आत्मा को निर्मल बनाना ही साधना का एकमात्र लक्ष्य हो: आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 6 सितंबर, 2022
अर्हम् वाणी के उद्गाता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि भंते! देव कितने प्रकार के बतलाए गए हैं। कहा गया कि गौतम! देव चार प्रकार के प्रज्ञप्त हैंµभवनपति, वाण-व्यंतर, ज्योतिषक और वैमानिक। जैसे हमारा मनुष्य जगत है, पशु जगत, पेड़-पौधे भी दिखाई देते हैं। मनुष्यों में अनेक प्रकार हैं। देश, जाति, भाषा, संप्रदाय के आधार पर भेद हो सकता है। कई धनाढ्य, मध्यम और गरीब भी हैं। देव जगत भी विराट है। संज्ञी मनुष्यों से देवता बहुत ज्यादा हैं। भवनपति देवों में असुर कुमार, नागकुमार आदि दस प्रकार हैं। उनके फिर भेद हो जाते हैं। इनके अपने इंद्र भी होते हैं। बाण-व्यंतर देवों में भूत, पिशाच, यक्ष, राक्षस, किन्नर आदि-आदि 16 प्रकार के देव होते हैं।
ज्योतिष्क देवों सूर्य, चंद्रमा, ग्रह, नक्षत्र और तारे पाँच प्रकार के देव होते हैं। वैमानिक देवों में कई बहुत उच्च कोटि के देव होते हैं। इनके दो मुख्य प्रकार कल्पोपन्न और कल्पातीत हैं। किल्विषिक देव भी हैं। दूसरे देवलोक तक तो देवियाँ भी होती हैं। दो देवलोक से ऊपर पुरुष ही पुरुष होते हैं। बारहवें देवलोक तक तो इंद्र की व्यवस्था होती है। नौवें तथा दसवें देवलोक का एक इंद्र है और ग्यारहवें-बारहवें का एक ही इंद्र है। ये कल्पोपन्न होते हैं। बारह देवलोकों के बाद नौ ग्रैवेयक और पाँच अनुत्तर विमान हैं। वहाँ कोई इंद्र की व्यवस्था नहीं होती, सब देव अहमीन्द्र होते हैं। ये कल्पातीत देव होते हैं। इनका बहुत लंबा आयुष्य होता है। अनुत्तर देवों सर्वार्थ सिद्ध के देवों का आयुष्य तो तैंतीस सागरोपम का होता है। शेष चार में जघन्य 31 सागरोपम उत्कृष्ट 32 सागरोपम का आयुष्य होता है।
देव गति में उत्पन्न होने के कुछ कारण भी होते हैं। देवगति में उत्पन्न होने के चार कारण प्रसिद्ध हैं। सराग संयम का पालन करने वाला जैसे साधु। सातवें गुणस्थान के बाद आयुष्य का बंध तो होता ही नहीं है। तीसरे गुणस्थान में भी आयुष्य का बंध नहीं होता। सातवें गुणस्थान में सीधा आयुष्य का बंध नहीं होता है। छठे गुणस्थान में आयुष्य बंध प्रारंभ होता है और साधु सातवें गुणस्थान में उस समय चला जाए तो आयुष्य बंध हो जाता है। साधु देवगति का बंध करेगा तो वह वैमानिक देव ही बनेगा। श्रावक्त्व में पंचम गुणस्थान में आयुष्य का बंध करेगा तो भी वैमानिक देव गति का ही करेगा। सम्यक्त्वी मनुष्य भी सम्यक्त्व अवस्था में आयुष्य का बंध करता है, तो वैमानिक देवगति का ही बंध करेगा। सम्यक्त्व अवस्था में भवनपति, वाण व्यमन्तर, ज्योतिष, नरक, तिर्यंच, स्त्रीवेद, नपक्षेक वेद इन सात चीजों में आयुष्य का बंध नहीं होता है। श्रावक्त्व संयमासंयम अवस्था हो जाती है। ये दो संयम की बात हो गई।
बाल तपस्या और अकाम निर्जरा। बाल तपस्या यानी मिथ्यात्वी जीव हैं, वो तपस्या करके देवगति के आयुष्य का बंध कर सकता है। मिथ्यात्वी वैमानिक देव भी बन सकता है। एक अभव्य जीव जो कभी सम्यक्त्वी बनने वाला नहीं है, वह भी ऐसी कोई पुण्य की स्थिति बना लेता है कि नौ ग्रैवेयक तक उपपन्न हो सकता है। मोक्ष की अभिलाषा से की जाने वाली निर्जरा सकाम निर्जरा होती है। बिना मोक्ष की कामना से की जाने वाली निर्जरा अकाम निर्जरा होती है। अकाम निर्जरा करने वाला भी देवगति के आयुष्य का बंध कर सकता है। इनके दो भाग करें तो संयम और तप हो जाते हैं। देवगति पाने के लिए साधना नहीं करनी चाहिए। साधना तो करें आत्मा को निर्मल बनाने के लिए। मोक्ष पाने के लिए दुर्गति में न जाना पड़े।
साधु या श्रावक की साधना कितनी निर्मल है, यह महत्त्वपूर्ण है। श्रावक त्याग-नियम ले, फिर उसको अच्छे से पालने का भी प्रयास करे। गलती हो जाए तो प्रायश्चित्त-आलोयणा ले लेनी चाहिए। दूसरे समझें न समझें, सरल भाव से आलोयणा ले लेनी चाहिए। संयमरूपी मकान में टूट-फूट हो गई है, तो प्रायश्चित्त के द्वारा रिपेयरिंग करा लेें, ठीक हो जाएगा। दोष साथ में चले गए तो कठिनाई हो सकती है। निर्मलता हमारी रहे। आज गुजरात विधानसभा की स्पीकर नीमा बेन आचार्य पूज्यप्रवर के दर्शनार्थ पहुँची। कच्छ के श्रावक भी काफी संख्या में पहुँचे हैं। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन, पथ-दर्शन फरमाया। साधुचर्या के बारे में जानकारी दी। सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्ति के महत्त्व को समझाया। राजनीति भी जनता की बड़ी सेवा है, उसमें शुद्धता रहे। धर्म से प्रभावित रहे। धर्म कोई भी माने, कर्म अच्छे होने चाहिए। 2002-2003 के समय पुण्य आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के समय में हुए प्रसंगों को बताया। 2013 में कच्छ यात्रा भी की थी।
नीमा बेन आचार्य ने तेरापंथ धर्मसंघ के साथ किए कार्यों को बताया। आचार्यप्रवर की अहिंसा यात्रा के बारे में बताया। कच्छ चातुर्मास के लिए अर्ज की। नीमा बेन आचार्य भुज से विधानसभा सदस्य हैं। पूज्यप्रवर ने कच्छवासियों की अर्जी पर मर्जी करते हुए फरमाया। जब भी अनुकूलता होगी तब यथासंभवतया कच्छ-सौराष्ट्र में विस्तृत प्रवास करने का भाव है। पूज्यप्रवर ने निर्मल दुधोड़िया को अठाई तप का प्रत्याख्यान करवाया। आज अणुव्रत विद्यार्थी सम्मेलन भी पूज्यप्रवर की सन्निधि में होने जा रहा है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि हमारे जीवन में आचार के साथ सम्यक्त्व भी हो। जीवन में सम्यक्त्व का बहुत महत्त्व है।