संयममय क्रिया होती है कल्याणकारी: आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 17 अगस्त, 2022
वर्तमान के वर्धमान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि लगभग ढाई हजार वर्ष से अधिक समय पहले भगवान महावीर इस भरत क्षेत्र में विराजमान थे, विचरण कर रहे थे। एक बार वे कमंजला नगरी के परिपार्श्व में पधारते हैं। वहाँ छत्रपलाशक नामक चैत्य था, वहाँ पधारकर अपने प्रवास योग्य स्थान की अनुमति लेते हैं। अनुमति लेकर वहाँ संयम और तप से भावित करते रह रहे हैं।
साधु के जीवन व्यवहार में भी संयम होना चाहिए। बोलने, चलने, सोचने, खाने में हर क्रिया में संयम जुड़ा होना चाहिए। जो संयम है, सर्व विरति है, शुभ योग में है तो उसका हर शुभ योग तप होता है। साधु यथा विधि विहार करता है, वह भी तप है। स्वाध्याय करना, तत्त्वज्ञान बताना भी तप है, यह उसके लिए कल्याणकारी है। भगवान को सुनने के लिए प्रजा भी आ रही है। वे महाप्रवचनकार थे। भगवान के बारे में आगम में आता है कि भगवान नगरी के बाहर प्रवास करते थे। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के सन् 2002 के अहमदाबाद चतुर्मास के समय भारत के राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के प्रसंग को समझाया। धर्म मुख्य है, संप्रदाय गौण है, वैसे ही राष्ट्रहित मुख्य है, पार्टी गौण है। ज्ञानी महात्मा अच्छी शिक्षाएँ दे सकते हैं।
कमंजला नगरी से कुछ दूरी पर एक और नगरी थी, जिसका नाम था श्रावस्ती नगरी। उस नगरी में एक परिव्राजक-साधक स्कंधक था वह विद्वान-पारगामी था। कई विधाओं का निष्णात था। विद्वान वह होता है, जिसका ज्ञान के प्रति समर्पण, आकर्षण हो। प्रतिभा और पुरुषार्थ भी हो। एक और व्यक्ति तिंगल नाम का था वह एक बार स्कंधक के पास गया। वह वैशालिक श्रावक था, उसने स्कंधक के सामने जिज्ञासा रखी, प्रश्न रखे।
पहला प्रश्न था लोक शांत है अथवा अनंत है। दूसरा-जीव शांत है या अनंत है। तीसरा-सिद्धि शांत है अथवा अनंत है। चौथा सिद्ध शांत है अथवा अनंत है। पाँचवाँ किस मरण से मरता हुआ जीव बढ़ता है अथवा घटता है। इन पाँच प्रश्नों को तिंगल ने स्कंध से पूछा और उत्तर माँगा। इन प्रश्नों से स्कंधक थोड़ा शंकित हो जाता है। इन प्रश्नों का उत्तर देने में अपने आपको असमर्थ समझता है।
तिंगल ने उत्तर न मिलने पर दोबारा, तिबारा स्कंधक से प्रश्नों के उत्तर पूछे। स्कंधक उत्तर दे नहीं पा रहा है। तिंगल ने सोचा ये उत्तर नहीं दे पा रहे हैं, मुझे इन प्रश्नों का उत्तर कहाँ मिलेगा। उसने चर्चा सुन रखी थी भगवान महावीर आए हुए हैं। किमंजला नगरी में प्रवास कर रहे हैं। एक उनका वचन सुनना भी फलदायक होता है। कितना अच्छा होगा ऐसे व्यक्ति से अर्थ ग्रहण किया जाए।
स्कंधक ने भी जाना कि महापुरुष आए हुए हैं। अनेक धर्म के लोग आपस में मिलते हैं। तिंगल के दार्शनिक प्रश्नों का जवाब नहीं दे सका था। दोनों भगवान महावीर के पास जाने का चिंतन करते हैं।
तपस्या के प्रत्याख्यान
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि शांति कौन प्राप्त करता है। जो कामनाओं को छोड़ देता है, वह व्यक्ति शांति को प्राप्त करता है। जो निष्प्रिय होता, ममकार से रहित होता है, वह व्यक्ति शांति को प्राप्त करता है। ममत्व के कारण लोग दुःखी बनते हैं। ममत्व व्यक्ति या वस्तु पर होता है। जहाँ मेरापन है, वहाँ ममत्व है।
साध्वी सुषमा कुमारी जी ने नवरंगी तप की प्रेरणा दी। जप की भी जानकारी दी गई। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि विनम्रता से मृदुता आती है।