आचार्य कालूगणी महाप्रयाण दिवस के आयोजन
माधावरम्, चेन्नई
तेरापंथ के अष्टम् आचार्य कालूगणी की पुण्यतिथि पर गुणानुवाद करते हुए मुनि सुधाकर कुमार जी ने कहा कि साधु जीवन का सच्चा शंृगार वैराग्य है। आचार्यश्री कालूगणी की दीक्षा पाँचवें आचार्यश्री मघराज जी के करकमलों से बीदासर में हुई। जब उनकी दीक्षा यात्रा का वरघोड़ा निकाला तो उनके शरीर पर कोई आभूषण नहीं था। एक धनवान श्रावक ने अपने घर बुलाकर उनको पहनने के लिए मोतियों का हार दिया। 11 वर्ष की उम्र में छोटे वैरागी कालू ने कहा कि मैं साधु जीवन की ओर बढ़ रहा हूँ। साधु के लिए सच्चा आभूषण वैराग्य है। भगवान महावीर की वाणी के अनुसार मैं सभी आभूषणों को भार और बंधन मानता हूँ।
मुनिश्री ने कहा कि आचार्य कालूगणी की उदारता और जिज्ञासावृत्ति सर्वविदित है। उनका कहना था-मनुष्य को जीवन भर विद्यार्थी बनकर रहना चाहिए। मुनि नरेश कुमार जी ने प्रासंगिक वक्तव्य दिया। सेठिया परिवार की बहनों ने गीत एवं वक्तव्य के माध्मय से तपस्विनी की अनुमोदना की। जैन तेरापंथ माधावरम् ट्रस्ट की ओर से उपाध्यक्ष रमेश परमार एवं जैन तेरापंथ नगर के अध्यक्ष माणकचंद रांका ने तपस्वी बहनों का अभिनंदन किया।