व्यक्ति के जीवन में रहे साधुता, सज्जनता और सृजनता की भावना: आचार्यश्री महाश्रमण
रीको-रतनगढ़, 2 जुलाई, 2022
बरसात हो या तूफान, सर्दी हो या गर्मी हर परिस्थिति में सम रहने वाले समता के महान साधक आचार्यश्री महाश्रमण जी 14 किलोमीटर का विहार कर रतनगढ़ के रिक्को औद्योगिक क्षेत्र स्थित मरुधर टेक्स्टाइल के परिसर में पधारे। मुख्य प्रवचन में क्षमामूर्ति आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि सब प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है, किसी के साथ मेरा वैर नहीं है। मैं सबको खमाता हूँ, सब मुझे क्षमा करें। प्रतिदिन एक बार यह श्लोक उच्चारित हो जाए या मन में उच्चरित हो जाए। यह क्षमा धर्म की आराधना का एक तरीका हो सकता है। कल्मष को धोने का प्रयास हो जाता है।
क्षमा का मतलब हैµसहिष्णुता, सहन कर लेना। जीवन में शारीरिक, वाचिक या मानसिक प्रतिकूलता आ सकती है। वैचारिक विरोध की स्थितियाँ भी हो सकती है। इन सब स्थितियों में अपने आपको संतुलित रखना, शांति से सहन कर लेना खास बात होती है।
कमजोर, दुर्बल है वो कुछ बोले नहीं, वो बड़ी बात नहीं। सक्षम है, फिर भी नहीं बोलना यह अच्छी क्षमा की साधना हो सकती है।
जिस आदमी के हाथ में क्षमा रूपी खड्ग है, दुर्जन उसका क्या करेगा? जहाँ घास-फूस हो वहाँ चिनगारी पड़े तो लपटें उठ सकती हैं। साफ मैदान है, वहाँ चिनगारी पड़ेगी तो चिनगारी शांत हो सकेगी, लपटें उठने वाली बात सामान्यतया लगती नहीं। अकेला बोलते-बोलते आदमी शांत हो जाएगा, कारण सामने वाले से खुराक नहीं मिलती।
क्षमा के हथियार से सज्जनता के सामने दुर्जनता को प्रणत होना पड़ता है। सज्जन और दुर्जन में अंतर यही है कि तीन चीजें हैंµविद्या, धन और शक्ति। इन तीन के उपयोग में सज्जन और दुर्जन का अंतर होता है। दुर्जन के पास विद्या है, तो विवाद बढ़ाने का प्रयास करेगा। धन का अहंकार करता है। शक्ति है, बलवान है, तो उसका दुरुपयोग करेगा। सज्जन विद्या से ज्ञान और बढ़ाएगा। धन का दान में उपयोग करेगा। शक्ति से दूसरों की सहायता करेगा।
आदमी को साधुता, सज्जनता, सृजनता की भावना रखनी चाहिए। सहन करना चाहिए। आवेश नहीं करना चाहिए। धीर-गंभीर, सहिष्णु और सज्जन आदमी को गालियाँ भी दे दो वे आपा नहीं खोते। मौके पर जवाब दिया जा सकता है।
हर बात का जवाब देना भी मेरे ख्याल से जरूरी नहीं होता है। आलोचना का जवाब अच्छे कार्यों से दो। काम अच्छा करोगे तो आज जो निंदा करने वाले हैं, कल वे समर्थक भी हो सकते हैं। आदमी को अक्षमा में नहीं जाना चाहिए, असहिष्णु नहीं बनना चाहिए और अपनी शक्ति का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।
हमारी शक्ति किसी के कल्याण में लगे। किसी को चित्त समाधि देने या भले कार्य करने में हमारी शक्ति लगे। हमारी शक्ति अपव्यय के रूप में नहीं जानी चाहिए। क्षमा धर्म महान धर्म है। क्षमा धर्म की आराधना करें। सहन करें, शांति रखें। यह अच्छी बात हो सकती है।
पूज्यप्रवर के स्वागत में नरेंद्र के बड़े भाई सुरेंद्र बैद ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।
पूज्यप्रवर ने बैद परिवार को आशीर्वचन फरमाया। नैतिकता, ईमानदारी रखने का प्रयास रहे।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि हमारे जीवन में दूसरों को सम्मान देने का भाव होना चाहिए।