ज्ञान केवल सर्टिफिकेट न रहकर व्यवहार में झलके : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 25 जुलाई, 2021
शांत सौम्य-मूर्ति आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्रकार ने दो बातें बताई हैं। एक बात हैज्ञान और दूसरी बात है दया यानी आचरण।
आदमी के जीवन में सम्यक् ज्ञान, सही ज्ञान का बड़ा महत्त्व है। उसके साथ या उसके बाद जीवन का आचरण कैसा है, व्यवहार कैसा है, उसका भी बड़ा महत्त्व है। ज्ञान शून्य आचार अपने आपमें अपूर्ण है और आचार शून्य ज्ञान भी अपने आपमें अपूर्ण है। दोनों का महत्त्व है।
विद्यालयों-महाविद्यालयों में ज्ञान दिया जाता है। पर वह ज्ञान कमाई के लिए है। वह एक छोटा लक्ष्य है। जीवन में कैसे शुद्धता रहे, निर्मलता रहे, अच्छा जीवन रहे और आगे भी जीवन के बाद अच्छा रह सके। ये सारी बातें भी ज्ञान से जुड़ें।
शिक्षण संस्थाओं में अनेक विषय पढ़ाए जाते हैं। उनका भी महत्त्व है। यह लौकिक विद्या है। दूसरी विद्या हैआध्यात्मिक विद्या। शिक्षण संस्थानों में आध्यात्मिक विद्या, जीवन विद्या, आत्म विद्या का ज्ञान विद्यार्थियों को दिया जाए। इस ज्ञान का यहाँ भी और आगे के जीवन में भी महत्त्व होता है।
ज्ञान सम्यक् होने से सम्यक् आचार का रास्ता प्रशस्त हो जाता है। पहले ज्ञान हो फिर आचार हो। जाना कहाँ यह मालूम हो तो आगे के मार्ग को देखा जाता है। यह एक दृष्टांत से समझाया। जीवन के हम विभिन्न क्षेत्रों में देखें, ज्ञान है तो आचार ठीक होने की एक प्रशस्त भूमिका बन जाती है।
इसी प्रकार अध्यात्म के क्षेत्र में, नैतिकता के क्षेत्र में पहले इन विषयों का ज्ञान हो तो उन विषयों का आचरण अच्छा हो सकता है। पुस्तकों से ज्ञान मिलता है। भारत में अनेक भाषाओं में अनेक ग्रंथ हैं। भारत के पास एक ज्ञान संपदा ग्रंथों के रूप में है।
भारत के पास संत संपदा है। अतीत में कितने संत हुए हैं। आज भी अपने ढंग से भारत में संत हैं। साधनाशील और ज्ञानी संतों से सन्मार्ग प्राप्त हो सकता है।
पंथ से पथदर्शन, जीवन जीने का अच्छा तरीका मिल जाए। पंथ कलह के निमित्त न बने। पंथों-पंथों में भी सौहार्द रहे। पंथ के उपदेश हमारे जीवन में उतरें। उनका पालन अच्छा हो तो पंथ हमारे कल्याण के निमित्त बन सकते हैं। एक दृष्टांत से समझाया कि ज्ञान सार्टिफिकेट में ही न रहे, वह ज्ञान व्यवहार में आए। तप-संयम, नियमों की पालना है, तो हम उससे आत्मा के पाप रूपी चीते से रक्षा कर सकते हैं।
कोरा पंथ लाइसेंस के समान है। पंथ के द्वारा बताई जाने वाली अच्छी-अच्छी बातों का पालन करें तो हम अपनी सुरक्षा कर सकते हैं। अच्छी बातें हर धर्म के ग्रंथ में मिल सकती हैं। अहिंसा, सच्चाई, सद्भावना, नैतिकता को कौन सा पंथ नहीं मानता। ये बातें हम पंथों से सीखें, अपने जीवन में उतारें।
अपने-अपने पंथ के मुखिया अपने-अपने शिष्यों को अच्छा कर लेंगे तो भारत देश और ज्यादा अच्छा बन सकेगा। आचार्य तुलसी ने अणुव्रत हमें दिया। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम जीवन में आ जाते हैं, तो पापों से कुछ रक्षा कर सकते हैं। जीवन अच्छा बन सकता है।
आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी प्रेक्षाध्यान की बात बताते थे कि चेतना हमारी शुद्ध रहे। समता का भाव रहे।
भीलवाड़ा चातुर्मास शुरू हो गया है। इस चतुर्मास में ज्ञान की गंगा का प्रवाह बह सके। प्रवचन का उपक्रम ज्ञान देने का उपाय है। पहले ज्ञान सही हो, फिर आचरण भी सही हो जाए तो परिपूर्णता आ सकती है। ज्ञान अंधा है, आचार लंगड़ा है, दोनों एक-दूसरे के पूरक बन सकते हैं।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि गुरु से ही प्रकाश प्राप्त होता है। इसलिए भारतीय संस्कृति में गुरु की महिमा बताई है। जो आदमी गुरु नहीं बनाता, वह संसार में भटकता है।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि मन को एकाग्र कैसे करें? मन की चंचलता कैसे दूर करें? मन के तीन कार्य होते हैंचिंतन, स्मृति और कल्पना। ये तीनों हमारी साधना के बाधक तत्त्व हैं। ये आदमी को चंचल बनाते हैं।
पूज्यप्रवर एवं धवल सेना का नागरिक अभिनंदन
पूज्यप्रवर के अभिनंदन में व्यवस्था समिति अध्यक्ष प्रकाश सुतरिया, स्वागत अध्यक्ष महेंद्र ओस्तवाल, छत्तीस कोम से अनिल छाजेड़, बोहरा समाज से सब्बीर बोहरा, महावीर सिंह चौधरी, जीतो से आर0एल0 नोलखा, ब्राह्मण समाज से गोपाल शर्मा, महेश्वरी समाज से महेश कोठारी, पार्षद मंजु पोखरना, मुस्लिम समाज से रियाज नवाब, शांति भवन से प्रकाश पीपाड़ा, सिक्ख समुदाय से गुरु प्रीतसिंह, बीजेएस से शांतिलाल खीमेसरा, क्षत्रिय समाज से छत्रसिंह मोवस, नगर सभापति राकेश पाठक ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
मुनि प्रतीक कुमार जी, मुनि पुलकित कुमार जी के साथ पहले भीलवाड़ा पधार गए थे। अपने भावों की अभिव्यक्ति पूज्य चरणों में अर्पित की।
इस प्रसंग पर पूज्यप्रवर ने फरमाया कि भीलवाड़ा आगमन हुआ है। आज नागरिक अभिनंदन का कार्यक्रम रखा गया है। नगर की ओर से सद्भावना प्रगट हो रही है। विभिन्न वर्गों से जुड़े हुए लोगों ने अपने भाव अभिव्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किए। यह संतों के प्रति स्नेह-सम्मान की भावना है। यह जो चाबी है, वो ताला खोलने के लिए होती है। यह एक शांति की चाबी है। अशांति दूर रहे भीलवाड़ा नगर से। हमारे तीन सूत्र हम बताते हैंसद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति। इन तीनों को एक प्रकार की चाबी मान लें तो नगर में शांति रह सकती है। तीन सूत्रों के तीन संकल्प समझाए एवं स्वीकार कराए। जन मानस अच्छा रहे, खूब अच्छा कार्य होता रहे। धर्म-अध्यात्म का उद्योत फैलता रहे।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि आप लोगों ने एक चाबी दी है। पूज्यप्रवर ने तीन चाबियाँ वापस आपको प्रदान कर दी हैं।