शासनमाता निर्वाण दिवस पर श्रद्धांजलि
हाथ जोड़कर मान मोड़कर, तिक्खुत्ते रे पाठ स्यूं, शासन माता ने म्हारी वंदना।
कलकत्ता में जनम्या थे, चंदेरी नै चमकाई,
तुलसी री आ अनुपम कृति, महिमा चिहुं दिशी है छाई,
किया पधार् या म्हाने छोड़ ने।
तीन-तीन आचार्यां री सेवा, किरपा रा थे पात्र बण्या,
गुरु इंगित आराध कर ही, आगे अपना चरण धर् या,
जीवन थे सफल बनायो जोर ने।
रजत जयंती मोच्छव रो, ओ मेलो देख्यो हर् यो भर् यो,
नव्य नजारो महाश्रमणी रो, देख म्हारो हियो ठर् यो,
के के बतावां बातां खोल ने।
म्हे नहीं सोच्यो दिली जा कर पाछा नहीं आवोला,
जन-जन की मनमोहक माता, सबने छोड़ जाओला,
पाछो उत्तर देणों पड़सी सोच ने।
स्वर्ग सुखां में रमण करो थे, शासन नै मत भूलज्यो,
अनंत सुखां नै पावण खातिर, कर्म कंटक ने तोइज्यो,
नहीं देखणी पड़सी दूजी ठौड़ ने।।
लय: तेजा---