पर्युषण महापर्व का कार्यक्रम

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पर्युषण महापर्व का कार्यक्रम

गोगुंदा।
समणी मानसप्रज्ञा जी के सान्निध्य में पर्वाधिराज पर्युषण पर्व का भव्य आयोजन हुआ। पर्युषण पर्व के दौरान रावलिया, पदराड़ा आदि निकटवर्ती क्षेत्रों के भाई-बहनों ने भी प्रवचन का लाभ लिया। खाद्य संयम, स्वाध्याय, मौन, जप, आदि दिवसों पर पचरंगी व सामायिक दिवस पर सतरंगी की आराधना हुई। अणुव्रत दिवस पर लगभग 145 लोगों ने अणुव्रत नियमों को स्वीकार कर अणुव्रती बने। समणी मानसप्रज्ञा जी ने निरंतर भक्तामर पाठ के साथ भगवान महावीर के जीवन दर्शन को सविस्तार बताया। खाद्य संयम दिवस के अवसर पर समणी ज्योतिप्रज्ञा जी ने कहा कि पर्युषण का प्रथम दिन खाद्य संयम है। क्योंकि खाद्य संयम किए बिना अगली आराधनाएँ अधूरी हैं। खाद्य शुद्धि से ही विचार शुद्धि संभव है।
स्वाध्याय दिवस के अवसर पर समणीजी ने कहा कि स्वाध्याय वह समुद्र है, जिसमें अनेक श्रुत रूपी मोती भरे हैं। स्वाध्याय वह बुहारी है जिससे आत्मा रूपी घर के कचरे को साफ किया जाता है। श्रुत रूपी डोर से बंधी आत्मा मुक्ति को प्राप्त कर लेती है। सामायिक दिवस के अवसर पर समणीजी ने कहा कि एक सामायिक अर्थात् 50 मिनट तक समता साधना। समणी जी ने अभिनव सामायिक का प्रयोग करवाया। आपने एक सामायिक से आठों कर्मों का क्षय होता हैµइस तथ्य को सुंदर ढंग से समझाया। वाणी संयम दिवस के अवसर पर समणीजी ने कहा कि वाणी को वीणा बनाएँ, बाण नहीं। ढंग से बोलें, ढोंग से नहीं। अठारह पापों में छः पाप केवल वाणी से लगते हैं। सत्य व प्रिय भाषा से लोकप्रियता बढ़ती है।
अणुव्रत दिवस के अवसर पर समणीजी ने कहा त्याग की महत्ता को बताते हुए आचार्यश्री तुलसी द्वारा प्रवर्तित अणुव्रत के ग्यारह नियमों को सविस्तार समझाया। जप दिवस के गौरव को उजागर करते हुए समणीजी ने कहा कि जप क्यों, जप कैसे, जप दिशा, मंत्र का अर्थ, मंत्र हेतु दिशा व स्थान, उच्चारण शुद्धि आदि बिंदुओं को रोचक ढंग से समझाया। ध्यान दिवस पर आचार्य तुलसी रचित प्रेक्षा गीत का संगान करते हुए समणीजी ने कहा कि ध्यान संस्कार व आदत परिवर्तन का सफल उपक्रम है। अशुभ ध्यान से बचें तथा शुभ ध्यान में रमें। ध्यान का प्रायोगिक रूप भी करवाया।
संवत्सरी महापर्व: डॉ0 समणी ज्योतिप्रज्ञा जी ने कहा कि आज का दिन आत्मालोचन, आत्मनिरीक्षण व आत्मपरीक्षण का दिन है। आपने प्रतिक्रमण का एक छोटा-सा ध्यान भी करवाया। द्रोपदी, सीता, हरिश्चंद्र, देवकी, ढंढठामुनि आदि के कष्टों को बताते हुए कहा कि इन महापुरुषों के जीवन में आने वाले कष्ट पूर्वजन्म की आलोयणा न करने के कारण हुए। अतः गलती होने पर तत्काल खमतखामणा कर लेनी चाहिए। महासती चंदनबाला की रोमांचक कहानी सुनकर कई नेत्र सजल हो उठे। मगन ज्ञान मंदिर का हॉल खचाखच भरा था। सामायिक व पौषध में पंक्तिबद्ध बैठे भाई-बहन धर्माराधना में लीन थे।
क्षमापना दिवस पर समणीजी ने कहा कि क्षमापना से मन की प्रसन्नता बनी रहती है। जहाँ मन की प्रसन्नता है वहाँ बंधन की संभावना कम रहती है। क्षमापना से आत्मा में हल्कापन आता है। क्षेत्रीय भाई-बहनों ने समणीजी के प्रति मंलभावना व कृतज्ञता ज्ञापित की। पूरे प्रवास में होने वाले कार्यक्रमों की संक्षिप्त झलक डॉक्यूमेंट्री द्वारा प्रस्तुत की।