काव्य
इस अभ्यर्थना के सुखद पलों में
कहाँ तुम्हें बिठाऊँ।।
कोई घर नहीं, दरबार नहीं
कहाँ तुम्हें सजाऊँ।। इस----
हाथ जोड़ कर अर्ज करूँ मैं
चरण धरो इस मन मंदिर में
यहीं तुम्हें बधाऊँ।। इस----
अखंड अंक जो नौ का पायें
उसकी भाग्य लता लहरायें
ऐसी साध्वीप्रमुखा को श्रद्धा सुमन चढ़ाऊँ।। इस----
दृश्य एक अनूठा देखा
गुरु ने जो खिंची थी रेखा
देख उसे, पुलकित प्रफुल्लित मन बन जाऊँ।। इस---
वंदन करूँ अभिनंदन तेरा
इतिहास बनेगा नव नवेला
भावों के सुनहरें गीत गढ़ पाऊँ।। इस---
युगों-युगों तक करो शासना
चतुर्विध संघ की है वर्द्धापना
महाप्रज्ञ की कृति को भेंट चढ़ाने
शब्दों के पुष्प कहाँ से लाऊँ।। इस---