावना के रूप में स्वीकार किया था। आज शासनमाता तो नहीं है, परंतु उनके भाव के रूप में आज धर्मसंघ ने मेरे लिए यह जो कार्य किया है। स्थूलभाषा में कहें तो संघ मुझे और ज्यादा आभारी बना रहा है, वैसे ही संघ तो महान है। यह पत्र प्रमाणिक दस्तावेज है अतः मैं इसे ससम्मान ग्रहण कर रहा हूँ।
नवीन पछेवड़ी और पचरंगी माला से वर्धापन
युगप्रधान अभिषेक पत्र प्रदान करने के पश्चात मुख्य मुनिश्री ने युगप्रधान लिखित पछेवड़ी पूज्यप्रवर को धारण करवाई। साध्वियों द्वारा हस्तनिर्मित पंचरंगी माला भी आचार्यप्रवर को धारण करवाई गई। माला धारण करवाने के पश्चात मुख्य मुनिश्री ने उद्घोष लगवाए। मुख्य नियोजिकाजी ने आचार्यप्रवर को नवीन रजोहरण एवं साध्वीवर्याजी ने नवीन पूंजनी पूज्य आचार्यप्रवर को भेंट की। इस प्रकार विधिवत युगप्रधान पदाभिषेक के पश्चात चतुर्विध धर्मसंघ ने तीन बार प्रदक्षिणा करते हुए आचार्यप्रवर को विधिवत पंचांग प्रणतिपूर्वक वंदना की। पूज्य प्रवर की अभिवंदना में मुख्य मुनि ने अपने भाव को गीत के रूप में प्रस्तुत किया। श्रमण-श्रमणी और समणी परिवार की तरफ से वर्धापना पत्र का वाचन साध्वी कल्पलताजी ने किया एवं संपूर्ण धवल सेना ने अपने आराध्य को वर्धापना पत्र समर्पित्त किया। श्रावक समाज की तरफ से कल्याण परिषद के संयोजक के0सी0 जैन ने अभिनंदन पत्र का वाचन किया एवं कल्याण परिषद पार्षदों ने इस पत्र को संपूर्ण श्रावक समाज की तरफ से आचार्यप्रवर को समर्पित किया।
युगप्रधान आचार्यप्रवर का मंगल उद्बोधन
युगप्रधान पदाभिषेक समारोह अवसर पर आचार्यप्रवर ने अपने मंगल उद्बोधन में फरमाया की मंगल कामना दूसरों के प्रति भी की जाती है और स्वयं के प्रति भी की जा सकती है। आज मेरे प्रति मंगलभावनाएँ, मंगल कामनाएँ, मंगल शब्द अभिव्यक्त किए जा रहे हैं। आज मैंने 60 वर्षों की संपन्नता के पश्चात जीवन के सातवें दशक में उम्र के अनुसार प्रवेश प्राप्त किया है। 60 वर्षों की उपलब्धि परिपक्वता उम्र के आधार पर मानी जा सकती है। शास्त्र में भी 60 वर्ष प्राप्ति का उल्लेख किया गया है। हर प्राणी का जन्म होता है जन्म लेना बड़ी बात नहीं है विशेष बात यह होती है कि जन्म लेने के बाद आदमी करता क्या है?
विक्रम संवत् 2019, वैशाख शुक्ला नवमी, 13 मई, 1962 को इसी सरदारशहर में मेरा जन्म हुआ था मेरी संसारपक्षीय पूजनीय नेमाबाई-झूमरमलजी का साया मुझे मिला। संसारपक्षीय पिता का साया मुझे कम समय ही प्राप्त हुआ। 7 वर्ष की उम्र में पिता का साया उठ गया था। पिता के चले जाने के बाद जेष्ठ भ्राता सुजान मलजी सबसे बड़े थे। स्कूल में भी मुझे माॅनिटर के रूप में सेवा देने का मौका मिला, छठी कक्षा की अर्धवार्षिक परीक्षा के बाद दीक्षा का योग मिला और श्रद्धेय मुनिश्री सुमेरमलजी द्वारा मुझे और मुनि उदितकुमारजी को दीक्षित होने का अवसर मिला। गुरुकुल वास में मुझे आचार्य तुलसी, आचार्य महाप्रज्ञ जी का विशेष आशीर्वाद मिला। गुरुओं से मुझे कार्य के क्षेत्र में आगे बढ़ने का अनुग्रह मिला। मुझे आचार्य महाप्रज्ञ के साथ आंतरिक सहयोगी और उसके पश्चात आचार्य तुलसी ने मुझे महाश्रमण के रूप में नियुक्त किया। आचार्य तुलसी ने मुझे महाश्रमण नाम प्रदान किया। गंगाशहर में मुझे आचार्य महाप्रज्ञ जी ने संघ का युवाचार्य बना दिया। उन्होंने मुझे मैदान दिया कहा कि तुम दोड़ो, खुला उड़ने के लिए आकाश दिया । इतना वात्सल्य मुझे गुरुद्वय का मिला। आचार्य महाप्रज्ञ जी के देवलोकगमन होने के पश्चात मुझे संघ का दायित्व सरदारशहर की भूमि में आचार्य के रूप में