आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का 103वाँ जन्म दिवस
कटक, उड़ीसा।
आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का 103वाँ जन्म दिवस प्रज्ञा दिवस समारोह का आयोजन मुनि जिनेश कुमार जी के सान्निध्य में महेश्वरी भवन में तेरापंथी सभा द्वारा आयोजित किया गया। इस अवसर पर मुनि जिनेश कुमार जी ने कहा कि आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी अध्यात्म जगत के महासूर्य थे। वे व्यक्ति नहीं विचार थे। उनके विचारों में मौलिकता, ज्ञान की गंभीरता और अनुभूति की प्रमुखता थी। उनका जन्म साधारण बालक की तरह हुआ, लेकिन वे असाधारण विशेषताओं के समन्वय थे। वे प्रकृति से सहज, सरल, विनम्र थे। उनकी साधना बेजोड़ थी।
मुनिश्री ने आगे कहा कि उनका जन्म खुले आकाश में हुआ। इसलिए उनका चिंतन खुले आकाश की तरह व्यापक था। आचार्य महाप्रज्ञ ने आगम संपादन का दुरह कार्य कर जैनशासन की अपूर्व सेवा की। उन्होंने जैन दर्शन व अन्य दर्शनों व समसामयिक विषयों पर 300 से अधिक ग्रंथ लिखे हैं। योगी, प्रवचनकार ही नहीं अपितु कुशल प्रशासक भी थे। उनकी प्रज्ञा जागृत थी। वे अतीन्द्रिय चेतना के धनी थे।
बाल मुनि कुणाल कुमार जी ने गीत का संगान किया। मुख्य अतिथि मनोरंजन माहंती ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि एक सुंदर जीवन का दूसरा नाम हैµआचार्यश्री महाप्रज्ञ। कार्यक्रम का शुभारंभ तेरापंथ कन्या मंडल के मंगलाचरण से हुआ। स्वागत भाषण तेरापंथी सभा के उपाध्यक्ष हनुमानमल सिंघी ने किया। ज्ञानशाला ज्ञानार्थियों ने महाप्रज्ञ अष्टकम् व महाप्रज्ञ के जीवन प्रसंगों को परिसंवाद के माध्यम से प्रस्तुति दी। तेरापंथ भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष हीरालाल खटेड़, तेममं की अध्यक्ष हीरा देवी बैद, तेयुप के मंत्री मनीष सेठिया, उपासक राजेंद्र लुणिया ने अपने विचार व्यक्त किए। तेममं ने सुमधुर संगान किया। आभार ज्ञापन तेरापंथी सभा के मंत्री चैनरूप चोरड़िया व संचालन मुनि परमानंद जी ने किया। मुख्य अतिथि का साहित्य द्वारा सम्मान किया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण उपस्थित थे।