तेरापंथ धर्मसंघ के प्रखर ज्ञानेश्वर थे जयाचार्य
कांकरोली।
साध्वी मंजुयशा जी के सान्निध्य में तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य श्रीमद्जयाचार्य का 142वाँ निर्वाण दिवस मनाया गया। कार्यक्रम का प्रारंभ साध्वीश्री जी द्वारा नमस्कार महामंत्र के मंगल उच्चारण से हुआ। साध्वीश्री जी ने भगवान पार्श्वनाथ की सामूहिक स्तुति की। साध्वीश्री ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ एक अनुशासन, मर्यादित धर्मसंघ है। एक चार, एक विचार एवं एक आचार्य इसके मुख्य आधार हैं। तेरापंथ की यशस्वी आचार्य परंपरा रही है। एक-एक आचार्य ने अपनी प्रखर साधना, तपस्या एवं श्रम की बूँदों से इस तेरापंथ उपवन को सींचा है। यशस्वी आचार्य परंपरा में चतुर्थ आचार्य प्रज्ञापुरुष जयाचार्य का इतिहास गौरवमय इतिहास है। वे आचार्य भिक्षु के कुशल भाष्यकार बने।
तेरापंथ के आद्यप्रवर्तक आचार्य भिक्षु ने तप, त्याग, नियम के फूल बिखेरे थे जयाचार्य ने उसे माला का रूप दिया। संघ में व्यवस्था को सुंदर बनाने के लिए आहार का संविभाग, श्रम का संविभाग, जल संविभाग स्थान प्रतिलेखना आदि की व्यवस्था कर संगठन को मजबूत किया। इस संघ में उनकी अनुपम देन है। वे अनुशासन प्रिय थे। अनुशासन का लंघन करने पर किसी भी साधु- साध्वियों को बक्शीश नहीं करते। संघ सेवा करने वालों को तथा विशिष्ट कार्य करने वालों का उत्साह भी बढ़ाते हैं। वे स्वाध्यायप्रेमी थे। अपने तेजस्वी व्यक्तित्व के द्वारा जन-जन को प्रभावित किया।
ऐसे प्रखर साधनामय जीवन जीने वाले आचार्य जीतमल जी ने 30 वर्ष तक संघ की अनुशासना कर वि0सं0 2038 में भाद्रव कृष्णा 12 को जयपुर में महाप्रयाण किया। ऐसे अनुशास्ता को पाकर धर्मसंघ धन्य-धन्य हो गया। इस अवसर पर साध्वी चिन्मयप्रभा जी ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। साध्वियों ने एक सामूहिक गीत प्रस्तुत किया। तेरापंथ सभा के मंत्री विनोद चोरड़िया ने पर्युषण काल में होने वाली व्यवस्था के बारे में तथा अष्टदिवसीय उपासक श्रेणी की साधना करने वालों के लिए विस्तार से जानकारी दी। मंगलपाठ से कार्यक्रम संपन्न हुआ।