उपासना
आचार्य यशोभद्र
यशोभद्र स्वामी भगवान् महावीर के पाँचवें पट्टधर थे। वे आर्य शय्यंभव के उत्तराधिकारी थे। श्री शय्यंभव के पास बाईस वर्ष की युवावस्था में संयमी बने। चौदह वर्ष तक उनके पास रहकर चौदह पूर्वों का ज्ञान अर्जित किया। छत्तीस वर्ष की आयु में आर्य शय्यंभव के सुयोग्य पट्टधर बने। आचार्य सम्भूतविजय और आचार्य भद्रबाहुये दोनों ही उनके शिष्य थे। आर्य यशोभद्र तक एक आचार्य की परंपरा रही। उन्होंने उन दोनों को आचार्य बनाकर जैन शासन में एक नई परंपरा को जन्म दिया। आर्य यशोभद्र अपने संयम पर्याय के चौंसठ वर्ष के समय में पचास वर्ष तक आचार्य पद पर रहे। उनके सबल और सक्षम व्यक्तित्व और कर्तृत्व के बल पर प्रलंब शासनकाल भी बहुत सुखमय, प्रशांत व प्रभावक रहा। वे छियासी वर्ष की आयु में वीर निर्वाण 148 (वि0पू0 322) में दिवंगत हुए।