
जीवन के कल्याण का माध्यम है सामायिक: आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 26 अगस्त, 2022
पर्युषण महापर्व का तीसरा दिन-सामायिक दिवस। समता के सागर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे साधना के जीवन में सम्यक्त्व का बहुत महत्त्व है। बिना सम्यक्त्व आए मुक्ति हो ही नहीं सकती। अभव्य जीव है, नव ग्रैवेयक में जाकर भले पैदा हो जाए पर मुक्ति में उसका उपपात कभी नहीं हो सकता। सम्यक्त्व के बिना आचार क्रिया का पालन कर भी लो, बहुत लाभ नहीं होता है। परम पूज्य आचार्यश्री जयाचार्य के आराधना ढाल के पद हमें यह संकेत दे रहे हैं कि सम्यक्त्व के बिना अनंत बार आचार क्रिया पाल ली जाए तो मुक्ति प्राप्त नहीं होती।
दुनिया में कोई आदमी आदमी के रूप में स्थायी नहीं रहता है। आयुष्य समाप्त होने पर नयसार की आत्मा पहले देवलोक सौधर्म देवलोक में उत्पन्न हो जाती है। देवगति में भी कोई अमर नहीं है। उनका भी अवसान होता है। नयसार की आत्मा प्रथम देवलोक का आयुष्य पूर्ण कर मनुष्य जन्म को प्राप्त होती है। मनुष्य जीवन दुर्लभ बताया गया है, पर नयसार का जीव बार-बार मनुष्यत्व को प्राप्त हो रहा है। मनुष्य जन्म कौन से परिवेश में होता है, यह भी एक महत्त्वपूर्ण है। नयसार के जीव को भगवान ऋषभ के अच्छे कुल में जन्म लेने का अवसर मिला। भरत के पुत्र के रूप में मरीचि कुमार का जन्म होता है। मरीचि के जन्म को विस्तार से समझाया।
ग्यारह अंग और बारह उपांग हमें वर्तमान में उपलब्ध है। कुल 32 आगम हमारे यहाँ मान्य हैं, हमारे साधु-साध्वियाँ, समणियाँ जितना मौका मिले, आगम स्वाध्याय का प्रयास करें। सवेरे के समय कुछ सीखने का प्रयास करें। साधु होता है, उसके लिए स्वाध्याय अच्छा काम है। दूसरा सेवा और तीसरा तपस्या अच्छा काम है। निर्जरा का संतुलन बैठा लेना चाहिए। साधु है तो साधु के परिषह भी आ सकते हैं। साधु परिषहों को जीतने का प्रयास करें। समता-शांति रहे। मरीचि को ग्रीष्म सहन करना मुश्किल हो रहा है। भीषण प्यास का परिषह हो जाता है। ताप का परिषह सहन नहीं होता है। साधुपन छोड़ने की भावना हो गई है, पर घर नहीं जाता है, साधक बन जाता है। बीच का रास्ता ले लेता है। नया वेष धारण कर लेता है। त्रिदंड, छत्र और गेरुआ वस्त्रधारी बन जाता है। न वह साधु रहा न गृहस्थ, बीच का सा रह गया। स्नान करता, चंदन का लेप करता, खड़ाऊ पहनता। चक्रवर्ती भरत भगवान ऋषभ से प्रश्न करते हैं। भगवान मरीचि के बारे में बताते हैं कि वह वासुदेव, चक्रवर्ती और तीर्थंकर भी बनेगा। 54 उत्तम पुरुष आगम बताए गए हैं। 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती व बलदेव और वासुदेव।
भरत बाहर आकर मरीचि को सारी बात बताते हैं। पुरुषार्थ बढ़िया है, तो भविष्य अच्छा हो सकता है। आदमी सम्यक् पुरुषार्थ करे। आदमी को भाग्य भरोसे नहीं बैठना चाहिए। अपने से अपना कल्याण हो सकता है। आज सामायिक दिवस है। श्रावक-श्राविकाओं को सामायिक करने का प्रयास करना चाहिए। श्रावक प्रतिक्रमण में कहा गया है-धर्म है, समता, विषमता पाप का आधार है। सावद्य क्रिया छोड़ समता की साधना करनी चाहिए। साधु-साध्वियों में श्रुत सामायिक भी चलती है। जो ज्ञानवर्धक सिद्ध हो सकती है। सामायिक समता का सार है। श्रावकों में शनिवार की 7 से 8 सामायिक हो।
आज चतुर्दशी एवं पक्खी भी है। पूज्यप्रवर ने हाजरी का वाचन किया। तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने कहा कि आनंद श्रावक बारह व्रती था। नौवाँ व्रत है सामायिक। सामायिक के तीन प्रकार होते हैं। सावद्य योग का त्याग सामायिक है। समभाव में स्थित होना सामायिक है। सामायिक स्वहित और परहित मोक्ष के लिए करनी चाहिए। सामायिक चौदह पूर्वों का सार है। जिससे व्यक्ति का कल्याण हो सकता है। मुख्य मुनि महावीर कुमारजी ने कहा कि गुरुदेव तुलसी एक महान रचनाकार थे। ‘माया री खोटी है मार---’ गीत का सुमधुर संगान किया।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि मार्दव भाव विभाव से स्वभाव की ओर ले जाती है। कुटिलता का भाव अच्छा नहीं है। हमें मायाचार से बचना चाहिए। माया मित्रता का नाश करने वाली होती है। मुनि राजकुमार जी, मुनि शुभंकर जी, मुनि ध्रुवकुमार जी एवं मुनि सत्यकुमार जी ने भी प्रेरणादायक बातें समझायीं। छत्तीसगढ़ हाइकोर्ट के भूतपूर्व जज गौतम चोरड़िया ने भी अपने भाव अभिव्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।