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प्रश्न 8 : ब्रह्मचर्य का महाव्रत व अणुव्रत स्वरूप क्या है?
उत्तर : महाव्रत में देव, मनुष्य व तिर्यंच संबंधी मैथुन सेवन का तीन करण व तीन योग से प्रत्याख्यान करना होता है।
अणुव्रत में व्यक्ति स्थूल रूप में स्वदार संतोष अर्थात् परदार का त्याग करता है। इस व्रत का प्राचीन स्वरूप इस प्रकार मिलता है। इसमें श्रावक यह कहकर स्वीकार करता है-‘मैं जीवनपर्यन्त देवता-देवांगना संबंधी मैथुन का द्विविध त्रिविध (दो करण तीन योग) से प्रत्याख्यान करता हूँ। परपुरुष-परस्त्री और तिर्यंच-तिर्यंची संबंधी मैथुन का एक करण, एक योग-शरीर से सेवन नहीं करूँगा। स्वदार संबंधी सर्व प्रकार के मैथुन की मुझे छूट है।’ इस विवेचन से यह स्पष्ट है कि आदर्श तो सबके लिए महाव्रत है, पर पाप-त्याग की सीमा प्रत्येक व्यक्ति अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार करता है, उसे अणुव्रत कहते हैं।

(क्रमश:)