यथार्थ पर श्रद्धा और तत्त्व बोध हो तो सम्यक्त्व पुष्ट रह सकता है : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 19 जुलाई, 2021
ससीम को असीम बनाने वाले आचार्यश्री महाश्रमण जी ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि दो चीजें हैं।एक है सम्यक्त्व और दूसरा हैचारित्र। दोनों महत्त्वपूर्ण है। यह भी सिद्धांत है कि चारित्र के बिना यानी सामायिक चारित्र, छेदोपस्थापनीय चारित्र आदि के बिना सम्यक्त्व तो हो सकता है, परंतु सम्यक्त्व के बिना चारित्र नहीं हो सकता। इसलिए चारित्र का एक आधार सम्यक्त्व बन जाता है।
चारित्र सम्यक्त्वविहीन नहीं हो सकता। एक है, दृष्टिकोण की निर्मलता, दूसरी हैआचरण की निर्मलता। दोनों का संबंध मोहनीय कर्म के साथ है। सम्यक् दर्शन का संबंध दर्शन मोहनीय के साथ और चारित्र का संबंध चारित्र मोहनीय के साथ है।
दर्शन मोहनीय के विलय होने पर सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है, साथ में अनंतानुबंधी चतुष्क का भी विलय चाहिए। चारित्र की प्राप्ति में अप्रत्याख्यानी प्रत्याख्यानी, संजवलन चतुष्क का विलय अपेक्षित होता है।
सम्यक्त्व और चारित्र दोनों रत्न हैं। सम्यक्त्व रत्न से बड़ा कोई रत्न नहीं होता। जाति-जाति में अपने वर्ग में जो उत्कृष्ट होता है, वह रत्न कहलाता है। चारित्र को हटाना सम्यक्त्व के हाथ में है। चारित्र का अविनाभावी संबंध है कि सम्यक्त्व के बिना चारित्र नहीं हो सकता। सम्यक्त्व का बहुत ज्यादा महत्त्व है।
सम्यक्त्व मित्र से बड़ा कोई मित्र नहीं। दूसरे मित्र तो आज हैं, कल छोड़ दें। निर्मलता है, क्षायिक सम्यक्त्व आ गया है तो न तो आत्मा सम्यक्त्व को छोड़ेगी न सम्यक्त्व आत्मा को छोड़ेगा।
सम्यक्त्व से बड़ा कोई बंधु नहीं हो सकता। क्षायिक सम्यक्त्व है, तो हमेशा साथ रहेगा। सम्यक्त्व से बड़ा कोई लाभ नहीं है। भौतिक लाभों के सामने सम्यक्त्व का लाभ बड़ा होता है। सम्यक्त्व की निर्मलता और अस्तित्व के लिए तीन बातों पर ध्यान दिया जा सकता है। कषाय मंद रहे, यह आस्था रहे कि जिनेश्वर भगवान ने जो कहा है, वो यथार्थ है। यथार्थ के प्रति निष्ठा रहे।
झूठ वही बोलता है, जिसमें राग-द्वेष हो। केवली के राग-द्वेष हो नहीं सकता। केवलज्ञानी जो कहता है, वह सब सत्य कहता है। तत्त्व बोध हो। नव तत्त्वों का ज्ञान हो। श्रद्धा तत्त्व-बोध पर आधारित है, तो श्रद्धा मजबूत रह सकती है। यह एक उदाहरण ‘खूँटे की गाय’ से समझाया। डालमुनि के समय के वीरचंद भाई का श्रद्धा का प्रसंग भी समझाया। वीरचंद भाई ने तत्त्व को समझकर श्रद्धा स्वीकार की थी।
यह ऊँची बात होती है, जहाँ तत्त्व को समझकर के श्रद्धा स्वीकार की जाती है। आचार्य भिक्षु ने तो श्रावकों को समझाते-समझाते रात बीता दी। आदमी का दृष्टिकोण यथार्थपरक होना चाहिए। दुराग्रह नहीं होना चाहिए।
आग्रह हीनता, कषाय-मंदता, यथार्थ पर श्रद्धा और तत्त्व बोध हो तो सम्यक्त्व पुष्ट-मजबूत रह सकता है।
जुलाई, 22, 23, 24 को तेरस, चतुदर्शी और पूनम है, श्रावक-श्राविकाओं में तेले की तपस्या हो सकती है। जिनसे हो सके प्रयास करें। पुरुषों में मुनि प्रसन्न जी व मुनि प्रतीक प्रयास करें। बहनों में साध्वियाँ प्रयास कर सकती हैं।
पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए मुनि कुलदीप कुमार जी, मुनि प्रसन्न कुमार जी, मुनि राजकुमार जी, मुनि धैर्यकुमार जी, मुनि मुकुलकुमार जी ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
पूज्यप्रवर ने फरमाया कि हमारे अनेक सिंघाड़े गुरुकुलवास में पहुँचे हैं। मुनि धैर्यकुमार जी ने प्रथम दर्शन किए हैं। खूब सेवा भावना, स्वाध्याय करता रहे। मुनि संजय कुमार जी, मुनि राज कुमार जी व मुनि कुलदीप कुमार जी को भी प्रेरणा प्रदान कराई।
पूज्यप्रवर के स्वागत में समणी हर्षप्रज्ञा जी ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। जेएसटी भीलवाड़ा के अध्यक्ष भैरूलाल चोरड़िया, तेयुप अध्यक्ष संदीप चोरड़िया, मीना बाबेल, टीपीएफ के अध्यक्ष राकेश, आनंदबाला टोडरवाल, कन्या मंडल संयोजिका मनीषा हिरण, ज्ञानशाला संयोजिका सुमन लोढ़ा, किशोर मंडल से ॠषि दुगड़, उपासिका चंद्रकांता चोरड़िया, ज्ञानार्थी कृतज्ञ ने अपनी भावना श्रीचरणों में अभिव्यक्त की।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।