करें हम श्रद्धा का उपहार
करें हम श्रद्धा का उपहार,
शासनमाता के चरणों में वंदन शत-शत बाद।
कलकत्ता में जन्म लिया अरु बैद कुल उजियारा।
गुरु तुलसी के करकमलों से संयम पथ स्वीकारा।
विनय समर्पण बहती धारा, था ऊँचा आचार।।
गुरु निष्ठा, गण निष्ठा, श्रम निष्ठा लगती अलबेली।
मर्यादा अरु सेवा निष्ठा अद्भुत प्रवचन शैली।
क्षण-क्षण का उपयोग करके भरा ज्ञान भंडार।।
कार्यकुशलता और सुघड़ता थी तेरी अनुपम।
इंगियागार संपन्न बन निर्भार रहती हरदम।
देती चित्त समाधि सबको, भरे गहन संस्कार।।
समय-समय पर गुरुओं से संबोधन नूतन पाए।
असाधारण साध्वीप्रमुखा महाश्रमणी बन छाएँ।
संघ महानिदेशिका शासनमाता कहलाए।
अजब-गजब की बौद्धिक क्षमता महिमा अपरंपार।।
शासनमाता बड़भागी गुरुत्रय का आशीर्वर पाया।
उग्र विहारी गुरु महाश्रमण ने अंतिम साझ दिराया।
गुरुवर के श्रीचरणों में पहुँचे स्वर्ग मझार।।
लय: धर्म की लौ---