साँसों का इकतारा
(2)
अभिनंदन जीवन के प्रभात! अभिवंदन अभिनव पारिजात!
अभिनंदन हे पुलकित प्रवात! अभिवंदन शत-शत शुभ्र प्रात!
फूलों पर खिलता दिव्य हास कलियों पर बिखरी है सुवास
तारों में इठलाता प्रकाश चेतन का हो अपना विकास
विश्वास तुम्हारा फल जाए ढल जाए लंबी शिशिर रात॥
मन के सब जख़्मों को भर दो अनजानी पीड़ा को हर दो
हर पाखी को सुंदर पर दो वीणा को मधुर-मधुर स्वर दो
वर दो आत्मस्थ बनूं सत्वर बहता जाए उजला प्रपात॥
अधरों पर गूंजे विजय गीत अथ से इति तक जीवन पुनीत
संघर्षों में प्रतिपल अभीत दीनों-दुखियों के सहज मीत
घट रीत न जाए इमरत का कर दो जग का अवदात गात॥
तम के तट पर आलोक-दीप भवसागर में हो महाद्वीप
चल सकते कब तुमसे प्रतीप सद्गुण-मुक्ता की दिव्य सीप
नयनों में निरुपम वत्सलता होते जाएं हम अभिस्नात॥
प्राणों के छालों पर मरहम मेरे गीतों की तुम सरगम
मानव-मानव का हरते गम अद्भुत अनुपम है श्रम शम सम
पनघट की प्यासी आहों की सुन सकते तुम ही करुण बात॥
(3)
तुलसी है अभिनव तीर्थधाम।
जग के पुण्यों का फल प्रकाम॥
तुलसी मानव की आशा है पौरुष की नव परिभाषा है
जन-जागृति की अभिलाषा है तुलसी तेजस का अपर नाम॥
तुलसी विकास का मूर्त रूप तुलसी जीवन की छांव-धूप
हर मंजिल पर जो कीर्तिस्तूप तुलसी की गाथा है अनाम॥
तुलसी मानवता का सपूत आध्यात्मिक वैभव है अकूत
तुलसी समता का अग्रदूत गतिशील लक्ष्य हित अविश्राम॥
तुलसी का नाम तितिक्षा है पग-पग पर हुई परीक्षा है
मूल्यों की सही समीक्षा है बन गया सहज ही पूर्णकाम॥
तुलसी औषधि है मंगल है तुलसी पौधा है परिमल है
तुलसी निर्मल गंगाजल है तुलसी कैसी अभिधा ललाम॥
तुलसी रामायण गीता है तुलसी ने मन को जीता है
पगधूलि परम पुनीता है हरती भक्तों का दु:ख तमाम॥
तुलसी है महावीर गांधी तुलसी ने मर्यादा बांधी
उखड़ी युग-आस्थाएं सांधी तुलसी में उतरे कृष्ण-राम॥
(क्रमश:)