आचार्य भिक्षु आचार और विचार क्रांति के पुरोधा थे

संस्थाएं

आचार्य भिक्षु आचार और विचार क्रांति के पुरोधा थे

राजनगर।
तेरापंथ धर्मसंघ के प्रथम आचार्य श्री भिक्षु का निर्वाण दिवस मुनि प्रसन्न कुमार जी के सान्निध्य में मनाया गया। मुनिश्री ने कहा कि आचार्य भिक्षु, तेरापंथ धर्मसंघ के भाग्य विधाता थे। बौद्धिकता से केवल महाजनी विद्या के धनी थे। आचार्य भिक्षु का दृढ़ संकल्प था-सत्य का भले विरोध होगा, किंतु विजय अवश्य होगी और इस धर्म क्रांति में सफल हुए। साध्वाचार और विचार में आज तेरापंथ उदाहरण बन गया। आज लाखों-लाखों अनुयायी 800 साधु-साध्वियाँ, समणियाँ, समृद्ध धर्मसंघ है। एक गुरु और एक विधान से संगठित है। आचार्य भिक्षु का जन्म कंटालिया मारवाड़ में हुआ। जन्म के 300 वर्ष होने वाले हैं। उनका अंतिम निर्माण आषाढ़ सुदी 3 आज के दिन 7 प्रहर के संथारे के साथ पद्मासन में इच्छामृत्यु का वरण किया। बैकुंठी तैयार होकर दर्जी सुई पगड़ी में डाली और बोला महाराज बैकंुठी तैयार है। आचार्य भिक्षु बोले मैं भी तैयार हूँ। बस इतना ही कहना हुआ। आत्मा शरीर से भिन्न हो गई। ऐसी इच्छा मृत्यु का वरण कोई सधा हुआ योगी ही कर सकता है।