अर्हम्

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अर्हम्

अर्हम्

साध्वी धर्मयशा जी ने, संयम-उपवन सजाया।
साँसों की सरगम पर प्रतिपल, गण-गणिवर-गुण गाया।।

बीदासर की लाड़ली, गोलछा कुल चमकाया
संयम की उजली चादर, जीवन मधुवन महकाया
गुरु-त्रय की चरण-शरण में, अंतर दीप जलाया।।

ऋजुता-मृदुता-सहनशीलता की अद्भुत सहवाणी
पापभीरूता-सहज-सरलता की गूंजे है कहानी
प्रवचनशैली मधुर गीतों से गण गौरव है बढ़ाया।

जन्मों की फली पुण्याई, गुरु महाश्रमण वरदायी
सेवा में है साझ दिराया, हो समाधि सुखदायी
करो शासन-सेवा हो उऋण, गण-उपकार है पाया।।

पंचाचार के अमृत से, पाओ नव अरुणाई
वीतरागता बढ़े निरंतर, साधना में ऊँचाई
शिव-पद का वरण करो, श्रद्धांजलि स्वर लहराया।।

लय: जन्म-जन्म---