मंगल वर्धापना गीत
सुगुरु का गौरव गाते हैं।
नव नियुक्त साध्वीप्रमुखा को आज बधाते हैं।। ध्रुव।।
मिला भाग्य से भैक्षव शासन महाश्रमण से शास्ता।
जिनकी सूझबूझ को अर्पित है जन-जन की आस्था।
रचा नया इतिहास देव ने, शीष झुकाते हैं।।1।।
तुलसी महाप्रज्ञ की तुमने कृपा अनूठी पाई।
महाश्रमण ने प्रमुखा पद पर कर नियुक्ति दिखलाई।
शासन माँ की सुखद शासना स्मृति में लाते हैं।।2।।
‘विश्रुतविभा’ नाम है तेरा विश्रुत हो यश गाथा।
कर इंगित आराधन गुरुओं को पहुँचाओ साता।
श्रमणीगण की शान बढ़ाओ, भाव सजाते हैं।।3।।
चित्त समाधि मिले हम सबको यही भावना भाएँ।
सतिशेखरे! युग-युग तेरा शुभ पथदर्शन पाएँ।
तुम जैसी साध्वी प्रमुखा पा मोद मनाते हैं।।4।।
सफल सुफल पल-पल हो, मंगल दीप जलाते हैं।।
लय: सुगुरु को वंदन----