अणुव्रत का सार है सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति: आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 28 अगस्त, 2022
पर्युषण महापर्व का पाँचवाँ दिन-अणुव्रत चेतना दिवस। गुरुदेव तुलसी का एक महान अवदान-अणुव्रत जो आदमी को नैतिकता की ओर ले जाने वाला है। अणुव्रत यानी छोटे-छोटे नियम। इन नियमों को जैन-जैनेत्तर कोई भी व्यक्ति जीवन में उतारकर नैतिक और आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर हो सकता है। अणुव्रत दिवस के अवसर पर महामहीम, युगप्रधान आचार्यप्रवर ने फरमाया कि आज अणुव्रत चेतना दिवस है। व्रत के आगे अणु लगा दिया तो अणुव्रत, महा लगा दिया तो महाव्रत और बारह लगा दिया तो बारह व्रत हो जाते हैं। श्रावक के लिए अणुव्रत पालनीय होता है। गृहस्थ बारह व्रतों को स्वीकार कर ले तो जीवन में त्याग आ सकता है। सुमंगल साधना से गृहस्थ जीवन प्रशस्त बन सकता है।
गुरुदेव तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन चलाया वो जैन की सीमा से बाहर था। इसे जैन-अजैन कोई भी स्वीकार कर सकता है। कई संस्थाएँ जुड़ी हुई हैं। यह जनकल्याणकारी आंदोलन है। अणुव्रत रूपी आम का रस सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति इन तीन सूत्रों में आ जाता है। अणुव्रती बनने के लिए आस्तिक होना भी जरूरी नहीं है। नास्तिक भी अणुव्रती बन सकता है। परमपूज्य गुरुदेव ने कितनों को प्रेरणा देकर अणुव्रती बनाया होगा। अणुव्रत हमारे धर्मसंघ का एक कार्य है। अणुव्रत गीत के एक पद्य ‘सुधरे व्यक्ति समाज व्यक्ति से’ का सुमधुर संगान पूज्यप्रवर द्वारा किया गया।
आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा का विवेचन करते हुए फरमाया कि अट्ठारहवाँ भव नयसार या भगवान महावीर की आत्मा का, उसमें त्रिपृष्ठ के रूप में प्रभु की आत्मा है। प्रतिवासुदेव को मारकर द्रव्य वासुदेव भाव वासुदेव बन जाते हैं। उस समय अश्वग्रीव नाम का प्रति वासुदेव था, तीन खंडों का आधिपत्य कर रहा था। उसके मन में विकल्प उठा होगा कि मेरी मृत्यु कैसे होगी। मृत्यु आने के अनेक मार्ग हैं। चाहे कितना ही बड़ा आदमी तीर्थंकर या चक्रवर्ती भी क्यों न हो, कभी न कभी मृत्यु तो अवश्य होती है। अश्वग्रीव ने निमितज्ञ को बुलाकर जानकारी ली। निमितज्ञ बोला कि मैं दो कारण बता देता हूँ, जिसके कारण आपकी मृत्यु होगी। पहला लक्षण है-आपका दूत है चंडवेग उसको जो अपमानित करेगा वो आपका हंता होगा। दूसरी पहचान है कि शालिखेत में आतंक फैला रहे शेर को जो मारेगा वो आपका हंता होगा। अश्वग्रीव ने सोचा कि हमें इस बात पर ध्यान देना है कि मेरे दूत का कौन अपमान करता है, कौन उस शेर को मारता है।
जैसे एक पहिये से रथ नहीं चलता है, वैसे ही राजा के लिए कहा गया है कि तुम साथियों की नियुक्ति कर सचिवालय बनाओ, उनसे काम लेते रहो। तंत्र होने से कार्य सुसंचालित हो सकता है। एक बार राजदूत बडवेग कार्य करते-करते पोतनपुर में गया। राजा सभा लगी थी संगीत का कार्यक्रम चल रहा था। संगीत का अपना महत्त्व होता है। राजा प्रजापति की संगीत सभा में दूत आया, राजा ने उसका सम्मान किया। उसके आने से संगीत में बाधा आ गई, त्रिपृष्ठ को अखरा उसने दूत को अपमानित कर दिया। दूत ने सारी बात अपने राज्य में पहुँचकर अश्वग्रीव को जानकारी दी। अश्वग्रीव का बात सुनकर माथा ठनका कि निमितज्ञ की एक बात तो मिल गई। एक बार शालिखेत में शेर का आतंक फेल गया। राजा से किसानों ने निवेदन किया कि हमारी सुरक्षा की व्यवस्था करो। अश्वग्रीव ने अपने अधीनस्थ राजाओं को सुरक्षा का दायित्व सौंपा। इस क्रम में प्रजापति का भी नंबर आया। प्रजापति जाने लगे तो त्रिपृष्ठ ने पिताजी से बात पूछी। त्रिपृष्ठ ने तो निदान किया था कि प्रबल बलशाली बनूँ। त्रिपृष्ठ बोला पिताजी आप विराजो हम देख लेंगे। दोनों भाई तैयार होकर गए।
दोनों भाई आगे बढ़कर शेर की गुफा के आगे पहुँचकर नाद किया। शेर नाद सुनकर बाहर आए। दोनों एक-दूसरे के आगे बढ़े। शेर त्रिपृष्ठ पर झपटा तो त्रिपृष्ठ ने उसके दोनों जबड़ों को बाँस की तरह चीर डाला। शेर मर गया। अश्वग्रीव को सूचना मिलती है, तो उसने सोचा दूसरा लक्षण भी मिल गया है। अब त्रिपृष्ठ को समाप्त करवाना है, यह योजना बना रहा है। पर नियम यह है कि प्रतिवासुदेव, वासुदेव को नहीं मार सकता। वासुदेव ही प्रतिवासुदेव को मारता है। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि अणुव्रत एक लोकहित करने वाला आंदोलन है। अपने पर अपना अनुशासन अणुव्रत की परिभाषा। अणुव्रत यानी छोटे-छोटे संकल्प। इनको स्वीकार करने वाला व्यक्ति अणुव्रती बन सकता है। हमारा जीवन छोटा नहीं है, पर छोटे-छोटे नियम हमारे जीवन का निर्माण करने वाले होते हैं।
मुख्य मुनिप्रवर ने संयम धर्म पर सुमधुर गीत का संगान किया। साध्वीवर्या जी ने कहा कि हमें आत्मा का दर्शन करना है, तो हमें मन को वश में करना होगा। मन को वश में करने के लिए अभ्यास और वैराग्य आवश्यक होता है। मन को एकाग्र करने के लिए प्रेक्षाध्यान में दीर्घ श्वास प्रेक्षा पद्धति बताई गई है। मुनि मनन कुमार जी, मुनि सत्यकुमार जी, मुनि मृदुकुमार जी, साध्वी अखिलयशा जी और साध्वी मृदुलयशा जी ने भी प्रेरणा प्रदान कराई। साध्वी सुषमाकुमारी जी ने नवरंगी तप के बारे में जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमारजी ने किया।