संतों की वाणी को करें आत्मसात: आचार्यश्री महाश्रमण
उदासर, 30 मई, 2022
सोमवती अमावश्या, अध्यात्म के शिखर पुरुष, तीर्थंकर के प्रतिनिधि धवल सेना के साथ आज 14 किलोमीटर का विहार कर उदासर पधारे। उदासर में मानो दीपावली जैसा माहौल बन गया। आसपास के कई क्षेत्रों से श्रावक-श्राविकाएँ पूज्यप्रवर के दर्शनार्थ पधारे हैं। विशाल जनमेदिनी को प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए युगप्रधान, महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि हमारे जीवन में पाँच इंद्रियाँ हैं, जो इस शरीर से जुड़ी हुई हैं। श्रोतेन्द्रिय है, वह प्राणी पंचेन्द्रिय ही है। श्रोतेन्द्रियाँ और चक्षुरिन्द्रिय ज्ञान का सशक्त माध्यम है। आदमी सुनकर पाप को भी जान लेता है और कल्याण को भी जान लेता है। जान लेने के बाद जो श्रेयस्कर है, छेक है, हितकर है, उसका आचरण करना चाहिए। जो गलत, अहितकर है, उससे दूर रहना चाहिए। जैसे झूठ बोलना पाप है, उससे बचना चाहिए। जो निरवद्य सत्य है, उसका आचरण करना चाहिए। हेय को छोड़ देना चाहिए। उपादेय को ग्रहण कर लेना चाहिए।
साधु उपदेश देते हैं तो कितनी बातें सुनने से ज्ञात हो जाती हैं। संत पर-उपकार करने वाले होते हैं। जैसे वृक्ष तीव्र ताप को सहन करता है, पर उसकी छाया में जो बैठे हैं, उनको शीतलता या ठंडक प्रदान कर देता है। संत जहाँ भी आएँ, उस गाँव के लिए भी अच्छी बात है। भारत में अनेक धर्म और जातियाँ हैं। भाषाएँ भी अनेक हैं। भारत में विभिन्नता है। इस अनेकता में भी अहिंसा की चेतना रहे। सब में मैत्री भाव रहे। जाति भेद आदि वैमनस्य के कारण न बने। संतों से ज्ञान मिलता रहे। संत जो त्यागी, श्रद्धेय है, लोग उनकी बात मानते हैं। संतों से ज्ञान की बात सुनकर आत्मसात हो जाए तो अच्छी बात हो सकती है। सुनना भी अपने आपमें अच्छी बात है। संत त्याग की, संयम की व आगे की प्रेरणा दे सकते हैं। धन की तरफ कम ध्यान देकर, धर्म पर ध्यान दें, उसका फल आगे जा सकता है। हम अच्छी बातें कानों से सुनने का प्रयास करें। आज उदासर आना हुआ है। कई साध्वियों-समणियों से मिलना होे गया है। नए साध्वीप्रमुखाश्री पधारे हैं। उदासर की जनता में खूब धार्मिक चेतना वाली रहे।
साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने कहा कि परमपूज्य बीकानेर संभाग की यात्रा करते हुए आज उदासर पधारे हैं। यहाँ के लोगों में प्रफुल्लता है, आह्लादित और आनंदित है। पूज्यप्रवर की प्रलंब यात्रा तेरापंथ की प्रभावना में सहायक बन रही है। पूज्यप्रवर लोगों के परिताप का हरण कर रहे हैं। जो व्यक्ति महापुरुषों की सन्निधि में पहुँच जाता है, उनके सारे संताप दूर हो जाते हैं। जो व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को आध्यात्मिक बना लेता है, उसकी वर्धापना होती है। आचार्यप्रवर साधना संपन्न है, इस कारण वे लोगों को आकर्षित कर रहे हैं।
साध्वी कांतप्रभाजी, साध्वी गुणरेखाजी ने आचार्यप्रवर का अपनी जन्मभूमि में पधारने पर स्वागत के स्वरों में उदासर के इतिहास की जानकारी दी। बीकानेर संभाग में चतुर्मास करने वाली साध्वियों ने समुहगीत की प्रस्तुति दी। उदासर की मुमुक्षु रश्मि, तेरापंथ सभाध्यक्ष हड़मानमल महनोत, तेरापंथ महिला मंडल, कन्या मंडल, ज्ञानशाला, जितेंद्र, उदयचंद चौपड़ा ने पूज्यप्रवर के स्वागत में अपनी भावना अभिव्यक्त की। उदासर के सुश्रावक हनुमानमल दुगड़ की जीवनी तुलसी के हनुमान पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में उनके परिवार वालों ने लोकार्पित की। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने कर्मवाद पर विवेचन करते हुए समझाया कि पाप कर्म से बचने वाला अध्यात्म के शिखर पर चढ़ सकता है। मुनिश्री ने उपासक श्रेणी की महत्ता एवं नए उपासक बनने की प्रेरणा दी।