त्याग, संयम और तपस्या है सुगति प्राप्त करने का माध्यम: आचार्यश्री महाश्रमण
ताल छापर, 13 सितंबर, 2022
आसोज कृष्णा तृतीया, गणाधिपति गुरुदेवश्री तुलसी की मासिक पुण्यतिथि। गुरुदेव तुलसी के परंपर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि भगवती सूत्र में एक प्रसंग आता हैµतामली तापस का। एक बार भगवान महावीर विराजमान थे। एक दिव्य शक्ति उपस्थित हुई। दूसरे देवलोक ईशान का इंद्र भगवान महावीर के पास पहुँचा। उनकी रिद्धि को देखा तो गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से जिज्ञासा की कि ये जो देवर्षि है वो आई भी थी और चली भी गई। इन्होंने क्या तपस्या की होगी, कि इन्होंने ऐसी रिद्धि प्राप्त की?
भगवान महावीर ने ईशान देवलोक के इंद्र के बारे में जानकारी दी कि इसके पिछले जन्म की बात है। ताम्रलिपि नगरी में एक मौर्य पुत्र तामली नाम का गृहपति रहता था। एक दिन रात्रि के समय उसके मन में विचार आया कि वर्तमान में पुरानी पुण्याई भोग रहा हूँ। कितनी-कितनी मेरे पास समृद्धि है। जो मैंने तपस्या-साधना से अर्जित की होगी। कल्याणकारी कर्मों को मैं भोग रहा हूँ। खर्चा भी कर रहा हूँ अपना पुराना पुण्य। इस जन्म में भी मैं साधना करूँ। अपने परिवार की जिम्मेवारी अपने बड़े बेटे को सौंप दूँ और मैं अपनी साधना में लगूँ। वह संन्यासी का रूप धारण कर तापस बन गया। प्राणामा नाम की साधना प्रव्रज्या स्वीकार कर ली। साथ में अभिग्रह किया है कि मैं जीवनभर बेले-बेले की तपस्या करता रहूँ। पारणा में भी अत्यंत संयम रखूँगा, केवल चावल खाऊँगा। उन चावलों को भी 21 बार पानी से धोकर खाना। उनका सारा सार निकल जाए।
दोनों भुजाएँ ऊपर कर आतापनाएँ लूँगा। शरीर कमजोर हो गया। सोचा अभी मेरे में पुरुषार्थ-बल है, मैं संथारा कर लूँ। वह संलेखना-अनशन करता है। अनशन में प्रायोगमन कर स्थित हो जाता है। अनशन संपन्न हुआ। वर्तमान शरीर को छोड़कर दूसरे देवलोक ईशान में इंद्र बना। तामली तापस ने प्राणामा प्रव्रज्या स्वीकार की। इसमें खास बात यह है कि प्रणाम करो। मनुष्य या कोई भी जीव मिल गया उसको प्रणाम करना। मैंने चिंतन किया कि प्राणामा प्रव्रज्या का रहस्य क्या है? इसमें रहस्य यही लगा कि इसमें अहंकार विजय की साधना की जाती है। हर प्राणी को प्रणाम करना। इसने हजारों वर्ष तक बेले-बेले की तपस्या की। तामली तापस का चिंतन हमारे लिए बड़ा काम का है। गृहस्थों के लिए यह चिंतन का विषय बनता है कि आप लोग बड़े-बड़े धनवान हो सकते हैं। यह शायद पिछले कर्मों की पुण्याई भोग रहे हैं। आगे के लिए मैं क्या करता हूँ। पुराना तो खाली हो जाएगा।
यह चिंतन आदमी को कुछ आगे के लिए करने का दिशा-निर्देश दे सकता है। तामली तापस उसका यह एक उदाहरण है। पुण्य तो छोटी बात है। मूल बात तो आत्मा के कल्याण की है। मोक्ष की दृष्टि से मैं क्या करता हूँ? आत्मा का परम स्वरूप मुझे प्राप्त हो। तपस्वियों में ऊँचा उदाहरण है, तो तामली तापस का है। तपस्या करना अच्छी बात है।
तपस्या के साथ आतापना और साधना से कोई लब्धियाँ-सिद्धियाँ भी प्राप्त हो सकती हैं। पर सबसे बड़ी लब्धि यह है कि आत्मा निर्मल बन जाए। मोक्ष प्राप्त हो जाए। भवनपति देवों ने तामली तापस से निवेदन भी किया कि आप हमारे इंद्र बन जाओ। उन्होंने तामली तापस से निदान करने का निवेदन भी किया। तामली तापस ने उनको आदर नहीं दिया और वह मर करके दूसरे देवलोक का इंद्र बना। बल चंचा के भवनपति देवों ने सोचा कि हमारी अवहेलना कर रहे हैं। उन्होंने तामली तापस के मृत शरीर के साथ बड़ा दुर्व्यवहार किया। मिथ्या दृष्टि कोई जीव भले हो, उसे तपस्या का फल तो मिलता है। हमें चिंतन मिलता है कि आगे के लिए सोचो। तपस्या के अनेक आयाम हैं। आदमी को अहंकार विलय की साधना करनी चाहिए। हम लोग तो जैन शासन की प्रवज्या से दीक्षित हैं। श्रावक्त्व में भी साधना करते-करते उन्नति हो सकती है। श्रावक श्रावक-धर्म के प्रति जागरूक रहें। जितनी हो सके साधना करें। बारह व्रतों से ऊँची साधना संभवतः सुमंगल साधना है। श्रावक प्रतिमा की साधना करें। हम तप-संयम में जितना आगे बढ़ सकें, हमारे लिए कल्याणकारी हो सकता है।
कालू यशोविलास का विवेचन करते हुए महातपस्वी ने फरमाया कि पूज्य कालूगणी ने बीकानेर चातुर्मास में चिंतन किया कि यहाँ अनेक जैन संप्रदायों के चातुर्मास हैं। हमें शांति रखनी है, ऐसी शिक्षा धर्मसंघ को प्रदान करा रहे हैं। हमें क्षमा धर्म की साधना करनी है। समता का फल अच्छा होता है। भाद्रवा सूद में तेरह दीक्षा हुई है। सफल चातुर्मास होता है। राजलदेसर में मर्यादा महोत्सव कराते हैं। जयपुर से लोग आते हैं। अर्ज करते हैं। जयपुर पधारना फरमा देते हैं। जयपुर लालाजी के मकान में पधारते हैं। चातुर्मास जयपुर में करवा रहे हैं। कालूगणी अभिवंदना सप्ताह 17 अक्टूबर से 23 अक्टूबर तक मनाना है। अलग-अलग वक्ताओं का भाषण हो सके। कालूगणी के बारे में बताने का प्रयास हो सकेगा। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। उपासक धनराज मालू ने गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।