आत्मा के अवलोकन का पर्व है - पर्युषण महापर्व
कांकरोली।
साध्वी मंजुयशा जी के सान्निध्य में जैन धर्म का प्रमुख पर्व पर्युषण पर्व प्रारंभ हुआ। खाद्य संयम दिवस साध्वीश्री जी ने नमस्कार महामंत्र के मंगल उच्चारण से कार्यक्रम प्रारंभ किया। महिला मंडल की बहनों ने गीत प्रस्तुत किया। साध्वीश्री जी ने पर्युषण पर्व की पवित्र आराधना कैसे करें तथा पर्युषण पर्व की महत्ता पर प्रकाश डाला। भोजन-पानी शरीर संचालन का प्रमुख माध्यम है। इसके बिना कोई भी प्राणी लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकता है। पर भोजन कितना करना, कैसे करना, किस समय करना आदि तथ्यों का बोध होना बहुत जरूरी है।
साध्वीश्री जी ने एक गीत प्रस्तुत कर ‘खाद्य संयम’ की सद्प्रेरणा दी। साध्वीश्री जी ने कुछ नियम को पूरी परिषद को दिलवाए। साध्वी चिन्मयप्रभा जी, साध्वी चारूप्रभा जी एवं साध्वी इंदुप्रभा जी ने गीत, भाषण के माध्यम से अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी। सभा के मंत्री विनोद चोरड़िया ने व्यवस्था आदि के बारे में जानकारी दी। स्वाध्याय दिवस: स्वाध्याय दिवस पर तेरापंथ सभा के सदस्यों ने गीत प्रस्तुत किया। साध्वीश्री जी ने पहले जैन धर्म के चौबीसवें भगवान महावीर के पूर्व भवों के बारे में बताया। स्वाध्याय दिवस पर साध्वीश्री जी ने कहा कि स्वाध्याय का अर्थ है-स्वयं का विशेष अध्ययन तथा अध्यापन करना। ज्ञान प्राप्ति का यह अमोघ साधन है। साध्वी चिन्मयप्रभा जी ने स्वाध्याय पर अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी। साध्वी चारूप्रभा जी ने गीत प्रस्तुत किया।
सामायिक दिवस: अभातेयुप के तत्त्वावधान में तेयुप की ओर से अभिनव सामायिक का सामूहिक आयोजन हुआ। साध्वीश्री जी ने पूरी विधिवत् अभिनव सामायिक करवाई।
तेयुप के युवा साथियों ने सामायिक विषय पर गीत प्रस्तुत किया। साध्वीश्री जी ने कहा कि सामायिक शब्द अपने आपमें महत्त्वपूर्ण है। सामायिक तनावमुक्ति का सफल उपाय है। सामायिक का अर्थ है-समता भाव में रमण करना। सामायिक संवर और आत्म-शोधन दोनों की संयुक्त प्रक्रिया है। सामायिक शुद्ध, सरल, अध्यात्म का एक सक्षम प्रयोग है। सामायिक करने वाला व्यक्ति अपने कृत कर्मों की आलोचना कर आत्मशुद्धि करता है।
इस अवसर पर विनोद बड़ाला एवं तेयुप के अध्यक्ष निखिल कच्छारा, दीपक सिंघवी ने आगामी कार्यक्रम की विस्तार से जानकारी दी। साध्वी चिन्मयप्रभा जी, साध्वी चारूप्रभा जी एवं साध्वी इंदुप्रभा जी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। वाणी संयम दिवस: इस अवसर पर सामूहिक पार्श्वनाथ की स्तुति का संगान किया गया। धोइंदा गाँव की महिला मंडल की बहनों ने गीत प्रस्तुत किया। साध्वीश्री जी ने वाणी संयम पर कहा कि भगवान महावीर ने भाषा के दो प्रकार बताए हैं-भाषा समिति और वचन गुप्ति। विवेकपूर्ण बोलना भाषा समिति कहलाता है और भाषा पर पूर्ण संयम करना वचन गुप्ति कहलाता है।
