विरोध को विनोद में बदल देते थे - आचार्य भिक्षु
बोइनपल्ली
आचार्य भिक्षु के जन्म दिवस पन अपने विचारों की अभिव्यक्ति देते हुए साध्वी मधुस्मिता जी ने कहा कि आचार्य भिक्षु अखंड व्यक्तित्व के धनी थे। उनका शारीरिक स्वास्थ्य उन्हें अंतिम समय तक साथ देता रहा। खड़े-खड़े प्रतिक्रमण करना, बिना थके दिन-रात परिश्रम करते रहना उनकी स्वास्थ्य संपदा का प्रतीक है। बचपन से लेकर जीवन के संध्या काल तक उनका बुद्धिबल अप्रतिहत रहा। वे प्रत्युत्पन्न मति थे। उनका साहित्य सृजन उनकी प्रबुद्ध चेतना का सफल प्रमाण है। उनकी रचनाओं में सहजता, सुंदरता, मधुरता और स्पष्टता के विशिष्ट गुणों के साथ उनका फक्कड़पन भी निखरकर सामने आया है। उनमें विरोध को विनोद में बदलने की अपूर्व क्षमता थी। आचार्य भिक्षु के भीतरी परिवेश में उनकी सहजता, समता, आदर्शवादिता, अकिंचनता और स्पष्टवादिता आदि ऐसे अनेक बिंदु हैं, जिन्होंने एक युग पुरुष के रूप में उनको प्रतिष्ठित किया है।
कार्यक्रम का मंगलाचरण बोइनपल्ली के महिला मंडल ने किया। नवीन सुराणा, टीपीएफ के सहमंत्री वीरेंद्र घोषल, रचना दुगड़, मधुर गायिका ममता दुगड़, यश दुगड़, साध्वी मल्लिप्रभा जी ने गीत, कविता और वक्तव्य के द्वारा प्रस्तुति दी। ॠषभ दुगड़ ने सात की तपस्या में दर्शन किए व साध्वीश्री जी ने स्वरचित पद्यों के द्वारा तप की अनुमोदना की व आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। तपस्वी को साहित्य भेंट किया गया। साध्वी सहजयशा जी ने कार्यक्रम का संचालन किया। आभार ज्ञापन सतीश दुगड़ ने किया।