जन जीवन निर्माता-आचार्यश्री तुलसी
विकास महोत्सव पर विशेष
मुनि कमल कुमार
भारत देश वीर और वीरांगनाओं की जन्मभूमि है। इस भूमि पर समय-समय पर अनेक वीरों ने जन्म लेकर देश का गौरव बढ़ाया है। उन गौरवशाली महापुरुषों में एक नाम आचार्यश्री तुलसी का भी है, जिन्होंने मात्र 11 वर्ष की अल्पायु में तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य श्री कालूगणी के करकमलों से दीक्षा लेकर स्व-कल्याण के साथ जन-जन का कल्याण किया। यह केवल स्तुत्य ही नहीं अनुकरणीय है। मात्र 22 वर्ष की अवस्था में आप विशाल धर्मसंघ के आचार्य बने। यह केवल तेरापंथ और जैन धर्म के लिए ही नहीं सबके लिए आश्चर्यकारी था। परंतु आपने अपने निर्मल और उदात्त चिंतन से केवल तेरापंथ के साधु-साध्वियों और श्रावक-श्राविकाओं का ही नहीं जन-जन का कल्याण कैसे हो, इसका चिंतन ही नहीं किया, बल्कि पूरा प्रयास किया, जिसमें आपको पूर्ण सफलता प्राप्त हुई।
साधु-साध्वियों का गहरा अध्ययन आपके कुशल पुरुषार्थ की देन है। आपने आचार्य पद पर प्रतिष्ठित होते ही प्रथम कार्य यह किया जिससे आज तेरापंथ के साधु-साध्वियों, मंदिर-मस्जिद, गुरुद्वारा आश्रम में ही नहीं, संसद भवन राष्ट्रपति भवन में भी पहुँचकर उन्हें संबोधित करते हैं। सबको युगानुकूल चिंतन प्रदान करते हैं। भारत के प्रथम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर आज तक के समस्त राजनेता भी आपश्री से या आपके उत्तराधिकारियों से उचित मार्गदर्शन प्राप्त करते रहे हैं। आपका चिंतन बड़ा ही व्यापक और अनाग्रही था, आप फरमाते कोई जैन बने या नहीं परंतु गुडमैन बने।
आपने जो नैतिकता का अभियान चलाया व अणुव्रत आंदोलन के नाम से प्रतिष्ठित हुआ। वह आंदोलन विद्यार्थी, अध्यापक, व्यापारी, कर्मचारी, श्रमिक, राजनेता, प्रत्याशी सबके लिए था। उनका व्यापक चिंतन था कि हर व्यक्ति हर वर्ग के लोग नैतिक प्रामाणिक स्वच्छ हों तभी विश्व शांति का सपना साकार हो सकता है। उनके उदात्त विचारों ने ही उन्हें युगप्रधान बनाया। उन्हें धर्मसंघ से युगप्रधान, गणाधिपति अणुव्रत अनुशास्ता जैसे संबोधन अलंकरण प्राप्त हुए। समाज और सरकार के द्वारा भारत ज्योति, वाक्पति, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार, हकीम खाँ सूर खाँ सम्मान जैसे प्राप्त हुए हैं। आपके सुश्रम से बाल विवाह, मृत्यु भोज, घुँघट प्रथा जैसी अनेक कुरीतियों का समुचित उपचार हो पाया। आपने अपने रहते ही अपने सक्षम उत्तराधिकारी को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित कर आचार्य पद का विसर्जन कर नया कीर्तिमान बना दिया जो आज के पद लिप्सी लोगों के लिए बोध पाठ बन गया।
तेरापंथ धर्मसंघ में आचार्य एक ही होते हैं। यह आचार्य भिक्षु की कृपा का फल है। और वर्तमान आचार्य का ही पट्ट महोत्सव मनाया जाता है। जब गुरुदेव तुलसी का पट्ट महोत्सव आया तब गुरुदेव ने उसे मनाने की मनाही कर दी एवं अपनी बात को स्पष्ट करते हुए यह फरमाया कि मैंने आचार्य पद का विसर्जन कर दिया है अब मेरा पट्ट महोत्सव नहीं मनाया जाए। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी वर्तमान आचार्य हैं इनका ही पट्ट महोत्सव मनाया जाए।
उस समय आचार्य महाप्रज्ञ जी ने निवेदन किया कि हम इस दिवस को विकास महोत्सव के रूप में प्रतिवर्ष मनाएँगे, क्योंकि आपने तेरापंथ धर्मसंघ को नए-नए आयाम देकर इसको विश्वविख्यात बना दिया।इस दृष्टि से हम भादवा सुदी नवमी को आपके पट्ट महोत्सव को सदा-सदा ही विकास महोत्सव के रूप में मनाएँगे। तब से अब तक अर्थात् आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के शासनकाल में भी इसे विधिवत मनाया गया। वर्तमान में आचार्यश्री महाश्रमण जी के शासनकाल में भी इसे मनाया जाता है, आगे भी मनाया जाएगा। आचार्यश्री तुलसी एक स्वस्थ कल्पनाकार ही नहीं प्रयोगधर्मा आचार्य थे। समय-समय पर अपनी गहरी साधना से एवं चिंतन की गहराई से प्राप्त तत्त्वों से जो मार्गदर्शन किया उसे युग नहीं शताब्दियों तक सदा-सदा स्मरण किया जाएगा। जीवन के अंतिम साँस तक सक्रिय और सक्षम रहकर सबका मार्गदर्शन करते रहें, ऐसे विकास पुरुष के विकास महोत्सव पर कोटि-कोटि अभिनंदन करते हैं। वंदन करते हैं।