साधना से मन मंदिर चमकाया
जीवन पोथी का हर पन्ना था विरल
विनम्रता से बनाया चेतना को सरल
संकल्प जो ठान लिया अंतस् में
उन राहों में उग गए सुनहरे कमल।।
गुरु भक्ति से भावित अंतर्मन
प्रणम्य पावन था सकारात्मक चिंतन
श्रम दीप प्रज्ज्वलित किया हर डगर
उज्ज्वल आचार साधिका से पुलकित धरा गगन।।
साधना से मन-मंदिर चमकाया
आगम-वाचन से सदा नूतन रतन पाया
पापभीरू व्यक्तित्व जिनका शुभंकर
साध्वीश्री धर्मयशा जी से नंदनवन हरसाया।।
करुणा से ओत-प्रोत था मन-दर्पण
वत्सलता से महकाया आत्म गुलशन
तपोबल का तेज था निराला जिनका
भव्य रोशनी को ‘साध्वी कुमुद’ का शत-शत नमन।।