सफलता का वरण करने के लिए करें सम्यक् पुरुषार्थ : आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 7 अगस्त, 2022
जिनवाणी के व्याख्याता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में एक प्रश्न किया गया कि भंते! दो आदमी हैं। दोनों आपस में युद्ध करते हैं। दोनों समान हैंµउम्र में, त्वचा में और युद्ध सामग्री में। इन दोनों में से एक जीत जाता है और दूसरा हार जाता है, यह किस कारण से हुआ? उत्तर दिया गया कि गौतम! सवीर्य जीतता है, अवीर्य पराजित होता है। पुनः पूछा गया कि यह किस कारण से तो उत्तर दिया गया कर्म के कारण। जिसके ये वीर्य बाह्य कर्म उदीरण नहीं होते हैं, उपशांत होते हैं, वह तो जीतता है। जिसके ये कर्म उदीरण हो जाते हैं, उपशांत नहीं होते वह व्यक्ति पराजित हो जाता है। अनेक बातों में समानता होने पर भी एक विजय को प्राप्त करता है। दूसरा पराजय को, इसमें कर्म का योगदान होता है।जो शक्तिशाली होता है, तो अल्प सामग्री वाला भी जीत सकता है। जैसे राम ने रावण पर विजय प्राप्त कर ली। महान पुरुषों में जो सत्त्व होता है, शक्ति और पराक्रम होता है, उसमें क्रिया सिद्धि, सफलता रहती है। उपकरण तो कुछ गौण बात है। साधन सामग्री को किस तरह कलापूर्ण काम में लेना यह भी महत्त्वपूर्ण होता है। कर्म का अपना मुद्दा है।
भगवती सूत्र में वीर्य की बात आई है। हमारे जीवन में शक्ति का बहुत महत्त्व है। कमजोर होना एक तरह का अभिशाप है। दुनिया में अनेक प्रकार के बल होते हैं। धन बल, जन बल, बुद्धि बल, मनबल, वचन बल और तन बल होते हैं। बल है, तो आदमी को बल का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। मेरे सामने प्रेक्षाध्यान के शिविरार्थी बैठे हैं। प्रेक्षाध्यान शक्ति जागरण का माध्यम बन सकता है। अध्यात्म की शक्ति का अध्यात्म में ज्यादा उपयोग लें। प्रेक्षाध्यान से आत्मबल, मनोबल जागृत करने का प्रयास किया जाए। चेतना की जागरण में प्रेक्षाध्यान का प्रयोग किया जाए तो प्रेक्षाध्यान भी एक शक्ति है। मैं चित्त शुद्धि के लिए प्रेक्षाध्यान का प्रयोग करूँ। हमारे जीवन में भाग्य की भी अपनी भूमिका है। पुरुषार्थ का भी अपना महत्त्व है। आदमी को भाग्य भरोसे नहीं बैठना चाहिए। उद्यमी-पुरुषार्थी आदमी है, लक्ष्मी उसका वरण करती है। भाग्य भरोसे बैठने वाले कुत्सित आदमी हैं। भाग्यवाद को अलग रखकर अपनी शक्ति को पुरुषार्थ करो। भाग्य हमारा है, वैसा है। कर्तव्य हमारा यह है कि हम अच्छा पुरुषार्थ करते रहें। अच्छे पुरुषार्थ से भाग्य अनुकूल बन सकता है। मैं हूँ अपने भाग्य का निर्माता।
पुरुषार्थ करने पर भी कभी सफलता नहीं मिलती है, दोबारा फिर पुरुषार्थ करो। असफलता से हर बार निराश नहीं होना चाहिए। हर असफलता एक नई सफलता प्राप्त कराने में निमित्त बन सकती है। अगर उस असफलता से कोई सबक ले लिया जाए, आदमी को झट-पट निराश नहीं होना चाहिए। चलते-चलते मानो गिर ही गए, पर खड़े होकर ठीक हो जाएँ, आगे चलें, मंजिल मिल जाएगी। जीवन में आदमी को वीर्यवान रहना चाहिए। आदमी को सम्यक् पुरुषार्थ-विवेकपूर्ण पुरुषार्थ करना चाहिए। यह एक प्रसंग से समझाया कि पुरुषार्थ ऐसा करना चाहिए, जिससे सफलता मिल सके। हर चीज पुरुषार्थ से मिल ही जाएगी, कहना मुश्किल है। एक सीमा तक पुरुषार्थ किया जा सकता है। अभवी को भवी नहीं बनाया जा सकता है। जो सवीर्य है, वो जीतता है। हमें अपने जीवन में शक्ति का सम्यक्त्व, निरवद्य, अच्छे क्षेत्र में उपयोग करना चाहिए। वो उस शक्ति की अच्छी सार्थकता हो सकती है।
परम यशस्वी ने कालू यशोविलास का विवेचन करते हुए फरमाया कि पूज्य कालूगणी सुजानगढ़ में चतुर्मास करा रहे हैं। दीक्षा भी हुई है। मेवाड़ के लोग अर्ज करने आए हैं कि गुरुदेव अब मेवाड़ पर भी महर करवाओ। मेवाड़ की धरती बाट जोव रही है। आप ठाट-बात से पधारो। थली में आप इतने विराज गए हैं। कालूगणी ने मेवाड़ पधारने की स्वीकृति प्रदान करा देते हैं। छोगांजी कालूगणी से शिकायत रूप में अर्ज कर रहे हैं कि मैं कैसे मेवाड़ जा पाऊँगी। मैं तो जीवन के अंतिम पड़ाव में हूँ। पुनः आपके दर्शन कब होंगे। कालूगणी छोगांजी को आश्वासित कर रहे हैं कि जल्दी ही आकर दर्शन देने का भाव है।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि कामनाएँ शल्य के समान हैं। काम भोग भी विष के समान है। विषय की जो विषमता है, वह विष है। विषय संसार भ्रमण का कारण है। विष तो एक जन्म में आदमी को नष्ट कर सकती है। इन कामनाओं एवं विषय व काम भाग की इच्छा मात्र करने से आदमी दुर्गति को प्राप्त हो जाता है। काम के सेवन से प्राणी की बुद्धि भी नष्ट हो जाती है। जो आदमी निरंतर काम-भोग का सेवन करता है या इच्छा करता है, तो उसमें आसक्ति पैदा हो जाती है। क्रोध पैदा हो जाता है, जिससे व्यक्ति में मूढ़ता पैदा होती है। पूज्यप्रवर के दर्शनार्थ नागौर जिला प्रमुख भागीरथ चौधरी पधारे, उन्होंने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। पूज्यप्रवर ने सरदारशहर के 8 वर्ष के लक्षित बरड़िया को अठाई का प्रत्याख्यान करवाया। समणी कुसुमप्रज्ञा जी बीकानेर से लेक्चर देकर आए हैं, अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।