श्रावक जीवन का सबसे बड़ा धन है बारह व्रत

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श्रावक जीवन का सबसे बड़ा धन है बारह व्रत

साहूकारपेट
जन्म से अनुयायी हो सकते हैं, पर व्रत स्वीकार किए बिना श्रावकपन प्राप्त नहीं किया जा सकता। श्रावकत्व व्रतचेतना से जुड़ी स्थिति है। यह यात्रा आगे बढ़ती-बढ़ती साधुत्व और आयोग तक पहुँचते-पहुँचते मोक्ष का वरण करती है। उपरोक्त विचार अभातेयुप के तत्त्वावधान एवं तेयुप चेन्नई की आयोजना में तेरापंथ सभा भवन, साहूकारपेट, चेन्नई में बारह व्रत कार्यशाला में साध्वी डॉ0 मंगलप्रज्ञाजी ने कहे।
श्रावक-जीवन का सबसे बड़ा धन है- बारह व्रतों का खजाना। इस खजाने और सुरक्षा कवच की अच्छी तरह संभाल करते रहें। व्रतों को स्वीकार करके अपने जीवन को आनंदमय बनाएँ, प्रकाशमय बनाएँ। तेयुप विजयगीत संगान से कार्यक्रम का प्रारंभ हुआ। तेयुप उपाध्यक्ष संतोष सेठिया ने स्वागत स्वर प्रस्तुत करते हुए बारह व्रतों को जीवन का अनमोल आभूषण बताया। साध्वी डॉ0 राजुलप्रभा जी ने कहा त्याग की चेतना जगाना, श्रावक-जीवन की महत्वपूर्ण साधना है। बारह व्रत विवेक जागरण की सशक्त और परिणामी साधना है। जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं के साथ संयम की भावना भी बनी रहे। कार्यक्रम का संचालन एवं आभार मंत्री संदीप मुथा ने किया।