वाणी तय करती है संबंधों की दिशा: आचार्यश्री महाश्रमण
गाढ़वाला, 31 मई, 2022
भीषण गर्मी में समता की साक्षात् प्रतिमूर्ति आचार्यश्री महाश्रमण जी 13 किलोमीटर का विहार कर गाढ़वाला के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय पधारे। मुख्य प्रवचन में महायायावर, शांत सौम्यमूर्ति आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन व्यवहार में भाषा का बहुत उपयोग होता है। 24 घंटों में कितनी बार हम वाणी का प्रयोग करते हैं। वाणी एक ऐसा तत्त्व है, जो संबंधों को बिगाड़ने वाली बन सकती है, तो बिगड़े हुए संबंधों को सुधारने वाली भी बन सकती है।
शास्त्रकार ने वाणी के संदर्भों में दो चरणों में तीन बातें खास बताई हैं। वाणी मित होनी चाहिए। आदमी को परिमितभाषी होना चाहिए। कितने लोग मौन की साधना भी करते हैं। आदमी वाणी का संयम रखें। दूसरी बात बताई है-भाषा दोष रहित होनी चाहिए। झूठ बोलना व कटु बोलना भी वाणी का दोष है। कहा गया है-सत्य बोलो, प्रिय बोलो। अप्रिय सत्य भी मत बोलो और प्रिय झूठ भी मत बोलो, यह शाश्वत धर्म है। तीसरी बात बताई है-भाषा विचारपूर्वक बोलनी चाहिए। पहले बुद्धि से सोचो, समझो बाद में वाणी को बाहर निकालो। पहले तोलो फिर बोलो। चिंतनपूर्वक हमारा बोलने का अभ्यास होना चाहिए। गुस्से से भी भाषा सदोष हो सकती है। गुस्से को नियंत्रण में रखो, गुस्से को पी जाओ यह एक प्रसंग से समझाया कि हमारी वाणी में गुस्सा या गालियाँ ना आ जाएँ।
बिना समझे वाणी से झूठा आरोप लगा देना अभ्याख्यान पाप है। सत्य बोलना उचित नहीं तो मौन रह जाएँ। गृहस्थ भी झूठ बोलने से बचने का प्रयास करें। यह एक प्रसंग से समझाया कि वाणी से पता चल जाता है कि सामने वाला व्यक्ति कैसा है। आवाज सुनकर आदमी पहचान कर सकता है। जबान पर लगाम भी रहनी चाहिए। मधुरता और सच्चाई भाषा का आभूषण है। हमें भाषा में इसलिए संयम रखना चाहिए कि पाप कर्म का बंध न हो। मौन का अभ्यास भी अच्छा है। शास्त्रकार ने कहा है कि मित् दोष रहित और हितार्थ पूर्ण भाषा बोलने वाला व्यक्ति सज्जनों में प्रशंसा को प्राप्त करता है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में स्कूल में प्रिंसिपल श्रावक गोदाला, नोखा से महिला मंडल, मरोठी परिवार की बहनें, अवधि, मनीष, तन्वी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।