एक तंत्र वाला है यह भैक्षव शासन: आचार्यश्री महाश्रमण
तेरापंथ भवन, सरदारशहर, 12 मई, 2022
महायोगी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में शरीर भी है, आत्मा भी है। भौतिकता भी है और आध्यात्मिकता भी एक तत्त्व है। हमारा दृष्टिकोण भौतिकतापरक है या आत्मपरक है, यह एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। शास्त्रकार ने कहा कि जो एक को ही प्रमुख मानकर चलता है, एक आत्मा की ओर मुख वाला होता है। तेरापंथ धर्मसंघ में भी एक आचार्य प्रमुख होता है। आचार्य भिक्षु के शासन में उत्तरावर्ती आचार्य परंपरा चली। जहाँ बहुत सारे अपने आपको मुख्य मानने लग जाएँ, सब नेता बन जाएँ, वहाँ कठिनाई पैदा हो सकती है। आचार्य भिक्षु के शासन तंत्र में एक तंत्र वाली बात है। उत्तरवर्ती आचार्य परंपरा भी एक प्रमुख वाली रही है। एक बार पूज्य भारमल जी स्वामी ने नियुक्ति में दो नाम लिख दिए थे, पर बाद में एक नाम निष्प्रभाव कर दिया था। 200 वर्षों बाद भी एक प्रमुख वाली व्यवस्था चल रही है। आचार्य के सिवाय किसी के भी शिष्य-शिष्याएँ नहीं होती हैं। यह हमारी संघीय व्यवस्था है।
हमारे धर्मसंघ को जो ये तंत्र प्राप्त हुआ है, वह लोकतंत्र नहीं है, एक तंत्र है। पट्टोत्सव की वर्धापना आज भी की जा रही हैं बाकी की व्यवस्थाएँ आचार्य की निश्राय में ही होती है। एक प्रमुख तंत्र में आचार्य पर भी बहुत बड़ा दायित्व आ जाता है। पद का उम्मीदवार यहाँ कोई नहीं बनता। लालसा होती है, वो खतरनाक हो सकती है, संसार में गुरु तो हर कोई बनना चाहता है, पर शिष्य बनना मुश्किल है। गुरु बनने के लिए अच्छा चेला बनने की अर्हता भी होनी चाहिए। पूज्यप्रवर की अभ्यर्थना में मुनि अर्हम् कुमार जी, मुनि प्रिंसकुमार जी, मुनि नमन कुमार जी, साध्वी प्रबुद्धयशाजी, साध्वी मैत्रीयशाजी, साध्वी ऋजुबाला जी, साध्वी प्रफुल्लप्रभाजी, साध्वी श्रुतिप्रभाजी, साध्वी काम्यप्रभाजी, साध्वी तन्मयप्रभाजी, साध्वी प्रसन्नयशाजी, साध्वी संपूर्णयशाजी, साध्वी सिद्धांतप्रभाजी, साध्वी ऋजुप्रभाजी, साध्वी समताप्रभाजी, साध्वी संगीतप्रभाजी, साध्वी मृदुप्रभाजी, साध्वी चारूलता जी, साध्वी रचनाश्री जी, साध्वी कारुण्यप्रभाजी, साध्वी भव्ययशाजी, साध्वी मृदुप्रज्ञा जी आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। साध्वी सार्थकप्रभाजी, साध्वी प्रवीणप्रभाजी, साध्वी आर्षप्रभाजी ने सामुहिक प्रस्तुति दी। तेरापंथ महिला मंडल, संतोष बैद-गंगाशहर, बाल कृष्ण कौशिक, शीला संचेती, जिज्ञासा पींचा ने अपने विचार प्रस्तुत किए।