सम्यक् पुरुषार्थ करने से होता है सफलता का वरण: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सम्यक् पुरुषार्थ करने से होता है सफलता का वरण: आचार्यश्री महाश्रमण

रासीसर, 8 मई, 2022
शासन गौरव मुनि ताराचंदजी स्वामी के संसारपक्षीय पैतृक गाँव रासीसर में तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी का पदार्पण हुआ। शासन गौरव मुनि ताराचंद जी का तो सन् 2019 में देवलोकगमन हो गया था। वे महान साधक, ध्यान योगी और तपोयोगी थे। परमपूज्य ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हम मनुष्य जीवन जी रहे हैं। हम मनुष्यों के लिए चिंतन का विषय यह बनता है कि यहाँ तो मनुष्य है, आगे क्या बनेंगे? देव, नरक और तिर्यंच योनियाँ भी हैं। एक मोक्ष का स्थान भी है। यह मनुष्य जीवन मिला है, कुछ अनुकूलताएँ भी प्राप्त हैं, इसका मतलब है हम पूर्व पुण्य को भोग रहे हैं। पर यह तो क्षय की ओर जा रहा है। पुण्य और धर्म में अंतर है। धर्म आत्म शुद्धि का साधन है। पुण्य निर्जरा धर्म के साथ बंधने वाला कर्म है। पुण्य कर्म से अनुकूलताएँ और पाप कर्म से प्रतिकूलताएँ मिलती हैं। पुण्य प्राप्त करना अध्यात्म की दृष्टि से कोई बड़ी-आदरणीय बात नहीं है। पुण्य की लालसा नहीं करनी चाहिए। इच्छा करें तो यह करें कि मेरी आत्मा शुद्ध बनें, मैं कभी मोक्ष को प्राप्त करूँ। मनुष्य जन्म मोक्ष का द्वार है। ऐसे थोड़े मनुष्य होते हैं, जो इस मनुष्य जीवन से मोक्ष चले जाते हैं। मनुष्य गति तो नरकगति और तिर्यंच गति का भी द्वार है। और गति में तो और प्राणी जा सकते हैं, पर मोक्ष में तो मनुष्य गति के द्वारा ही जाया जा सकता है।
जो पुरुषार्थ को मानता है, लक्ष्मी उसका वरण करती है। भाग्य भरोसे बैठे रहने वाला अभागा है। पुरुषार्थ करने वाले को एक बार असफलता मिल सकती है, पर लगातार पुरुषार्थ करने वाला सफल अवश्य होता है। हमें सम्यक् पुरुषार्थ करना चाहिए। मनुष्य जन्म के रूप में हमें एक पूँजी मिली है। पाप करने वाला नरक या तिर्यंच गति में जाता है, उसने मूल पूँजी गँवा दी। कोई आदमी जो न धर्म करता है, न पाप करता है, वह मनुष्य बन सकता है, मूल पूँजी सुरक्षित रह गई। जो तपस्या, साधना, धर्म, आध्यात्मिक सेवा आदि अच्छे काम करते हैं, वे मनुष्य मरकर देव गति में जा सकते हैं, कोई मोक्ष में भी जा सकता है, इसका मतलब मूल पूँजी को कितना बढ़ा लिया। मनुष्य जन्म के रूप में हमें महत्त्वपूर्ण अवसर मिला है। गृहस्थ जीवन में पैसा कुछ है, पर सब कुछ नहीं है। येन-केन प्रकारेण आदमी पैसा कमाने का प्रयास न करे। पैसे के साथ शांति रहे। ईमानदारी बड़ी संपत्ति है। कौड़ी के लिए करोड़ को न खोएँ। बेईमानी का पैसा अशुद्ध पैसा है। सद्गृहस्थ बनकर पाप के पैसे से बचने का प्रयास करें। इच्छाओं की सीमा करें। व्यक्तिगत जीवन में पैसा होते हुए भी सादगी और शांति रहे। जीवन में संयम रहे। गृहस्थ जीवन में अर्थ, काम के साथ धर्म और मोक्ष की बात भी रहे। आत्मा के लिए भी कुछ समय निकालें। हर काम के साथ धर्म को जोड़ दें। शांति से जीएँ, सत्पुरुषार्थ करें, धर्म को भी जीवन में रखें। हमारा ये जीवन भी अच्छा और आगे का भी अच्छा। आज रासीसर आना हुआ है। हम तीन बातें बताते रहें हैंµसद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति। स्थानीय लोगों को तीनों प्रतिज्ञाएँ स्वीकार करवाई।
रासीसर जो मुनि जितेंद्र कुमार जी एवं मुनि नयकुमार जी की पैतृक भूमि है। दोनों मुनिवृंद ने अपनी पैतृक भूमि पर पूज्यप्रवर के पधारने पर स्वागत किया। साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि भारत की अध्यात्म प्रधान संस्कृति ने ऋषियों-मुनियों को सदैव सम्मान दिया है। विरले लोग होते हैं, जो आत्मा के शुद्ध स्वरूप परमात्मा को पाना चाहते हैं, पर कईयों को उस मार्ग को बताने वाले नहीं मिलते हैं। मार्ग उपलब्ध नहीं होता है। मार्ग उपलब्ध न होने पर वह इधर-उधर भटक जाता है, परमात्म पद को प्राप्त नहीं कर सकता है। अच्छे गुरु परमात्म पद का मार्ग उपलब्ध करा सकते हैं। साध्वी पुलकितयशा जी एवं साध्वी कुसमप्रभाजी ने गीत से पूज्यप्रवर का अभिवंदन किया एवं अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में तेरापंथ सभा अध्यक्ष सुनील सुराणा, तेरापंथ महिला मंडल, रासीसर ग्राम सरपंच हरिराम सीगड़, हिमांशी सुराणा, यश आंचलिया, दर्शन सुराणा, मुदित सुराणा, कन्या मंडल, गंवरा देवी छाजेड़, वीरेंद्र छाजेड़, छाजेड़ परिवार की बहनें, रुची जैन ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि शांति पाने के लिए गुरु चरण में आना होता है।