साध्वीप्रमुखा मनोनयन के अवसर पर मन के भाव
साध्वी मुक्ताप्रभा, कुमुदप्रभा
शासन माता की वरदपुत्री गण का सुयश शिखरों चढ़ाओ
ज्योतिचरण की कीर्ति पताका दिग् दिगन्त में फहराओ
अरूणायी हो तरूणायी हो जिनशासन में शंख बजाओ।।
कीर्तिमान रचाते गुरुवर हर दिन नये निराले अनुपम
अतिशयधारी गरिमाधारी तीर्थंकर ज्यों अनुत्तर संयम
भाग्य विधाता के सपनों को इन्द्रधनुष ज्यों सजाओ।।
जो भी करते सर्वोत्तम करते महाश्रमण का दिव्य अंदाज
साध्वी प्रमुखा पद बगसाया महागुरु का अभिनव राज
रिक्त पाट सुशोभित हो गया नया सवेरा फिर से लाओ।।
सूरज कहता साध्वी प्रमुखा तुमको तेजस्वी बनना
चंदा कहता साध्वीगण का सफल बनाओ हर सपना
नेतृत्व का नया पन्ना अक्षय आलेख तुम लिखाओ।।
धरती कहती गहन हो गंभीर हो तुम मेरी शोभा
गगन कहता विशाल हो विराट हो बढ़ाओ आभा
विश्व कहता अभ्युदय के नए पैमाने रच दिखाओ।।
क्या नया प्रतिमान रचोगे? नया प्रारूप बसा है दिल में
नव संकेत संदेश मिलते ज्योतिर्धर की इस महफिल में
श्री तुलसी का साम्ययोग साध्वी समाज को सिखलाओ।।
महाप्रज्ञ का ध्यान योग रोम-रोम में बसा तुम्हारे
आर्य भिक्षु का महायोग धमनियों में हम निहारे
प्रेक्षा की वीणा है पास अर्हम् से विजयी बनाओ।।