मिला। साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी का मुझे विशेष सहयोग मिला। मेरा 60 वर्ष का जीवन अनेक रूपों में बीता है। व्यक्ति को पद मिले ना मिले, पैसा ज्यादा मिले ना मिले, मान-सम्मान ज्यादा मिले ना मिले कोई खास बात नहीं परंतु आत्म कल्याण आत्मशुद्धि के मार्ग पर आगे बढ़ते रहना चाहिए। जीवन में आदर्श रखें, अच्छा जीवन जियें। मुख्य मुनिश्री सचिव के रूप में अपनी सेवा दे रहे हैं । मुख्य नियोजिकाजी, साध्वीवर्याजी का सहयोग मुझे मिलता है। यह तीनों प्रबंधन और प्रशासन में मेरे सहयोगी है। बहुश्रुत परिषद, कल्याण परिषद, विकास परिषद का भी धर्मसंघ के विकास में योगदान मिलता है।
धर्मसंघ ने यह युगप्रधान पद देकर मुझे और आभारी बना दिया वैसे हमारे संघ में आचार्य सर्वाेपरि होता है फिर यह युगप्रधान अलंकरण प्रदान कर मानो आचार्य पद के साथ आभूषण के रूप में अलंकृत कर दिया है। आचार्य तुलसी आचार्य महाप्रज्ञ जी को भी धर्मसंघ ने युगप्रधान अलंकरण दिया था। इस अवसर पर कृतज्ञता तो कैसे कहूँ यह तो बहुत छोटी बात हो सकती है। यह धर्मसंघ तो हमारा ही है। धर्मसंघ के प्रति मंगलकामना है। हम सभी सेवा साधना में आगे बढ़ते रहें। हम धर्मसंघ की सेवा करें और दूसरों की सेवा करने का भी प्रयास करते रहे। जन्मदिवस षष्टिपूर्ति के अवसर पर युगप्रधान जोड़कर इस दिवस को और अधिक महिमामंडित कर दिया है।
इस अवसर पर आचार्यप्रवर ने साधु-साध्वियों को बखशीश प्रदान की। समणीवृंद एवं श्रावक समाज को स्वाध्याय करने के लिए प्रेरित किया। आचार्यप्रवर ने फरमाया कि मेरे ज्ञान दर्शन चरित्र की निर्मलता बढ़ती रहे। मैं धर्मसंघ की एवं दूसरों की भी सेवा करता रहूँ। अपने स्वास्थ्य की अनुकूलता की भी मंगलकामना की। आचार्यप्रवर ने भगवान महावीर, आचार्य परंपरा एवं शासनमाता कनकप्रभाजी को भी भाव वंदना की। इस मंगल समारोह में महातपस्वी के चरणों में मंजू देवी दूगड़ ने 33 की तपस्या का प्रत्याख्यान कर मंगल अवसर को और मंगलमय बना दिया। युगप्रधान आचार्यश्री के साथ चतुर्विध धर्मसंघ ने खड़े होकर संघगान किया। इस भव्यातिभव्य कार्यक्रम का संचालन मुख्य मुनि महावीरकुमारजी और मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।
युगप्रधान की अभ्यर्थना में मंगलकामनाएँ
मुख्य नियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी ने युगप्रधान परंपरा व युगप्रधान अर्हता को बताया तो साध्वीवर्या साध्वी संबुद्धयशाजी ने आचार्यश्री महाश्रमणजी के अवदानों को व्याख्यायित किया। मुनि कुमारश्रमणजी, साध्वी सुमतिप्रभाजी, प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष बाबूलाल बोथरा व संसारपक्ष में आचार्यश्री के बड़े भाई सुजानमल दूगड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। मुनिवृंद, साध्वीवृंद, समणीवृंद तथा सरदारशहर तेरापंथ समाज द्वारा पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया गया। मुनि धर्मरुचिजी द्वारा पूज्यचरणों में काव्यांजलि ग्रंथ समर्पित किया गया। दूगड़ परिवार और नन्हें बच्चों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। स्क्रीन पर उन विडियो को भी दर्शाया गया जिसमें गुरुदेव तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के आचार्यश्री के प्रति आशीर्वचन, शासनमाता साध्वी कनकप्रभाजी द्वारा आचार्यश्री से युगप्रधान स्वीकार करने का निवेदन और आचार्यश्री की स्वीकृति प्रदान की थी। इस दौरान अनेक प्रदेशों के श्रद्धालुओं ने भी अपनी-अपनी ओर से पूज्यचरणों में भेंट अर्पित की।