भाषा की तीन कसौटियाँ हैं-सत्य, संयम और प्रिय वचन। इन तीनों पर जो खरी उतरती है, वही भाषा सम्यक् भाषा है। यह भाषा स्वयं के लिए और दूसरों के लिए सदा सुखकारी बनती है। साध्वी चिन्मयप्रभा जी एवं साध्वी चारूप्रभा जी ने गीत प्रस्तुत किया। साध्वी इंद्रप्रभा जी ने वाणी संयम पर अपने भाव व्यक्त किए। सभी साध्वियों ने एक सामूहिक गीत प्रस्तुत कर सबको भावविभोर कर दिया। जप दिवस: साध्वीवृंद ने पार्श्वनाथ की मंगल स्तुति की। टीपीएफ के युवक-युवतियों ने गीत प्रस्तुत किया। साध्वीश्री जी ने कहा कि किसी मंत्र का एकाग्रता से किया हुआ जप आंतरिक ऊर्जा को जागृत करता है। जप यदि उपयुक्त आसन मुद्रा तथा अनुरूप चित्त एकाग्रता से किया जाए तो निश्चित उसकी अद्भुत निष्पत्ति मिलती है। साध्वीश्री जी ने सामूहिक गीत प्रस्तुत किया। इस अवसर पर साध्वी चिन्मयप्रभा जी ने जप क्यों? कैसे? और कब करना? इस विषय पर अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। साध्वी चारूप्रभा जी ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेयुप के भूपेंद्र चोरड़िया एवं सभा के विनोद बड़ाला ने आगामी कार्यक्रम की विस्तृत जानकारी दी। संवत्सरी महापर्व: साध्वी मंजुयशा जी ने संवत्सरी महापर्व पर कहा कि आज हम संवत्सरी महापर्व मनाने इकट्ठा हुए हैं। आज का पर्व आत्मदर्शन, अंतर चेतना के जागरण का पर्व है। सात दिन तक इसे जप, तप, स्वाध्याय, ध्यान आदि साधना के द्वारा मनाया। सचमुच ये महापर्व वर्तमान को सुधारता है और भविष्य के लिए कुछ नए शुभ संकल्प संजोता है। मैत्री और प्रमोद भावना व सौहार्द को बढ़ाने वाला यह पर्व है। यह महापर्व जैन शासन का अलौकिक पर्व है। आत्मावलोकन का यह महापर्व भीतर की बैर भावना का, कलुषता की भावना का परिष्कार कर आत्म विशुद्धि को प्राप्त करने का पर्व है। साध्वीश्री ने गीतिका का संगान साध्वीवृंद के साथ किया।
साध्वी चिन्मयप्रभा जी ने भगवान महावीर के साधना काल में आगे वाले, परिषहों एवं मनुष्य द्वारा तिर्यंच द्वारा एवं देवों द्वारा दिए गए कष्टों के बारे में अनेक रोचक प्रसंग सुनाए तथा जैन धर्म के महाप्रभावक आचार्य तथा तेरापंथ के यशस्वी आचार्यों के जीवन-वृत्त को समझाया।
साध्वी इंदुप्रभा जी ने प्रारंभ में ठाणां सूत्र के आधार पर आध्यात्मिक उपदेश दिया तथा भगवान महावीर के समय में होने वाले 11 गणधर एवं 7 निन्हव के जीवन-वृत्त की जानकारी दी। साध्वी चारूप्रभा जी ने मुक्तक प्रस्तुत किए। क्षमायाचना का सामूहिक कार्यक्रम हुआ। उसमें सभी संस्थाओं के पदाधिकारियों ने आपसी प्रेम-सौहार्द से एक-दूसरे से तथा सभी साध्वीवृंद से एवं साध्वीवृंद ने भी सभी संस्थाओं से, कर्मचारियों से, परिवार वालों से अंतःदिन से हार्दिक क्षमायाचना की।