अनुत्तर धर्म की साराधिका - साध्वी धर्मयशाजी
संस्कार संपन्न परिवार-
जिंदगी दरिया नहीं जो लहरों में खो जाए,
जिंदगी ख्वाब नहीं जो सपनों में खो जाए,
जिंदगी का मकसद है नर से नारायण बनना,
जिंदगी दर्पण नहीं जो चेहरों में खो जाए।।
साध्वी धर्मयशा जी के जीवन का उद्देश्य था आत्मा से परमात्मा बनना, नर से नारायण की दिशा में आगे बढ़ना, लघु से विराट की महायात्रा करना, स्थल से सूक्ष्म जगत की साधना करना।
मघवागणी की जन्मभूमि में उनका जन्म हुआ। मातुश्री छोगांजी, वदनांजी की वीरभूमि में जन्म पाकर वे अपना सौभाग्य मानती, बीदासर की पावन धरा पर वि0सं0 2018 कार्तिक कृष्णा-2 (25 अक्टूबर, 1961) को स्वर्गीय इंदरचंदजी मालचंद जी गोलछा परिवार में हुआ। स्व0 हनुमानमल जी-श्रद्धानिष्ठ श्रावक एवं श्रद्धा की प्रतिमूर्ति स्व सज्जनदेवी गोलछा आपके संसारपक्षीय माता-पिता थे। बीदासर में गोलछा परिवार की संयुक्त परिवार से अच्छी पहचान रही है। लगभग पचास व्यक्तियों का भोजन एक साथ बनता था।
शासन वेदी पर समर्पण- साध्वी नजरकंवर जी एवं साध्वी गुप्तिप्रभा जी की प्रेरणा से आपको वैराग्य हुआ। इसी गोलछा परिवार से साध्वी परमयशा जी की, साध्वी धर्मयशा जी की बीदासर में वि0सं0 2040 माघ शुक्ला त्रयोदशी को आचार्यश्री तुलसी के करकमलों से दीक्षा हुई, उस समय आपकी उम्र 22 वर्ष थी। दीक्षा की पच्चीसवीं-बीदासर में आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी एवं युवाचार्यश्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में आयोजित हुई। इसी दिन साध्वी धर्मयशा जी ने गीत का संगान किया। गुरुदेव ने फरमाया धर्मयशा शरीर से कमजोर है पर गीत बहुत अच्छा गाती है। उन्होंने जीवन में सैकड़ों उपवास, कई बेले, तेले सात एवं आठ तक की तपस्या एवं दस प्रत्याख्यान भी किए। अभी वर्तमान में उनका लगभग चार वर्ष से एकासन का वर्षीतप चल रहा था। उनका जीवन विशेषताओं का समवाय था। सहजता, सरलता, पापभीरूता, कर्मठता, जागरूकता, ऋजुता, मृदुता, स्वाध्यायप्रियता, कलाप्रियता, गण और गणि की निष्ठा आदि अनेक गुण उनमें विद्यमान थे।
खूबियों से खूबसूरत-
साध्वी धर्मयशा जी एक अच्छी साध्वी थी। समता उनके रोम-रोम में रमी थी, क्षमा, दया, करुणा, मैत्री का भाव उनके रोम-रोम में बसे थे। जिनशासन जिनकी अस्थि-मज्जा में आत्मगत था। तेरापंथ शासन की गरिमा महिमा उनके खून के हर कतरे में थी। जिनकी आचार निष्ठा, विचार निष्ठा बेमिसाल थी। गुरु दृष्टि की आराधना में वे सतत जागरूक रहती थी। मर्यादा विधि विधान अनुशासन में उनकी तत्परता बेजोड़ थी।
वे एक अच्छी गायिका थी। सुरों का जादू उनके पास था। करिश्माई गीतों के गायन से वे श्रोताओं को मंत्रमुग्ध बना देती। वे एक अच्छी वक्ता थी। व्याख्यान, भाषण अच्छा देती थी। उनके विचार एवं भाव बहुत ऊँचे थे। स्वास्थ्य की अपेक्षा से कई उतार-चढ़ाव आते वे कहती मैं तो शासन में अभी आई हूँ, अभी जाऊँगी। हम दोनों ने साथ में एम0ए0 किया था। शासनश्री साध्वी पानकुमारी जी ‘प्रथम’ श्रीडूंगरगढ़ के सान्निध्य में कितनी बार साथ रहने का सौभाग्य मिला। उन्होंने लाखों गाथाओं का, लाखों पृष्ठों का स्वाध्याय अपने जीवन में किया। प्रतिदिन लगभग दो हजार गाथाएँ वे चितारा करती। दशवैकालिक का प्रायः प्रतिदिन पारायण करती। वे दिन में प्रायः दो घंटा जाप करती थी। प्रातः नियमित जाप, ध्यान, स्वाध्याय, ढालों का गायन किए बिना मुँह में पानी भी नहीं लेती थी। उन्होंने ¬ भिक्षु, ¬ तुलसी, ¬ महाप्रज्ञ, ¬ अ0सि0आ0उ0सा0 ¬0अ0 भि0रा0 शि0 को0 नमः का सवा लाख जाप कितनी बार किए। नवकार मंत्र का उन्होंने कोटी जप किया। वे प्रायः दो श्रुत सामायिक कर लेती। शास्त्र का वाचन, लोगस्स का जाप, उवसग्गहरं का जाप, पैंसठिया का जाप आदि करती रहती थी। वे प्रायः आधा घंटा ध्यान करती। आसन-प्राणायाम के प्रति उत्कंठा रहती। आलोयणा लेने में बहुत जागरूक थी। सं0 2021 में हमारे साथ गुरुदेव की कृपा से दिल्ली एवं राजलदेसर प्रवास में लगभग एक साथ रही। तब मैंने अनुभव किया-वे अपनी भूल-चूक की आलोयणा छोटी-छोटी बातों को याद करके लेटी रहती थी। यह उनकी खासियत थी। वे सिलाई, रंगाई, रजोहरण, मुँहपति निर्माण, डोरी, सांकली आदि में दक्ष थी। वे एषणापूर्वक गौचरी करने की कला में सजग थी। किस घर से क्या लेना कैसे? कैसे लेना? विधि-विधान की जानकारी थी। वे दिन में एक-एक घंटा करके कई घंटों का चौविहार त्याग करती रहती। दूध, चाय, केशर मिश्रित कोई भी चीजों के खाने का उन्हें त्याग था।
पूज्यवरों की कृपा दृष्टि-
स्वास्थ्य की अपेक्षा से उन्हें काफी समय तक सेवा केंद्रों में भी रहने का अवसर मिला। वहाँ वे सबके साथ मिलनसारिता से रहने का प्रयास करती। हम उनका कोई भी काम करते तो वह कितनी प्रमोद भावना भाती हुई निर्जरा कर लेती थी। वे गीत, कविता, लेख, मुक्तक आदि की रचना करती रहती थी। उनके द्वारा बनाए गए सैकड़ों गीत हैं। वे गीत लिखती फिर मुझे चेक कराती, यह उनकी विनम्रता, उदारता का परिचायक है। उनके जीवन में अनगिन, विशेषताएँ थी, जिन्हें जितना बताएँ उतना कम है।
हमें याद आती है उनकी दिव्यता-भव्यता। हमें याद आती है उनकी सहजता-सरलता।
हमें याद आती है उनकी ऋजुता-मृदुता। हमें याद आती है उनकी नियम निष्ठा और आगम निष्ठा।
उन्होंने लाडनूं में गुरुदेव से निवेदन किया-मुझे बीदासर सेवा केंद्र में रखाने की कृपा कराएँ। गुरुदेव ने उसी वक्त नाम डायरी में लिख लिया। उनको बीदासर समाधि केंद्र का आदेश प्रदान कराया।
अचानक क्यों हुआ ऐसा
वे प्रायः स्वस्थ थी। लगभग 2 अगस्त, 2022 को वे बीदासर में गिर गई। फिर बेहोश होने लगी। गुरुदेव की अनापत्ति स्वीकृति से 23 अगस्त को जयपुर चिकित्सा के लिए गए। गुरुदेव ने साध्वी हेमरेखाजी आदि तीन साध्वियों को सेवा में नियोजित किया। गुरुकृपा से उनकी चिकित्सा सेवा में कोई कमी नहीं रही। जयपुरवासियों ने पन्नालाल पुगलिया एवं गोलछा परिवार ने यथासमय सेवा दर्शन का पूरा लाभ लिया। गुरुदेव की अंतदृष्टि से वे भिन्न समाचारी से सम-समाचारी में हो गई।
उन्होंने दो दिन की सागारी संथारा संलेखना के साथ 10-9-22 प्रातः लगभग 5ः25 पर उनका देवलोकगमन हो गया।
उनके देवलोकगमन से दो बहनों की जोड़ी बिछुड़ गई। मुनि धन्य की एक बुआ साध्वी चली गई, शासन में एक अच्छी साध्वी की कमी हो गई। वे अजर-अमर, अक्षय, अव्यय बने। मोक्ष मंजिल को प्राप्त करें।
‘तुम नहीं हो तुम्हारी उल्फत दिल में है, बुझ चुकी समां पर रोशनी महफिल में है।’