अवबोध

स्वाध्याय

अवबोध

धर्म बोध
शील धर्म

प्रश्न 4 : शील (संयम साधना) के उत्कृष्ट भेद कितने हैं?
उत्तर : मुनि के शीलµसंयम साधना के उत्कृष्ट 18,000 भेद हो जाते हैं। चर्या के इन प्रकारों में मुनि को सतत जागरूक रहना होता है, तभी उसका चारित्र निर्मल व पवित्र रह सकता है। इन भेदों को समझाने के लिए एक गाथा उपलब्ध होती है, वह इस प्रकार हैµ
जे णो करंति मणसा, णिज्जिय, आहारसन्ना सोइंदिये।
पुढ़विकायारंभं, खंतिजुत्ते ते मुणी वंदे।।
यह एक गाथा है। दूसरी गाथा में ‘खंति’ के स्थान पर ‘मुत्ति’ आता है शेष श्लोक ज्यों का त्यों है। इस प्रकार 10 गाथाओं में क्रमश: दस धर्मों के नाम आते हैं। फिर ग्यारहवीं गाथा में ‘पुढ़वी’ के बाद ‘आउ’ शब्द आएगा। पुढ़वी के साथ 10 धर्मों का परिवर्तन हुआ था, उसी प्रकार ‘आउ’ के साथ भी होता है। फिर ‘आउ’ के बाद क्रमश: तेउ, वाउ, वणस्सई, बेइंदिय, तेइंदिय, चउरिंदिय, पंचिंदिय व अजीवµये दस शब्द आते हैं। प्रत्येक के साथ दस धर्मों का परिवर्तन होने से (10 ग 10) एक सौ गाथाएँ हो जाती हैं। 101वीं गाथा में सोइंदिय के बाद क्रमश: चक्खुरिंदिय, घाणिंदिय, रसनेंदिय, फासिंदिय शब्द आता है। एक-एक इंद्रिय के 100 होने से पाँच इंद्रियों के (100 ग 5) 500 होते हैं। 501वीं गाथा में आहार सन्ना के बाद भय सन्ना, फिर मेहुण सन्ना व परिग्गह सन्ना शब्द आते हैं। एक संज्ञा के 500 होने से चार संज्ञा के (500 ग 4) त्र 2000 होते हैं। फिर मणसा के स्थान पर वयसा व फिर कायसा आते हैं। फिर करंति की जगह कारयंति, फिर समणुजाणति शब्द आते हैं। एक-एक के 6000 होने से तीनों के (6000 ग 3) त्र 18,000 हो जाते हैं। (क्रमश:)