प्रमाद से भी पास हो जाए तो आलोयणा लेकर शुद्धि की जा सकती है: आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 29 जुलाई, 2022
धर्मोपदेशक, महामनीषी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने धर्म देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में एक प्रकरण-18 पाप आदि क्रिया के संदर्भ में आया है। प्रश्न किया गया है कि भंते! जीवों के प्राणातिपात क्रिया होती है? हाँ होती है। अठारह पाप हमारे यहाँ बताए गए हैं। यहाँ पाप शब्द की जगह क्रिया शब्द का प्रयोग किया गया है। क्रिया का सामान्य अर्थ है-निष्पन्न या हलन-चलन। प्रस्तुत प्रकरण में क्रिया का अर्थ है-कर्म, प्रवृत्ति। पाप शब्द संभवतः आगम में नहीं आता प्राणातिपात आदि के संदर्भ में क्रिया शब्द आया है, क्रिया से पाप का बंध होता है। 18 क्रियाएँ हो जाती हैं। इनके संदर्भ में तात्त्विक दृष्टि से तीन चीजें हैं। एक तो है-प्राणातिपात पाप स्थान, दूसरी चीज है-प्राणातिपात क्रिया और तीसरी चीज है प्राणातिपात परिणति।
कोई आदमी राग-द्वेष में आकर प्राणातिपात करता है, उसका कारण है प्राणातिपात पाप स्थान, पहले उसके ऐसा कर्म बंधा हुआ है, उसके प्रभाव से आदमी प्राणातिपात की क्रिया करता है। वर्तमान में वो राग-द्वेष से प्राणातिपात कर रहा है, वो प्राणातिपात क्रिया हो जाती है। प्राणातिपात क्रिया से जो कर्म का बंध होता है, वो है प्राणातिपात की परिणति। वैसे ही ये शेष 17 क्रियाओं के साथ जुड़ी है। इन 18 क्रियाओं से आत्मा पापों से भारी बनती है। हमें यह करना चाहिए कि इन 18 पापों से कितना बचा जा सके। साधु के तो जीवन भर के सावद्य का त्याग होता है, पर फिर भी प्रमाद से छद्मस्थ अवस्था में इन क्रियाओं का सेवन हो सकता है। पर साधु उनकी आलोयना लेकर शुद्ध हो जाए। कई छोटे-छोटे दोषों से साधुपन नहीं जा सकता है।
पर दोष लग जाता है। इसलिए प्रतिक्रमण- आलोयणा से शुद्धि हो सकती है। बड़े दोष के सेवन से तो दोबारा दीक्षा लेनी पड़ती है। गृहस्थ भी छोटे-छोटे त्याग ले सकता है। साधु की सामायिक 6 कोटि की, 8 कोटि की या नौ कोटी की हो सकती है। फिर भी साधु के त्याग और गृहस्थ के 9 कोटि के त्याग में बड़ा अंतर है। गृहस्थ ने नौ कोटि की सामायिक ले ली पर सांसारिक सावद्य का संबंध लगा रहता है। सामायिक-पौषध में भी कोई अतिचार लग जाए तो उसकी आलोयणा ले लें। श्रावक के व्रत-नियम में निर्मलता रहे, वो प्रयास हो। साधु के प्राणातिपात के त्याग सापेक्ष है। हो जाए तो आलोयणा ले लो। साधु की विधियों में कुछ अपवाद मान्य है, सम्मत है। प्रमाद से भी हिंसा हो जाए तो आलोयणा लेकर शुद्धि की जा सकती है। श्रावक भी सामायिक में मोबाइल का उपयोग न करे। 18 पाप में दोष लग जाए तो आलोयणा लेकर शुद्धि कर लो। हमारा रास्ता साफ हो जाएगा।
पूज्यप्रवर ने कालू यशोविलास का वाचन करते हुए फरमाया कि डालगणी ने सुवाचार्य नियुक्ति पत्र लिखकर संघ को निश्चित कर दिया। लाडनूं के ठाकुर आनंद सिंह के मन में जिज्ञासा हुई कि किस संत का नाम युवाचार्य के रूप में लिखा गया है। डालगणी के पास आए और अपनी जिज्ञासा रखी। दो-तीन बार अर्ज करने पर डालगणी ने व्यवस्था में उपस्थित मुनि से कहा कि मुनि कालू जी बुलाओ। मुनि कालू अपना कार्य छोड़ सेवा में पधारे तो डालगणी ने फरमाया कि जिस काम के लिए बुलाया वो हो गया। लोगों ने जब ठाकुर साहब से पूछा तो ठाकुर साहब बोले कि गुरु ने मुझे संकेत दिया वो गुरु की महत्ता है, पर मैं उनका रहस्य खोलूँ तो मेरी लघुता है।
गुरुदेव तुलसी ने इस ग्रंथ में इस बात पर समीक्षा भी की है कि पूज्य डालगणी ने प्रच्छन्न रूप से युवाचार्य की घोषणा क्यों नहीं की। डालगणी श्रीमुनि कालू को विशेष महत्त्व नहीं दे रहे हैं, पर कुछ बातों में आगे भी बढ़ा रहे हैं। साध्वियों की व्यवस्था के समय मुनि कालू को पास रखना, लाडनूं सेवा केंद्र की व्यवस्था के लिए सुजानगढ़ से लाडनूं भेजना, प्रतिक्रमण सुनना व अंतिम समय में आराधना की ढालें सुनाने का दायित्व देते हैं। संस्कृत भाषा की जानकारी करनी हो तो मुनि कालू से जानकारी करने का कहते थे। कई रूपों में मुनि कालू का उपयोग कर रहे हैं।
जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित पुस्तक संबोधि का अंग्रेजी भाषा में संस्करण जो साध्वी वीरप्रभाजी एवं सोनल पीपाड़ा द्वारा अंग्रेजी भाषा में ट्रांसलेशन किया है, पूज्यप्रवर के करकमलों में लोकार्पित किया गया। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। साध्वी वीरप्रभाजी ने इस पुस्तक के संदर्भ में अपनी भावना व पूज्यप्रवर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। सोनल पीपाड़ा ने गीत की प्रस्तुति दी। सोनल पीपाड़ा ने आज पारमार्थिक शिक्षण संस्था में पूज्यप्रवर की सन्निधि में प्रवेश लिया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।