अपनी संतान को दीक्षा की आज्ञा देने वाले माता-पिता धन्य होते हैं: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अपनी संतान को दीक्षा की आज्ञा देने वाले माता-पिता धन्य होते हैं: आचार्यश्री महाश्रमण

ताल छापर, 23 सितंबर, 2022
शांति की रश्मियाँ बिखेरने वाले परमपूज्य शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में बताया गया है कि भगवान महावीर का एक शिष्य थाµअतिमुक्त नाम का कुमार श्रमण। वह शालीन और विनीत था। अतिमुक्त छः वर्ष का था तभी साधु बन गया था। वृतिकार ने भी इसको आश्चर्यजनक माना है। एक बार वर्षा का समय था, वो पंचमी समिति के लिए बाहर गया। पात्र रजोहरण साथ में थे। उसने देखा कि जल प्रवाह बह रहा है। उसे देख बाल मुनि को खेलने का मन हो गया। पात्र को नौका मान लिया और खुद नाविक बन गया। जल में पात्र तिराने लगा, ‘मैं तिरूँ म्हांरी नाव तिरे’ बोलने लगा और पानी में खेलने लगा।
जो स्थविर मुनि थे उन्होंने देखा कि ये तो पानी में खेल रहा है। वे स्थविर मुनि भगवान के पास आए और अवहेलना रूप में प्रश्न किया कि भंते! आपका अंतेवासी शिष्य अतिमुक्त कितने जन्मों में मोक्ष में जाएगा? भगवान महावीर ने उन संतों को उत्तर दिया कि साधुओ! मेरा अंतेवासी अतिमुक्त इसी भव में मोक्ष जाएगा। तुम उस मुनि की अवहेलना मत करो। निंदा, गृहा और अवमानना मत करो। देवागुप्रियें। उसकी अग्लान भाव से सेवा करो। उसको अवलंबन दो, वैयावृत्य करो। मेरा अंतिम शिष्य है। वे स्थविर मुनि भगवान की वाणी स्वीकार कर उस बाल मुनि की सेवा में लग जाते हैं। बाल दीक्षा आज भी होती है। सामान्यतया दीक्षा 8 वर्ष पार की होती है। वह तो छः वर्ष का बच्चा दीक्षित हुआ था। जैसे वृद्धों की सेवा का महत्त्व है, वैसे ही बाल मुनि की सेवा का भी महत्त्व है। बाल मुनि भी आगे चलकर सेवा करने वाला बन सकता है।
बाल मुनि का मन संयम में रम जाए, अच्छा अध्ययन कर ले, अच्छी बात है। प्रतिभाशाली बाल मुनि अच्छी साधना और सेवा कर सकते हैं। परमपूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी बाल उम्र में दीक्षित हो गए थे। पूज्य कालूगणी का सान्निध्य और मुनि तुलसी का योग मिला। उनका बढ़ते-बढ़ते कितना विकास हो गया। वे दार्शनिक बन गए। परमपूज्य आचार्यश्री तुलसी भी एक बालक ही थे। उन्होंने धर्मसंघ और मानवता की कितनी सेवा की थी।
जयाचार्य तो हमारे धर्मसंघ में सबसे कम उम्र में दीक्षा लेने वाले आचार्य हुए थे। कितना उनका ज्ञान था। बाल मुनि दीक्षित और शिक्षित होकर कितनी धर्मसंघ की सेवा करने वाले हो जाते हैं। वे माता-पिता भी धन्य हैं, जो अपने बच्चों को धर्मसंघ में दीक्षा के लिए समर्पित कर देते हैं। फिर वे कई-कई बच्चे आगे बढ़ते हैं और धर्मसंघ के लिए बड़े कार्यकारी बन जाते हैं। विकास को अवकाश भी है। उनको प्रेरणा देकर संभाल लिए जाएँ तो वे अच्छे युवा संत के रूप में भी उभरकर सामने आ सकते हैं।
पूज्यप्रवर ने कालूयशोविलास का विवेचन करते हुए फरमाया कि सामाजिक संघर्ष में धर्मसंघ को बीच में नहीं लाना चाहिए। तूफान आया और चला गया। पूज्य कालूगणी पुण्यवान आचार्य थे। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्र्रत्याख्यान करवाए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।