आचार्यश्री तुलसी की 26वीं पुण्यतिथि पर विशेष कालजयी व्यक्तित्व - आचार्य तुलसी
मुनि चैतन्य कुमार ‘अमन’
इतिहास के पृष्ठों पर कुछ विरल व्यक्तित्वों के नाम अंकित होते हैं, जिन्हें कालजयी व्यक्तित्व के रूप में व्याख्यायित किया जा सकता है, क्योंकि उनके कार्य कालजयी होते हैं। समय के भाल पर उनके कार्य सदैव अंकित रहते हैं। ऐसे में तेरापंथ धर्मसंघ के नवम् अधिशास्ता आचार्यश्री तुलसी का नाम भारतीय इतिहास में दुर्लभ दस्तावेज के रूप में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। लगभग 60 वर्षों के प्रलंब आचार्यकाल में न केवल जैन तेरापंथ अपितु मानवता की सेवा में अभूतपूर्व अवदान दिए, जिनकी सौरभ भू-मंडल पर आज भी सुरक्षित है। जिन्हें मानवता के मसीहा के रूप में याद करते हैं। वे एक ऐसे ही विलक्षण प्रतिभावान आचार्य थे। इतिहास में खोजने पर ऐसे व्यक्तित्व का मिलना दुर्लभ कहा जा सकता है। लाखों-लाखों लोग उनकी सन्निधि में आकर बुराइयों को त्यागकर अपने आपमें स्वस्थ बनें, आश्वस्त बनें, विश्वस्त बनें। विभिन्न जाति, समाज, संप्रदाय के लोग तथा राजनेता बिना किसी भेदभाव के उनके चरणों में आते रहें, क्योंकि उनके द्वारा चलाया गया अणुव्रत आंदोलन जाति, वर्ग, वर्ण एवं संप्रदाय से मुक्त था। उन्होंने भगवान महावीर की अहिंसा को जैन धर्म की परिधि से बाहर निकालकर सार्वभौम व सार्वजनीन बनाने का प्रयत्न किया। उन्होंने अपने धर्म संदेश में नैतिकता, प्रामाणिकता व ईमानदारी को जीवन में स्थान देने हेतु प्रयास किया। उनके विचारों में धर्म धर्मस्थानों में नहीं बल्कि जीवन में आए, वह केवल पूजा उपासना का ही नहीं आचरण में आए तभी उसकी सार्थकता होगी।
यद्यपि तेरापंथ धर्मसंघ एक आचार्य केंद्रित धर्मसंघ है। इस धर्मसंघ में आचार्य की अनुशासना सर्वोपरि है। संघ के प्रत्येक सदस्य में विनम्रता, सेवा निष्ठा, संघनिष्ठा, आचारनिष्ठा, मर्यादा निष्ठा, आचार्यनिष्ठा के भाव परिलक्षित किए जा सकते हैं। स्वयं आचार्य भी संघ के प्रत्येक सदस्य को सेवा, शिक्षा, स्वास्थ्य की दृष्टि से हर संभव सहयोग प्रदान करवाते हैं। स्वयं आचार्यश्री तुलसी ने धर्मसंघ के आंतरिक विकास को महत्त्व दिया, किंतु साथ में मानवीय हितों को ध्यान में रखते हुए अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान, जीवन-विज्ञान, अहिंसा समवाय, नया मोड़, रूढ़ि उन्मूलन, साहित्य-सृजन आदि जन-कल्याणकारी कार्यों के द्वारा देश व दुनिया का पथ-दर्शन किया। मानवीय हितों के संदर्भ में आज भी उनको याद किया जा रहा है।
उनकी 26वें पुण्यस्मरण के संदर्भ में आज भी राजनेता, समाज-नेता, विभिन्न धर्मों के धर्मगुरु तथा आमजन भी उनके प्रति अपनी श्रद्धा समर्पित करते हैं। ऐसे महामानव शताब्दियों में कभी-कभार ही आते हैं। जो व्यक्ति-व्यक्ति के दिलों में उतर जाते हैं, जिनको देश औरदुनिया श्रद्धा से याद करती है। आज उनकी ही कृति ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण उन्हीं के पद्चिÐों पर चलते हुए जन-जन में नैतिकता, सद्भावना और नशामुक्ति का संदेश लेकर पूर्वी भारत, दक्षिण भारत, मध्य भारत तथा नेपाल व भूटान सहित लगभग बीस हजार किलोमीटर की पदयात्रा की। उनकी अहिंसा यात्रा की अनुगूँज सर्वत्र सुनाई दे रही है। यह ऐसा धर्मसंघ है जो अपनी आत्म साधना करता हुआ भी मानवता की सेवा में समर्पित है। आज मैं अपने आराध्य आचार्य श्री तुलसी की 26वीं पुण्यतिथि पर सर्वात्मना समर्पण भाव से श्रद्धा समर्पित कर धन्यता की अनुभूति करता हूँ। उनके आशीर्वाद से स्वयं के चैतन्य जागरण के साथ धर्मसंघ व मानवीय सेवा के लिए समर्पित हूँ। इसी शुभ मंगलभावना के साथ पुनः-पुनः गुरुवर के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित!