शुभ योग से पुण्य बंध और निर्जरा साथ-साथ होती रहती है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

शुभ योग से पुण्य बंध और निर्जरा साथ-साथ होती रहती है: आचार्यश्री महाश्रमण

पूज्यप्रवर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति की आध्यात्मिक मंगलकामना

ताल छापर, 17 सितंबर, 2022
तेरापंथ धर्मसंघ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र की व्याख्या करते हुए फरमाया कि साधु दो प्रकार के होते हैं-एक प्रमत्त संयत और दूसरे अप्रमत्त संयत। प्रमत्त संयत केवल छठे गुणस्थान वाले साधु होते हैं। सातवें वाले तो अप्रमत्त साधु होते ही हैं, किंतु वह अप्रमत्त अवस्था आगे भी बनी रहती है। प्रश्न है, जो प्रमत्त संयत साधु होता है, उसका कालमान कितना हो सकता है? मंडित पुत्र के नाम से उत्तर दिया गया है कि एक जीवन की अपेक्षा से कम-से-कम एक समय और उत्कृष्ट देशोन क्रोड़ पूर्व और कुछ कम क्रोड़। अनेक जीवों की दृष्टि से बताएँ तो संपूर्ण काल, हमेशा प्रमत्त संयत साधु मिलते हैं।
अगला प्रश्न है कि अप्रमत्त संयत साधु कितने काल तक रह सकता है? उत्तर दिया गया-एक जीव की अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट रूप में देशोन करोड़ पूर्व में कुछ कम क्रोड़ पूर्व और अनेक जीवों की अपेक्षा से अप्रमत्त संयत हमेशा वर्तमान साधु रहते हैं। ये दो प्रकार के साधुओं की भूमिकाएँ व कालावधि बताई गई है। आठ वर्ष पार का बालक साधु बन सकता है। सातिरेक आठ वर्ष की अवस्था में केवल ज्ञान भी प्राप्त हो सकता है। यौगलिकों का आयुष्य तो लंबा होता है। इनके अलावा मनुष्य की उम्र उत्कृष्ट एक करोड़ वर्ष बताई गई है। सामायिक चारित्र की कालावधि देशोन करोड़ वर्ष पूर्व की बताई गई है। न्यूनतम कालावधि है एक समय की। यह वृत्तिकार का मत है।
यह भी मान्यता है कि दीक्षा लेते ही पहले सातवाँ गुणस्थान आता है। उसके पश्चात् प्रमत्त संयम की प्राप्ति होती है। अप्रमत्त से प्रमत्त संयत में आने से पहले एक समय में मृत्यु हो जाए तो न्यूनतम समय प्रमत्त संयत रह सकता है। प्रमत्त संयत के बीच-बीच में भी अप्रमत्त संयत गुणस्थान आता-जाता रहता है।
जब जीव उपशम श्रेणी में आरोहण करता है, उसकी मृत्यु भी हो सकती है। वर्तमान में दोनों प्रकार के साधु मिल सकते हैं। साधु हैं, तो वह छठे गुणस्थान में तो होगा ही होगा। छठे से लेकर चौदहवें तक के नौ गुणस्थान साधु के होते हैं। साधु संयत है, तो वह वंदनीय-पूजनीय भी है। प्रमाद दो प्रकार का होता है। छठे गुणस्थान वाला प्रमाद आश्रव है। हमारे साधुपने में अव्रत के त्याग है, पर प्रमाद के त्याग नहीं है। उसकी आलोयणा नहीं होती है। दूसरा प्रमाद है-अशुभ योग आश्रव है, उससे दोष में साधु प्रायश्चित का भागी बन जाता है। यह प्रमाद साधु के लिए त्याज्य है। यहाँ जो प्रमत्त संयत बताया गया है, वो तीसरे आश्रव वाला प्रमाद है। अप्रमत्त संयत साधु में दोनों ही प्रकार का प्रमाद नहीं होता।
तीसरे आश्रव वाला प्रमाद शुभ योग में रहते हुए भी रह सकता है। जब साधु स्वाध्याय में, शुभ योग में है, उस अवस्था में भी पाप कर्म का बंध चालू रहता है। ‘प्रमाद आश्रव और कषाय आश्रव का पाप है’ वो शुभ योग में विद्यमान साधु के भी पाप बंध का क्रम रह सकता है। शुभ योग से पुण्य बंध और निर्जरा भी साथ-साथ होती रहती है। यह एक उदाहरण से समझाया कि अनेक कार्य एक साथ हो सकते हैं। कालूयशोविलास का विवेचन करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि माजी महाराज छोगांजी बीदासर में स्थिरवास में भी स्वास्थ्य की अनुकूलता न रहने से पूज्य कालूगणी दर्शन देने पधारते हैं। वि0सं0 1981 का मर्यादा महोत्सव सरदारशहर में करवाते हैं। सर्दी का समय है, पर सरदारशहर-वासियों को गुरुदेव तारने पधार गए हैं। दीक्षा महोत्सव भी आयोजित होता है। अगला चातुर्मास बीदासर करवाते हैं। वहाँ भी दीक्षाएँ प्रदान करवाते हैं। वहाँ से परमपूज्य लाडनूं पधार जाते हैं। गुरुदेव का मुख तो गुलाब के फूल जैसा है-उस पर बालक तुलसी जैसा भंवरा मंडरा रहा है।
एक जैनेत्तर साधु पूज्यप्रवर के दर्शनार्थ पधारे। पूज्यप्रवर ने प्रेरणा प्रदान करवाई। मुनि ध्रुव कुमार जी ने शनिवार की सामूहिक सामायिक की सूचना दी। उपासक प्रभु भाई मेहता ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेयुप, छापर ने ‘मेगा ब्लड डोनेशन ड्राइव’ की सूचना दी। पूज्यप्रवर ने एमबीडीडी पर आशीर्वचन फरमाया। आज नरेंद्र मोदी व अभातेयुप का जन्मदिन है। दोनों का जीवन आध्यात्मिक रहे, चित्त समाधि में रहे, खूब धार्मिक उन्नति होती रहे। जनता में भी शांति रहे। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।