मानवता के मसीहा व संपूर्ण विभूति थे आचार्यश्री तुलसी
चंडीगढ़।
आचार्यश्री तुलसी परम आध्यात्मिक, मानवता के मसीहा, एक संपूर्ण विभूति थे। बीसवीं सदी के आध्यात्मिक क्षितिज पर प्रमुखता से उभरने वाले एक महान संत आचार्यश्री तुलसी की स्मृति का अर्थ है-समाज और देश को उन्नति की दिशाओं की ओर अग्रसर करना, क्योंकि देश की ज्वलंत राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में अप्रतिम योगदान रहे हैं। यह विचार मनीषी संत मुनि विनयकुमार जी ‘आलोक’ ने आचार्यश्री तुलसी की पुण्यतिथि के अवसर पर अणुव्रत भवन के तुलसी सभागार में व्यक्त किए। मुनिश्री ने कहा कि आचार्यश्री तुलसी इस युग के क्रांतिकारी आचार्यों में एक हैं। जैन धर्म को जन धर्म के रूप में व्यापकता प्रदान करने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष पूनम शर्मा ने कहा कि नैतिक क्रांति, मानसिक शांति और व्यक्तित्व निर्माण की पृष्ठभूमि पर आचार्यश्री ने तीन अभियान चलाए-अणुव्रत आंदोलन, प्रेक्षाध्यान और जीवन-विज्ञान। ये तीनों की अभियान अनुपम हैं, अपूर्व हैं और अपेक्षित हैं।
पंजाब अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य डॉ0 सलील जैन ने कहा कि आचार्यश्री तुलसी एक महान आगम-पुरुष हैं। उनके वाचन प्रमुखत्व में उनके सफल उत्तराधिकारी आचार्य महाप्रज्ञ ने अपने संपादन कौशल से जैन वाङ्मय को आधुनिक भाषा में प्रस्तुति देने का गुरुतर कार्य किया है। विजय गोयल ने कहा कि आचार्यश्री अपने परिचय में कहते हैं-मैं सबसे पहले मानव हूँ, उसके बाद धार्मिक हूँ, उसके बाद जैन हूँ, और उसके बाद तेरापंथ का आचार्य हूँ। आचार्य तुलसी के इन्हीं क्रांतिकारी विचारों का परिणाम है कि जो तेरापंथ एक संघीय सीमा में आबद्ध था, वह आज न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुका है। कार्यक्रम का संचालन पंजाब अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य डॉ0 सलिल जैन ने किया।