अपनी आजीविका के अर्जन में रखें शुद्धता: आचार्यश्री महाश्रमण
मोमासर, 28 जून, 2022
ऊर्जा के महान स्रोत युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी 12 किलोमीटर विहार कर मोमासर के नवीनीकृत तेरापंथ भवन के प्रांगण में पधारे। देश-विदेश से समागत मोमासरवासी पूज्यप्रवर की अगवानी में श्रद्धाप्रणत भाव से उपस्थित थे। भवन में पदार्पण से पूर्व आचार्यप्रवर के मंगलपाठ से मोमासर में आचार्य महाश्रमण स्टेडियम का उद्घाटन भी किया गया। मुख्य प्रवचन में परम पावन ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी के भीतर अनेक वृत्तियाँ होती हैं। दुर्वृत्तियों में माया, ईर्ष्या, घृणा, लोभ, आक्रोश है। सद्वृत्तियों में मैत्री, करुणा, दया, निरहंकारता, ऋजुता, संतोष है। जब तक आदमी परमात्म पद या वीतरागता को प्राप्त नहीं हो जाता है, तब तक दुर्वृत्तियों का भी प्रभाव रहता है। दुर्वृत्तियों में एक है-लोभ जो ऐसी दुर्वृत्ति है कि वो एक मूल है, फिर उससे अनेक शाखाएँ-परशाखाएँ दुर्वृत्ति भी निकल सकती हैं। लोभ न रहे तो फिर न माया हो सकती है, न अहंकार, न आक्रोश, न घृणा और न भय।
लोभ की वृत्ति अति शक्तिशाली होती है। लोभ पाप का बाप होता है। लोभ है, तो अनेक कषाय उपजीवी उसके साथ रहने वाले हो सकते हैं। लोभ किसी का प्रबल होता है, किसी का दुर्बल होता है। अध्यात्म की साधना में लोभ को कम करने का प्रयास करना, यह एक साधना का अंग है। आदमी को लाभ होता है, तो लाभ के निमित्त से लोभ और बढ़ सकता है। गृहस्थ में रहते हुए भी लोभ आदि कषायों को कितना कम कर सके, प्रतनूं कर सके। धर्म का मानो सार है-मनुष्य के राग-द्वेष व कषाय प्रतनूं बने। लोभ अर्थ के साथ भी जुड़ा हुआ रहता है। अर्थ अर्जन के प्रयास में आदमी ईमानदारी को भी छोड़ देता है।
आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने संभवतः दो शब्द फरमाए-अर्थ और अर्थाभास। न्याय से उपर्जित धन अर्थ है। अन्याय-अनीति से अर्जन होने वाला पैसा अर्थाभास है। अर्थाभास न हो तो लोभ को नियंत्रित करने का प्रयास हो सकता है। झूठा आरोप किसी पर नहीं लगाना चाहिए। उसमें भी लोभ जुड़ा होता है। झूठा आरोप लगाना अभ्याख्यान पाप है। गृहस्थ अपनी आजीविका अर्जन में भी शुद्धता रखे। टैक्स देने में भी चोरी न हो। ऐसा चिंतन गृहस्थ में हो तो वे अच्छे लोग बन सकते हैं। श्रावक इच्छापरिमाण करे एवं भोग-उपभोग का जीवन में सीमाकरण करे। जीवन में ज्ञान-साधना एवं अच्छे व्यवहार व उच्च विचारों का महत्त्व है। आदमी की योग्यता, चिंतन-शक्ति, नेतृत्व शक्ति विद्वता और सृजन शक्ति कैसी है, उसका अधिक महत्त्व है।
हमें जीवन में ज्यादा लोभ में न जाकर, बाह्य दिखावे में न जाकर जीवन में अच्छा काम करें, सेवा करें। हमें मानव जीवन प्राप्त है। आदमी दूसरों के लिए क्या करता है, वो खास बात है। दूसरों की आध्यात्मिक सेवा करें। दूसरों के लिए अपना त्याग करना बड़ी बात होती है। गृहस्थ जीवन में अच्छे कार्यों का विकास हो। आज हमारा मोमासर आना हुआ है। हमारे श्रावक भी हैं-अन्य लोग भी हैं। सभी में आपसी सौहार्द है। आज भी यहाँ से अच्छे कार्यकर्ता हैं। समर्पण की भावना है। मोमासर में सबमें आध्यात्मिक-धार्मिक भावना रहे। हमारे आने से कितने का आना हो गया। श्रावक समाज में चेतना है। वर्तमान में मुनि धर्मरुचि जी मोमासर से हैं। साहित्य के क्षेत्र में आपका अच्छा योगदान है।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि एक माह में दो पक्ष होते हैं-कृष्ण पक्ष, शुक्ल पक्ष। कृष्ण पक्ष अंधकार का प्रतीक है। शुक्ल पक्ष प्रकाश का प्रतीक है। चंद्रमा की कलाएँ दोनों में समान हैं, पर ये सब पुण्य प्रबल से प्राप्त होता है। यश व्यक्ति को अपने पुण्य से मिलता है। मोमासर की धरती यशस्वी धरती है। पुण्यवत्ता के कारण ही यहाँ समय-समय पर आचार्यों का पदार्पण हो रहा है।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में मुनि धर्मरुचि जी स्वामी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। साध्वीप्रमुखाश्रीजी, मुख्य मुनिजी व साध्वीवर्याजी भी पदस्थ होने के बाद पहली बार पधारी हैं। साध्वी कमलयशाजी ने गीत से, साध्वी आरोग्यश्री जी एवं साध्वीवृंद ने गीत से पूज्यप्रवर की अभिवंदना की। पूज्यप्रवर के स्वागत में स्थानीय अध्यक्ष जगत सिंह संचेती, तेरापंथ महिला मंडल गीत, ग्रामवासियों की तरफ से सरपंच सरील संचेती, पदमचंद पटावरी, दानाराम, कन्हैयालाल पटावरी, चंदा देवी बोथरा (तेरापंथ महिला मंडल), तेयुप अध्यक्ष नितेश बाफना, सुरेंद्र बोरड़ (बेल्जियम), शांतिलाल पटावरी, राजेंद्र संचेती, सुखराज सेठिया, अशोक संचेती, पुष्पा नाहटा, सुरेंद्र सेठिया, पन्नालाल संचेती, विधि सेठिया, रूबी चोरड़िया ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।