अर्हम्
समणी पुण्यप्रज्ञा
नवोदित नवम साध्वीप्रमुखा का करते हैं अभिवंदन।
विश्रुतविभा साध्वीगण आभा स्वीकारों सविनय वंदन।।
तुलसी गुरु की दूर दृष्टि का करते हम अभिनंदन।
समण श्रेणी के भाल तिलक को भावभरा है वंदन।।1।।
महाप्रज्ञ आभावलय से भावित पावन कुंदन।
साध्वीप्रमुखा गण आँगन में बरसो शीतल चंदन।।2।।
ज्ञान ध्यान के गंगोदक से महाप्रज्ञ विभ ने था सींचा।
अपरिमित उस कृपा भाव को तुमने भीतर था खींचा।।3।।
दिया महाश्रमण गुरुवर ने साध्वीप्रमुखा पद पावन।
गण में है अम्बार खुशी का जयकारी भैक्षव शासन।।4।।
शिखर चढ़ी सफलता के लेकर आध्यात्मिक बल ऊँचा।
वर्धापित करता है तुमको, समणी गण आज समूचा।।5।।