शक्ति संपन्न होकर भी क्षमाशीलता का गुण रखना विशेष बात: आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 11 अगस्त, 2022
आज श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी और पूर्णिमा। हाजरी का दिन और रक्षाबंधन का पर्व। आचार्य भिक्षु के परंपरा पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया है कि भंते! श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अक्रोधत्व, अमानत्व, अमायात्व, अलोभत्व ये प्रशस्त हैं? गौतम के नाम उत्तर दिया गया कि हाँ गौतम अक्रोधत्व, अमानत्व, अमायात्व और अलोभत्व श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए प्रशस्त है। एक साधु को कैसा होना चाहिए, इस संदर्भ में अनेक बातें बताई गई हैं, इनमें चार चीजें और बताई गई हैं, जो साधु के लिए प्रशस्त हैं, हितकर हैं। साधु को गुस्से से बचकर के रहना चाहिए। साधु छठे गुणस्थान में हैं, कषायमंदता कम है, कभी गुस्सा भी आ जाता है। प्रमाद हो सकता है, पर वो आदर्श नहीं है, कमजोरी है। साधु तो प्रसन्न ही अच्छा लगता है।
हमारा आक्रोश भाव न केवल हमारी चेतना को उतप्त बनाने वाला होता है, चेहरे को भी विकृत कर देने वाला हो सकता है। साधु तो शांतिमय रहे। परस्पर व्यवहार अक्रोधपूर्ण, सहयोगपूर्ण हो। समुचित विनयपूर्ण हो। गुस्सा एक बाधक तत्त्व है, जो हमारी परस्परत्व को कटु बनाने वाला सिद्ध हो सकता है। इसी प्रकार अमानत्व। मान-अहंकार नहीं, घमंड नहीं। ज्ञान का घमंड न हो। जो स्वयं में कलाएँ हैं, उनका यथोचित उपयोग करें। शक्ति होने पर भी क्षमाशीलता रखना, अच्छी-विशेष बात होती है। बड़ों को वंदना करना भी अमानत्व है। तीसरी बात हैµअमायात्व। साधु को ऋजु-सरल रहना चाहिए, छल-कपट नहीं। सरलता होने से जीवन में शुद्धता रह सकती है। सरलता के साथ गंभीरता भी रहे।
चौथी बात बताई है कि साधु के लिए अलोभत्व प्रशस्त है। लोभ-लालसा ज्यादा नहीं। कोई भी चीज हो, बहुत बढ़िया के प्रति लालसा न रहे, चीज उपयोगी होनी चाहिए, कीमती की लालसा नहीं रखनी चाहिए। सादगी साधु जीवन के लिए अच्छी है। ये चार चीजें साधु में हैं, तो उसकी आत्मा प्रशस्त है। ज्ञान का विकास करें। वक्तृत्व व गायन कला का विकास हो। कला का भी विकास हो। उनमें आगे बढ़ें। हमारे कषाय, क्रोध, मान, माया, लोभ अविकास की तरफ जाएँ, प्रतनूं बनें। तो साधु जीवन अच्छा रह सकता है। सेवा सापेक्ष वालों की सेवा अच्छी कर सकें, यह विकास हो। हम धर्म की, शासन की, आत्मा की सुषमा को बढ़ाने का प्रयास करें।
चतुर्दशी-हाजरी का वाचन
परम पावन ने हाजरी का वाचन करते हुए आचार्य भिक्षु द्वारा प्रदत्त मर्यादाओं को विस्तार से समझाया। छोटे संतों में ज्ञान का विकास होते रहना चाहिए। जिनके ज्ञान हो गया वे सेवा करें। ज्ञान का व अपनी क्षमताओं का अच्छा उपयोग करें। आपस में प्रेरणा ले-दे सकते हैं। हमारी मर्यादाओं के प्रति जागरूक रहते हुए शासन की सेवा करते रहें। व्याकरण-संस्कृत भाषा का विकास हो। लेख पत्र का वाचन मुनि अर्हम् जी, मुनि रत्नेश जी, मुनि ऋषि जी व मुनि खुश कमार जी ने किया। पूज्यप्रवर ने प्रेरणा के साथ दो-दो कल्याणक बख्शीष करवाए। सामूहिक लेख पत्र का वाचन हुआ।साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी को पद पर आए तीन माह हो गए हैं। आपका भी अच्छा विकास होता रहे। आज रक्षा बंधन भी है। मुनि कुमार श्रमण जी, मुनि विश्रुत कुमार जी को भी रक्षा बंधन पर बहनों को ज्ञानरूपी सेवा देने-लेने की प्रेरणा दी।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि गुरुदेव! मुझे कुछ सोचना नहीं पड़ता है, जो विचार आते हैं, गुरुदेव को निवेदन कर देती हूँ। संवाद हो या समस्या श्रीचरणों में निवेदन कर देती हूँ। निवेदन कर निश्चिंत हो जाती हूँ और आपका मार्गदर्शन मिल जाता है, मुझे तो उसकी क्रियान्विति करनी होती है। मैं आपके आशीर्वाद पर ही आगे बढ़ रही हूँ। आपके मार्गदर्शन से मैं आलोक प्राप्त करती रहूँ। आचार्यश्री महाश्रमण व्यवस्था समिति के अध्यक्ष माणकचंद नाहटा ने अपनी भावना श्रावक समाज के सामने प्रस्तुत की। ममता भंसाली ने 9 की तपस्या के प्रत्याख्यान पूज्यप्रवर से ग्रहण किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।