न्यायपालिका में किसी पर झूठा आरोप नहीं लगाना चाहिए: आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 14 सितंबर, 2022
जन-जन के श्रद्धा के केंद्र आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में बताया गया है कि देव जगत में चार प्रकार के देव भवनपति, वाण-व्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक होते हैं। वैमानिक दो प्रकार के होते हैं। कल्पोपन्न और कल्पातीत। कल्पोपन्न में बारह देव लोक हैं।
तीसरे देवलोक का इंद्र है सनत कुमार। पहले देवलोक के इंद्र शुक्र और दूसरे देवलोक के इंद्र ईशान हैं, ये दोनों आपस में सटे हुए हैं। इनके बीच संघर्ष होता है क्या? भगवती सूत्र में बताया गया है कि उनमें विवाद भी होता है पर वे दोनों विवाद सुलझा नहीं पाते हैं। तो फिर वे अपने से ऊपर के तीसरे देवलोक के इंद्र सनत कुमार की मानसिक स्मृति करते हैं। सनत कुमार तत्काल वहाँ पहुँच जाता है। उसके सलाह निर्देश को दोनों इंद्र मान लेते हैं। विवाद को साधने का मौका मिल जाता है।
हम मनुष्य जगत के लोग हैं, हमारे लिए भी एक शिक्षा-प्रेरणा की बात है विवाद सुलझाने के लिए लोग न्यायपालिका में जाते हैं। पर न्यायपालिका में झूठी बात नहीं बोलनी चाहिए।
प्रश्न किया है कि सनत कुमार जो देवराज हैं वो किस प्रकार का है?
उसके बारे में छः प्रश्न पूछे गए हैंµ(1) वह भवसिद्धिक है या अभव सिद्धिक, (2) वह सम्यक्-दृष्टि है या मिथ्या दृष्टि, (3) वह परीत संसारी है या अनंत संसारी, (4) वह सुलभ बौद्धिक है या दुर्लभ बौद्धिक, (5) वह आराधक है या विराधक, (6) वह चरम है या अचरम।
इनके इतर में गौतम को संबोधित करके कहा गया कि वह सनत कुमार वह भव-सिद्धिक है, भव्य है। भव्य में भी वह सम्यक् दृष्टि है। सम्यक् दृष्टि में भी वह परीत संसारी है। परीत संसारी में भी वह सुलभ बौद्धिक है। सनत कुमार आराधक है और वह चरम भी है।
देवगति का भव भी इसका अंतिम-चरम है और अगली गति मनुष्य में भी वह चरम ही बनेगा। इस तरह ये छः प्रश्नों के उत्तर हैं। यहाँ प्रश्न होता है कि वह ऐसा क्यों है? भगवती सूत्र में बताया गया कि सनत कुमार है, वह साधु-साध्वियों, श्रावक-श्राविकाओं का अनुरागी है। हित, सुख और पथ चाहने वाला है, उनपे अनुकंपा चाहने वाला है। निःश्रेयश की दिशा में प्रेरित करने वाला है। इसलिए वह भव्य और सम्यक् दृष्टि आदि गुणों वाला है।
प्रश्न किया गया कि सनत कुमार इंद्र है, उसकी स्थिति कितनी है? बताया गया कि सात सागरोपम की स्थिति वाला है। प्रश्न किया गया कि वह जब कभी देवलोक का आयुष्य पूरा करेगा वह कहाँ जाएगा? उत्तर दिया गया कि गौतम! वह सनतकुमार महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध, प्रशांत, मुक्त हो जाएगा। वहाँ उसका मनुष्य का भव होगा। हमारे समाज में ऐसे मान्य व्यक्ति हो जो सनत कुमार की तरह विवाद को सलटा देने वाला हो। विवाद को न्यायपूर्ण तरीके से सलटा दिया जाए तो कोर्ट में जाने की नौबत कम आ सकती है। सनत कुमार जैसी भावना रखना भी अच्छी बात है। हम कल्याण मित्र बनें।
कालूयशोविलास का विवेचन करते हुए महायशस्वी ने फरमाया कि जयपुर चातुर्मास में देश-देश के लोग आए हैं। जयपुर के रेजीडेंट पीटरसन ने भी कालूगणी के दर्शन किए हैं। कार्तिक में नौ दीक्षाएँ एक साथ हुई हैं। जी0 आर0 हालेंड साहब आदि विशेष लोगों ने दर्शन किए हैं। चातुर्मास पूरा कर मकराना, बोरावड़ परसते हुए सुजानगढ़ में मर्यादा महोत्सव कराते हैं। वि0सं0 1981 का चातुर्मास चुरू में कृपा कराते हैं। वहाँ भी दीक्षा होती है। उनमें एक तो भाईजी महाराज चंपालाल जी की दीक्षा होती है।
महासती जेठांजी का भी महाप्रयाण हो जाता है। पाँच आचार्यों के काल में उनका संयम पर्याय रहा। कानकंवरजी को महासती पद पर स्थापित करवाते हैं।
पूज्यप्रवर ने तपस्या का प्रत्याख्यान करवाए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।